27 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किए जाने के चंद मिनटों के भीतर ही अमित शाह अपने दाहिने बीएस येदियुरप्पा को बिठाकर दावणगेरे में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे.
शाह बोले, 'सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज ने कहा कि भ्रष्टाचार के लिए अगर स्पर्धा कर दी जाए तो येदियुरप्पा सरकार को भ्रष्टाचार में नंबर वन सरकार का अवार्ड मिलना चाहिए.' इस पर येदियुरप्पा उनका मुंह ताकते रह गए लेकिन शाह के दूसरे बगल बैठे बीजेपी सांसद प्रह्लाद जोशी ने उनको जुबान फिसलने पर टोका तो शाह ने बिना एक पल गंवाए उसी सांस में सुधार लिया कि उनके कहने का मतलब था, 'सिद्धारमैया सरकार.'
लेकिन सिद्धारमैया ने किस्मत से मिले नंबर बनाने के इस मौके को लपक लिया और फौरन ही उनके ट्विटर हैंडल पर हैशटैग के साथ यह वीडियो दिखने लगा '#झूठों के शाह ने आखिरकार सच बोला' वीडियो में सफाई से वो हिस्सा एडिट कर दिया था, जहां शाह अपनी गलती दुरुस्त कर रहे हैं.
सिद्धारमैया का 2.0 वर्जन
यह सिद्धारमैया का नया अवतार है. आईटी सिटी बेंगलुरू की जुबान में कहें तो उनका 2.0 वर्जन. हालांकि यह जगजाहिर है कि सीएम के एकाउंट का काम एक 24x7 सक्रिय रहने वाली टीम संभालती है, लेकिन इसने सिद्धारमैया को लंबे समय से मनचाहा मेकओवर दे दिया. भीड़ के बीच हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने वाले सिद्धारमैया अपने नए अवतार में ज्यादा जुझारू हैं और खेल के नए मैदान सोशल मीडिया में भी काफी अच्छा कर रहे हैं. उनके हमलावर तेवर, कटाक्ष और हास्यबोध से भरे ट्वीट्स ऐसा असर छोड़ रहे हैं कि वह आमने-सामने मुकाबला करने को उत्सुक हैं.
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यह उस शख्स के लिए बड़ा बदलाव है जो चंद दिनों पहले तक सिर्फ एक देहाती राजनेता माना जाता था, जो संभ्रांत लोगों और ट्विटर वाली पीढ़ी के बीच घुलने-मिलने के बजाय देहाती माहौल में ज्यादा सहज रहता है. यह पंजाब में कैप्टेन अमरिंदर सिंह द्वारा अपनाई गई रणनीति से अलग है. ‘कॉफी विद कैप्टेन’ स्ट्रेटजी ने पंजाब के ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में काम किया था, जबकि टेक्नोलॉजी पसंद कर्नाटक में, आभासी संसार से हमेशा जुड़े रहना भी उतना ही जरूरी है जितना वास्तविक संसार से.
सिद्धारमैया की ऑनलाइन निपुणता ने भारत में कांग्रेस के चार मुख्यमंत्रियों की जमात में उनका दर्जा कुछ ऊपर उठा दिया है, जो राष्ट्रीय एजेंडा तय करता है. दक्षिण भारतीय राज्यों को लेकर भेदभाव का मुद्दा उठाने वाली उनकी फेसबुक पोस्ट और बाद में एक ट्वीट में मुख्यमंत्रियों को टैग किए जाने ने, उन्हें दक्षिणी गठजोड़, एक तरह के प्रेशर ग्रुप, के नेतृत्व की स्थिति प्रदान की है.
सिद्धारमैया बनाम मोदी और शाह
लेकिन ऑनलाइन उखाड़-पछाड़ सिर्फ एक छवि है. असली उपलब्धि वह तरीका है जिसमें मुख्यमंत्री ने इस लड़ाई को सिद्धारमैया बनाम नरेंद्र मोदी व शाह बना दिया है. इससे कांग्रेस को एक तीर से दो शिकार करने का मौका मिल गया. इसका मतलब है कि राहुल गांधी को हर हमले का अकेले सामना नहीं करना पड़ेगा, जैसा कि गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान हुआ था. सिद्धारमैया के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष के पास एक दमदार कमांडर है, जबकि गुजरात में पार्टी ने हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की तिकड़ी को अपनी लड़ाई आउटसोर्स कर दी थी. दूसरा इन्होंने येदियुरप्पा, वह शख्स जो मुख्यमंत्री बनने का दावेदार है, उसको सपोर्टिंग रोल में सीमित कर दिया है. सिद्धारमैया की राजनीतिक मुक्केबाजी के सामने येदियुरप्पा लगातार बचाव की मुद्रा में हैं, ऑनलाइन भी और ऑफलाइन भी.
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मजे की बात है कि एक साल पहले तक येदियुरप्पा पक्के तौर पर यकीन करते थे कि सिद्धारमैया के प्रभारी रहते बीजेपी के लिए मई 2018 में विधानसभा में वापसी सुबह की सैर जैसा आसान काम होगा. इसका कारण यह था कि मुख्यमंत्री एक खंडित छवि वाले शख्स थे, जो बेंगलुरू में झील में बार-बार आग लगने जैसे मुद्दों से जूझ रहा था और एक ऐसी पार्टी में अंदरूनी लड़ाइयों से घिरा हुआ था, जो किसी भी राज्य में चुनाव नहीं जीत पा रही थी.
यह सब अब काफी कुछ बदल चुका है. लगातार दूसरी अवधि के लिए चुनाव जीतना, जो कर्नाटक में 1985 से कोई मुख्यमंत्री नहीं कर सका, इस चुनौती ने सिद्धारमैया को सक्रिय कर दिया. इसका पता उन पर किए जाने व्यक्तिगत हमलों से चलता है, जैसे कि योगी आदित्यनाथ उनके हिंदू होने पर सवाल उठाते हैं, क्योंकि उन्होंने कर्नाटक में गोहत्या पर पाबंदी नहीं लगाई. सिद्धारमैया ने इसका जवाब देने में देरी नहीं लगाई, अपने नाम में ‘रामा’ की तरफ इशारा करते हुए बताया कि वह भी बीजेपी के किसी भी नेता जैसे ही अच्छे हिंदू हैं. बीजेपी ने इसके बाद उन्हें तटीय कर्नाटक में मुसलमानों का पक्ष लेने के लिए 'जेहादी सीएम' करार दिया.
सिद्धारमैया ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देकर भगवा पार्टी के मुख्य वोट बैंक को बांटकर बीजेपी को बीजेपी की ही भाषा में जवाब दिया. यही वह कदम था जिस पर शाह ने सिद्धारमैया के अहिंदा (AHINDA) वोट बैंक, जिसमें मुस्लिम, दलित और बैकवर्ड क्लास शामिल है, को निशाना बनाते हुए कहा कि वह वास्तव में अ-हिंदू (AHINDU) मुख्यमंत्री हैं.
राष्ट्रीय मुद्दों पर क्षेत्रीय लड़ाई
सिद्धारमैया के लिए यह फायदेमंद है कि बीजेपी उनको उन बातों के लिए निशाना नहीं बना रही है, जिनमें वह वास्तव में कमजोर रहे हैं. चाहे यह किसानों की परेशानी का मुद्दा हो, बड़े पैमाने पर ग्रामीणों का शहरों को पलायन हो, शहरों में नागरिक सेवाओं की बदहाली हो या कानून और व्यवस्था की स्थिति हो. उन्हें शाह की राहुल गांधी के मंदिर जाने जैसी टिप्पणियों का जवाब देना ज्यादा सुहाता होगा, जिससे कि चुनाव निरर्थक मुद्दों पर सिमट जाए.
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सिद्धारमैया जानते हैं कि मोदी और शाह क्षेत्रीय चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे डालकर चुनाव लड़ेंगे जिससे कि यह लड़ाई बीजेपी बनाम कांग्रेस बन जाए. इसलिए वह बीजेपी के राष्ट्रवाद के मुद्दे का सामना अपने ही किस्म के कन्नड़ उप-राष्ट्रवाद से कर रहे हैं, वह चाहे वह अलग ध्वज या कन्नड़ भाषा का मुद्दा हो या अब लिंगायत पर फैसला. जनता दल (सेकुलर) की अपनी राजनीतिक ट्रेनिंग के चलते सिद्धारमैया ने कांग्रेस को यह चुनाव क्षेत्रीय पार्टी की तरह लड़ने पर मजबूर कर दिया है और यह संदेश दिया है कि उनके लिए मूलतः कन्नड हित सर्वोप्परि है.
कर्नाटक कांग्रेस सही मायनों में आज की तारीख में सिद्धारमैया कांग्रेस है, जिसमें सीएम की ही चलती है. यह बात तब साबित भी हो गई जब वह अड़ गए कि राज्यसभा चुनाव में कोई गैर-कन्नड़ पार्टी का प्रत्याशी नहीं होगा. राहुल गांधी जानते हैं कि कर्नाटक में एक जीत पार्टी के लिए संजीवनी जैसी होगी. ऐसा होने पर ही अन्य क्षेत्रीय विपक्षी दल कांग्रेस के लिए जगह छोड़ने को राजी होंगे. कर्नाटक कांग्रेस के लिए करो या मरो की लड़ाई है, और गुजरात के उलट यहां हार में भी नैतिक जीत का दावा करने के लिए कोई गुंजाइश नहीं है.
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