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कर्नाटक चुनाव 2018: इन उम्मीदवारों को टिकट देने पर BJP और संघ में क्यों मची है कलह?

संघ के कार्यकर्ताओं का मानना है कि बीजेपी ने न सिर्फ उन्हें आगे बढ़ने से रोका, दागी विधायकों और मंत्रियों को भी टिकट देकर पार्टी ने गलत किया

Updated On: May 01, 2018 09:58 AM IST

M Raghuram

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कर्नाटक चुनाव 2018: इन उम्मीदवारों को टिकट देने पर BJP और संघ में क्यों मची है कलह?

राजनीतिक विश्लेषक पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने जा रहा है. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी को नहीं लगता कि ऐसी स्थिति पैदा होगी.

बहरहाल, पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने इस बारे में बताने से इनकार कर दिया कि पार्टी को इस विधानसभा चुनाव में कितनी सीटें जीतने का अनुमान है. उन्होंने कहा, 'मैं सीटों की संख्या के बारे में किसी तरह का अनुमान नहीं पेश करूंगा. मैं इस संबंध में अपने नेताओं के अनुमान से काम चलाऊंगा. हालांकि, मुझे कर्नाटक की जनता के विवेक पर पूरा भरोसा है. वे इस बात पर गौर करेंगे कि राज्य में ऐसी सरकार बेहद जरूरी है, जो केंद्र सरकार के अनुकूल हो.'

पात्रा ने हाल में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'राज्य के किसी भी हिस्से में बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच किसी तरह का असंतोष नहीं है. पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की तरफ से उतारे गए सभी उम्मीदवारों को पार्टी कार्यकर्ता स्वीकार कर चुके हैं. उम्मीदवारों को लेकर हमारे सर्वे में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं है. अब हम सार्थक प्रचार अभियान को लेकर बेहद सक्रियता से काम कर रहे हैं.'

अंदरूनी बवाल को हल्की बात बता रहे हैं BJP के आला नेता

हालांकि, जमीनी स्तर पर काम करने वाले संघ परिवार के कार्यकर्ताओं का मानना है कि पात्रा और उनके उच्चस्तरीय सलाहकार, खास तौर पर दिल्ली और गुजरात से पहुंचे पार्टी के नुमाइंदे बीजेपी और संघ परिवार की राज्य इकाई के अंदरूनी असंतोष को कमतर आंक रहे हैं और इससे चुनाव के नतीजे प्रभावित हो सकते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक सीनियर नेता ने इस संवाददाता को बताया कि संघ परिवार के संगठनों में बगावत तकरीबन तय थी, लेकिन नागपुर और वड़ोदरा से पहुंचे संघ परिवार के पर्यवेक्षकों ने बीजेपी और आरएसएस कार्यकर्ताओं के बीच की दिक्कतों को सुलझा लिया. हालांकि, कट्टरपंथी रुख अख्तियार करने वाले कुछ कार्यकर्ता अब भी अपनी जिद पर अड़े हैं. चुनाव प्रचार अभियान निर्णायक दौर में पहुंचने के बाद इस तरह के मामले फिर से सामने आ सकते हैं.

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संघ के कार्यकर्ताओं का मानना है कि बीजेपी ने न सिर्फ उन्हें आगे बढ़ने से रोका, बल्कि 2008 की राज्य की तत्कालीन बीजेपी सरकार के दागी विधायकों और मंत्रियों को भी टिकट देकर पार्टी ने गलत किया. उनका कहना है कि अगर पार्टी अब भी उन्हीं चेहरों के साथ आगे बढ़ना चाहती है, तो वे उनके साथ काम करना नहीं पसंद करेंगे. संघ के कार्यकर्ता जिन नेताओं और उम्मीदवारों के साथ काम करने को तैयार नहीं हैं, उनमें हरतालू हलप्पा (सागर-शिवमोग्गा), रघुपति भट्ट (उडूपी), रेड्डी बंधु (बेल्लारी), एमपी रेणुकाचार्य (होन्नली), वाई संपान्गी (कोलर गोल्ड फील्ड), मुरुगेश निरानी (बिलिगी) और कट्टा सुब्रमण्या नायडू (शिवाजीनगर) शामिल हैं.

रिश्वतखोरी में सजा पा चुके समेत कई दागियों को पार्टी ने दिया है टिकट

कर्नाटक में 2013 में हुए विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले संपान्गी को रिश्वतखोरी मामले में लोकायुक्त ने सजा सुनाई थी. उनकी मां वाई रामक्का फिलहाल कोलर गोल्ड फील्ड से विधायक हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में संपान्गी को टिकट दिए जाने के बाद पार्टी के आतंरिक दबाव के कारण पार्टी उम्मीदवारों की बीजेपी की तीसरी सूची में एस अश्विनी को उनके पिता की जगह पर टिकट दिया गया.

बीजेपी और आरएसएस दोनों इकाइयों ने इस संबंध में एक तरह से व्हिप जारी कर दिया है कि किसी को भी सार्वजनिक तौर पर या मीडिया में असंतोष या असहमति का इजहार नहीं करना चाहिए. हालांकि, उनकी शिकायतों का मामला नियंत्रण से बाहर चला गया है. नाम जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर आरएसएस के एक सीनियर नेता का कहना था कि वे अपने कार्यकर्ताओं से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे (कार्यकर्ताओं को) अपने सिद्धातों से परे जाकर काम करने के लिए राजी किए जा सकें.

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बीजेपी के पूर्व कार्यकर्ता मणिरत्नम नायडू का कहना था, 'क्या कुछ परिवार ही इस देश में शासन के लिए बने हैं? बीजेपी संपान्गी परिवार से अलग कोई नया उम्मीदवार ढूंढने में क्यों नाकाम रही? अगर बीजेपी भी वंशवाद के नियम का पालन करती है, तो कांग्रेस और बीजेपी में क्या फर्क है?' नायडू काफी लंबे अर्से तक वाई संपान्गी के समर्थन रहे हैं. हालांकि, वह अब वह (कार्यकर्ता) कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.

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संपान्गी का कहना था कि उन्हें इस बात का पूरा भरोसा है कि उनकी बेटी अच्छे मार्जिन से चुनाव जीतेगी. उन्होंने कहा, 'जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस के बेहद असरदार नेता के रिश्तेदार उसके (मेरी बेटी) खिलाफ खड़े थे. इसके बावजूद उसने उस चुनाव में जीत हासिल की, जो उसकी लोकप्रियता का प्रमाण है. आपको शायद यह भी याद होगा कि मेरी मां रामक्का ने भी केजीएफ सीट से जीत हासिल की है. जाहिर तौर पर इसका मतलब यह है कि लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मेरी उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे हैं.' उन्होंने कहा कि अपनी मां के विधायक के कार्यकाल के दौरान उन्होंने किसी तरह के लाभ या पैरवी की मांग नहीं की. संपान्गी ने कहा, 'वह (मेरी मां) एक विधायक के तौर पर पूरी तरह स्वतंत्र थीं. सिर्फ इसलिए कि उम्मीदवार मेरे परिवार से आते हैं, क्या उन्हें चुनाव लड़ने के लिए उनके मौलिक अधिकार से रोक दिया जाएगा, जो सभी लोगों को संविधान की तरफ से मिला है?'

'ये संगठन रखते हैं मायने '

पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच नाराजगी और अंसतोष की एक और वजह उन उम्मीदवारों का विधानसभा चुनाव के लिए टिकट दिया जाना है, जो संघ परिवार के कार्यकर्ताओं के बीच से नहीं हैं. लंबे समय से हिंदू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता रहे सत्यजीत सूरतकल को मैंगलोर उत्तर विधानसभा सीट से टिकट नहीं दिया गया. इस विधानसभा क्षेत्र के एक बुजुर्ग रामचंद्र शास्त्री ने बताया, 'वह इस विधानसभा क्षेत्र में पिछले 20 साल से भी ज्यादा से बीजेपी के लिए वोटों जुटाने के अभियान में सबसे आगे रहते थे.'

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सत्यजीत ने बताया कि पार्टी ने उन्हें पिछले तीन चुनावों से आश्वासन दे रखा था कि उन्हें मैंगलोर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया जाएगा. उन्होंने कहा, 'हालांकि, इस बार भी उन्होंने (पार्टी के वरिष्ठ नेताओं) वादा नहीं पूरा किया. उन्हें कम से कम मुझे बीजेपी का जिला अध्यक्ष बनाकर यह दिखाना चाहिए कि वे संघ परिवार के कार्यकर्ताओं की परवाह करते हैं. अब चूंकि जिला अध्यक्ष संजीव मतनदूर को चुनाव लड़ने के लिए पुत्तूर विधानसभा सीट से टिकट दिया गया है, लिहाजा पार्टी को 'एक शख्स के लिए एक ही पद' के नियम पर टिके रहना चाहिए, जैसा कि कांग्रेस ने किया है.'

A Bharatiya Janata Party (BJP) supporter wears a mask of Prime Minister Narendra Modi, after BJP won complete majority in Tripura Assembly elections, during a victory celebration rally in Agartala

जहां तक राज्य की उडूपी विधानसभा क्षेत्र का सवाल है, तो स्क्रीनिंग कमेटी ने इस सीट के लिए तीन नामों को शॉर्टलिस्ट किया था. हालांकि, इस सूची में आखिरी विकल्प के तौर पर मौजूद रघुपति भट्ट को टिकट मिलने के बाद न सिर्फ संघ परिवार के सदस्य उम्मीदवारी के इस विकल्प को लेकर असहज हो गए, बल्कि बीजेपी के जिला अध्यक्ष खुद इस उम्मीदवारी को लेकर खुश नहीं थे. कर्नाटक में 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में तत्कालीन विधायक भट्ट ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी. दरसअल, उसी दौरान एक महिला के साथ उनकी वीडियो क्लिप टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित हुई थी, जिसके उन्हें अपनी उम्मीदवारी वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा था.

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बहरहाल, कर्नाटक में आरएसएस के प्रमुख प्रभाकर के भट्ट इन मुद्दों को लेकर ज्यादा मुखर नहीं नजर आते. उन्होंने कहा, 'ये संगठन से जुड़े मामले हैं, जिनका हल तल्ख हकीकतों को ध्यान में रखते निकाला जा सकता है. इस बारे में संदेश संगठन में सबसे निचले स्तर पर मौजूद कार्यकर्ताओं तक पहुंचा दिया गया है.' हालांकि, आरएसएस के एक और सीनियर नेता सुधीर सेनॉय इस पूरे मामले को लेकर ज्यादा तल्ख और आलोचनात्मक अंदाज में नजर आए. उन्होंने कहा, 'हम लोगों के दिमाग में यह बात थी कि विपक्ष की पृष्ठभूमि पर सवाल उठाते हुए उसे कटघरे में खड़ा करने के बाद बीजेपी साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारना चाहती है. लेकिन हम राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में जो कर रहे हैं, वह तकरीबन वैसा ही है, जैसा हमारे प्रतिद्वंद्वी कर रहे हैं.' (लेखक मैंगलोर के स्वतंत्र पत्रकार व लेखक हैं. वह 101reporters.com के सदस्य भी हैं, जो जमीनी स्तर पर काम कर रहे संवाददताओं का देशव्यापी नेटवर्क है.)

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