‘अपने दुश्मन की वास्तविक शक्ति को पहचानो और खुद को भी ’
- प्राचीन चीनी मिलिट्री जनरल और रणनीतिकार सुंत्ज़ू
गुजरात मॉडल एक ऐसा टर्म है जिसे नरेंद्र मोदी के पीएम उम्मीदवार बनने के कहीं पहले से भारतीय जनता पार्टी भुनाती आ रही है. जब मोदी पीएम पद की रेस में बीजेपी की तरफ से दौड़ रहे थे तो पूरे देश ने इस शब्द को बिना बखूबी जाने खूब सुना और भरोसा भी जता दिया. शायद यही वजह थी कि पूर्व विनिवेश मंत्री अरुण शौरी ने हाल में कहा था कि गुजरात मॉडल की ढंग से समीक्षा नहीं की गई. शायद उनके कहने का मतलब था कि अगर गुजरात मॉडल की ढंग से समीक्षा की गई होती तो 2014 के नतीजे वैसे नहीं होते जैसे हुए, यानी नरेंद्र मोदी भारत का प्रधानमंत्री बन पाने में कामयाब नहीं हुए होते.
खैर, 2014 के लोकसभा के नतीजे आए तकरीबन चार साल गुजरने वाले हैं. बीते साल के दिसंबर महीने में गुजरात के विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस को न सिर्फ मनोबल दिया बल्कि एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों वाली उक्ति को भी फलीभूत किया.
गुजरात में कांग्रेस की मनोवैज्ञानिक बढ़त
गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने अपने सभी पत्ते खोल दिए थे. जीत के लिए वो सबकुछ किया. राजनीति में नौसिखिया लेकिन मशहूर तीन लड़कों (हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठाकोर) से भी हाथ मिला लिया. पार्टी को आखिर में हार भले नसीब हुई हो उसने बीजेपी लीडरशिप को राहुल गांधी के बारे में गंभीरता से सोचने पर मजबूर जरूर कर दिया.
पूरे चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी न सिर्फ संयत दिखे बल्कि बिना अपनी मर्यादा खोए मोदी सरकार पर हर माध्यम से, चाहे रैलियां हो या सोशल मीडिया, निशाना साधते रहे. पहली बार पार्टी राहुल गांधी के पीछे एकजुट दिख रही थी. शायद यही वजह थी कि सालों से अध्यक्ष बनने की उनकी बात दिसंबर महीने में नतीजों से ठीक कुछ दिन पहले पूरी हुई. इसका मतलब पार्टी का संदेश साफ था-हम हारें चाहें जीतें हमने राहुल गांधी को अपना नेता चुन लिया है.
गुजरात चुनाव में बीजेपी को 100 सीटों के नीचे रोकना कांग्रेस की मनोवैज्ञानिक बढ़त थी. इसके बाद से ही कांग्रेस लगातार केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी पर सधे हुए निशाने दाग रही है. राहुल गांधी ने अपनी कोर टीम में कई नए लोगों को जोड़ा भी है. जिनके जरिए वो सोशल मीडिया से लेकर चुनावी मैदानों तक बीजेपी से सीधे टक्कर ले रहे हैं.
ये वही राहुल गांधी हैं जिनके बारे में एक बार मशहूर वकील राम जेठ मलानी ने कहा था कि उन्हें मैं अपने दफ्तर में मैनेजेरियल क्लर्क की नौकरी भी न दूं. दिलचस्प रूप से अब उन्हीं राहुल गांधी के लिए आम लोगों में प्रेम उमड़ता दिख रहा है. गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल की प्रचार बस पर एक लड़की सीधे उनसे मिलने के लिए ऊपर चढ़ गई थी. नेताओं के प्रति इस तरह की अभिव्यक्ति भारतीय जनमानस में सामान्य तौर पर कम देखने को मिलती है. मतलब लोग नेताओं के फैन होते हैं, उनके लिए नारे लगाते हैं लेकिन बिना किसी नेता से डरे उसकी प्रचार बस पर मिलने के लिए चढ़ जाने जैसी घटनाएं कम देखने में आती हैं.
राजस्थान की जीत भी अहम
कुछ और हो न हो लेकिन गुजरात के नतीजों ने कांग्रेस में एक नई जान तो फूंक ही दी है. अभी हाल ही में राजस्थान उपचुनाव के नतीजों को देखकर क्या कोई कह सकता है कि इसी राज्य में ठीक चार साल पहले बीजेपी ने सभी लोकसभा सीटें जीती थीं. इसी राज्य में 2013 में पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 70 फीसदी से ज्यादा सीटें जीती थीं! उपचुनाव की तीनों सीटों पर कांग्रेस ने मजबूत जीत ही हासिल नहीं की है कि बल्कि उस मनोवैज्ञानिक बढ़त को और सशक्त ही किया है जो उसने गुजरात चुनावों के वक्त हासिल की थी.
राजस्थान में पार्टी शीर्ष नेतृत्व के फैसले की भी तारीफ होनी चाहिए. राज्य में अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट के बीच जारी जंग में गहलोत गुट को एक तरीके से किनारे कर दिया गया. सचिन पायलट को चुनाव के दौरान फ्री हैंड दिया गया था. चुनाव जितवाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर ही थी. इसमें उन्होंने बखूबी कामयाबी पाई और मीडिया में उनकी विक्टरी साइन दिखाते तस्वीरें खूब तैरीं. सचिन पायलट राहुल गांधी के क्लोज माने जाते हैं और युवा नेता हैं. राजस्थान में अगर पार्टी की कमान उनके हाथों में रही तो इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में हैरान करने वाले नतीजे आ सकते हैं.
इसके अलावा इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण होंगे. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी दशक भर से ऊपर समय से काबिज है वहीं कर्नाटक में सिद्धारमैया की अगुवाई कांग्रेस की ही सरकार है.
मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले और किसानों की नाराजगी से शिवराज सिंह चौहान सरकार की स्थिति डांवाडोल है, वहीं छत्तीसगढ़ में पिछली बार मुश्किल से सरकार बचाने वाले रमन सिंह के सामने भी अस्तित्व बचाने का संकट है. अगर कर्नाटक की बात की जाए तो वहां कांग्रेस के लिए सुखद खबर ये है कि हाल में हुए एक सर्वे में सीएम सिद्धारमैया को सबसे लोकप्रिय सीएम के रूप में देखा गया है. अगर ऐसे में पार्टी सधी हुई राजनीति करती है और अपने गुजरात मॉडल पर डटी रहती है तो ज्यादा आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि 2018 का साल कांग्रेस के लिए सुखद रहने वाला है.
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