कर्नाटक में कांग्रेस के उम्मीद के उलट नतीजे आए है. पार्टी बीजेपी से चुनाव हार गई है लेकिन त्रिशंकु विधानसभा ने कांग्रेस को राजनीति करने का मौका दे दिया है. कांग्रेस ने सही समय पर जेडीएस को साथ लाने का दांव चल दिया. कांग्रेस ने बिना शर्त जेडीएस को समर्थन करने का ऐलान कर दिया. जिससे कांग्रेस के खाते में एक साथी की बढ़ोतरी हो जाए.
हालांकि सोनिया गांधी का ये दांव कितना कारगर होगा ये गवर्नर के विवेक पर निर्भर है. लेकिन कांग्रेस का बीजेपी के मुकाबले में जेडीएस को साथ लाने का खेल कामयाब हो सकता है. जो आगे कांग्रेस के काम आ सकता है. कांग्रेस के महासचिव गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि ये सामूहिक फैसला है क्योंकि जनादेश कांग्रेस के पक्ष में नहीं है. इसलिए जेडीएस को समर्थन देकर सरकार बना रहे हैं. भले ही हमारे पास नंबर ज्यादा है.
कांग्रेस का ये दांव सिर्फ बीजेपी को रोकने के लिए नहीं है. बल्कि कांग्रेस की एक बड़ा गठबंधन बनाने के लिए साथियों की तलाश है. कर्नाटक में कांग्रेस को जेडीएस से बेहतर पार्टनर नहीं मिल सकता है. जिसके वजूद की बदौलत कांग्रेस लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है क्योंकि कांग्रेस के इस पेशकश से जेडीएस और बीजेपी के बीच दूरियां बढ़ जाएगी. जिसका फायदा कांग्रेस को हो सकता है.
गोवा-मणिपुर से सीखा सबक
कांग्रेस गोवा और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी सरकार बनाने से महरूम रह गई थी. इस बार कांग्रेस ने तेजी से फैसला किया. सोनिया गांधी ने प्रभारी महासचिव के सी वेणुगोपाल और गुलाम नबी आज़ाद से बात की है. सोनिया गांधी ने कांग्रेस के नेताओं से कुमारास्वामी और एचडी दैवगौड़ा से बात करने के लिए कहा, जिसके बाद कांग्रेस के नेताओं ने आनन-फानन सोनिया गांधी का पैगाम पहुंचा दिया. जिसको जेडीएस ने मान लिया.
हालांकि कांग्रेस को ये पता था कि जेडीएस मुख्यमंत्री से कम पर राजी नहीं होगी इसलिए पार्टी ने बिना देर किए ये ऑफर कर दिया है. कांग्रेस के नेता कह रहें है कि इस दांव से दो फायदा है एक तो जेडीएस में फूट नहीं पड़ेगी. दूसरा बीजेपी के लिए बहुमत साबित करना मुश्किल हो जाएगा. हालांकि कांग्रेस के कई नेता हार का कारण गिना रहे हैं. लेकिन अब सबकी प्राथमिकता कर्नाटक में गैर-बीजेपी सरकार बनाने की है इसलिए दिल्ली से लेकर बेंगलुरु तक कांग्रेस के नेता एड़ी-चोटी लगाए हुए हैं.
गठबंधन के लिए सोनिया ड्राइविंग सीट
जेडीएस को बिना शर्त समर्थन देने का फैसला सोनिया गांधी ने बिना देरी के लिया है. हालांकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ सोनिया ने बातचीत की थी. जिसके बाद फैसले की जानकारी कांग्रेस के सीनियर नेताओं को दी गई. गठबंधन के मामले में एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सोनिया गांधी का सहारा लेना पड़ा है. हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव पूर्व कोई गठबंधन नहीं किया था. जबकि पार्टी के पास ऑप्शन था क्योंकि बीएसपी के जेडीएस के साथ जाने से कांग्रेस का काफी नुकसान हुआ है.
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कांग्रेस की हार पर ममता बनर्जी ने भी कटाक्ष किया है. ममता ने कहा कि अगर चुनाव पूर्व जेडीएस के साथ गठबंधन होता तो नतीजे बढ़िया हो सकते थे. लेकिन कांग्रेस के लिए कर्नाटक से सबक भी है. कांग्रेस को बीजेपी को रोकने के लिए चुनाव से पहले रणनीतिक गठबंधन करना पड़ेगा क्योंकि बीजेपी चुनाव जीतने मे महारथी साबित हो रही है.
गठबंधन के लिए सोनिया ही रहेंगी आगे
कांग्रेस के जेडीएस को समर्थन देने के फैसले से ये साफ हो गया है. कांग्रेस में गठबंधन को लेकर सोनिया गांधी और उनकी टीम ही फैसला करेगी. जबकि कांग्रेस के भीतर के फैसले राहुल गांधी कर सकते हैं. सोनिया गांधी 2004 से अब तक यूपीए की चेयरपर्सन हैं. जिससे उनके पास गठबंधन के फार्मूले को लेकर काफी अनुभव है. सोनिया के पास एक अनुभवी टीम भी है, जिसे वक्त पर कैसे काम करना है इसे बताने की जरूरत नहीं है.
जिस तरह का राजनीतिक संकट कांग्रेस के ऊपर है. उससे निजात सिर्फ गठबंधन की राजनीति ही दिला सकती है. अकेले कांग्रेस के वश में ज्यादा कुछ नहीं है. कर्नाटक में कांग्रेस के पास सब कुछ होने के बाद भी चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हो पाई है. एक तो राहुल गांधी ने सीएम को फ्री हैंड दे दिया. जिससे बाकी नेता हाशिए पर चले गए. सभी नेताओं ने राहुल गांधी के साथ दमखम दिखाया लेकिन जमीन पर मेहनत करने में ढिलाई बरत दी जिसकी वजह से कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा है.
बीजेपी को रोकने के लिए सिद्धरमैया कुर्बान
कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी ने बीजेपी को रोकने के लिए बड़ा फैसला ले लिया. सिद्धरमैया की देवगौड़ा और कुमारस्वामी से पुरानी अदावत है. कांग्रेस के निर्वतमान मुख्यमंत्री कभी जेडीएस में ही थे. लेकिन 2005 में जेडीएस से बाहर हो गए थे क्योंकि कुमारस्वामी के जेडीएस में बढ़ते रूतबे से नाराज थे.
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लेकिन कांग्रेस पार्टी ने उसकी परवाह नहीं की है. बल्कि बीजेपी को रोकने के फार्मूले पर काम किया है. कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आज़ाद और अशोक गहलोत को पहले से बेंगलुरु भेज दिया गया था. कांग्रेस ने इस गठबंधन की मज़बूती के लिए सिद्धरमैया से ही बयान दिलवाया और बाद में निर्वतमान मुख्यमंत्री ने कुमारास्वामी के साथ गवर्नर से मुलाकात की है. जाहिर है कांग्रेस को लग रहा है कि अगले आम चुनाव में जेडीएस कांग्रेस के साथ रहेगी. जेडीएस के साथ कांग्रेस के रिश्ते
कांग्रेस और जेडीएस के साथ रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे हैं कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस की पहले भी सरकार बन चुकी है. जिसमें कांग्रेस के नेता एन धर्म सिंह 28 मई 2004 को मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन 20 महीने के कार्यकाल के बाद ये सरकार 3 फरवरी 2006 में गिर गई क्योंकि उस वक्त एचडी कुमार स्वामी ने अपनी ही पार्टी जेडीएस को तोड़कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. इससे पहले कांग्रेस ने 1996 में बनी देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. बाद में इंद्र कुमार गुजराल को प्रधानमंत्री बनने के लिए समर्थन दिया था.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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