कर्नाटक चुनाव का बिगुल बज चुका है. 12 मई को वोट डाले जाने हैं. चुनाव प्रचार के लिए बीजेपी और कांग्रेस पसीना बहा रही है. गुरुवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जब कर्नाटक के टुमकुर में रोड शो कर रहे थे. उसी वक्त जिला मुख्यालय से करीब 69 किलोमीटर दूर पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारास्वामी अप्रैल की चिलचिलाती धूप में पार्टी के लिए कैंपेनिंग कर रहे थे. कुमारास्वामी अकेले थे. जेडीएस का कोई भी नेता उनके साथ नहीं था. फिर भी उन्हें सुनने के लिए राहुल गांधी के रोड शो से ज्यादा भीड़ पहुंची थी. ऐसे में दोबारा सत्ता में आने की कोशिश में जुटी कांग्रेस की रातों की नींद उड़ गई है.
कुमारास्वामी की रैली में न तो ग्लैमर था और न ही टेक्नोलॉजी. जैसा कि आमतौर पर राज्य की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस और विपक्षी दल बीजेपी की रैली में देखा जाता है. लेकिन, जनता का समर्थन हो तो, ग्लैमर और टेक्नोलॉजी की कमी अपने आप पूरी हो जाती है. कर्नाटक की राजनीति में कुमारास्वामी ऐसे खिलाड़ी हैं, जो अकेले जीत की लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. बिना किसी के सहयोग और सलाह के वो आगे बढ़ रहे हैं.
पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा के तीसरे बेटे एचडी कुमारास्वामी कर्नाटक की राजनीति में 'कुमारअन्ना' के नाम से जाने जाते हैं. साल 2006 में पारिवारिक कलह के बीच कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार का तख्तापलट कर वो पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. 20 महीनों तक उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन कर शासन किया. तब उन्हें कर्नाटक के पिछले 40 सालों के दौरान सबसे सुलभ मुख्यमंत्री माना जाता था.
आखिरी जंग के लिए तैयार कुमारास्वामी
साल 2008 में सत्ता खोने के बाद जेडीएस फिर राज्य या केंद्र में कभी वापसी नहीं कर पाई. जेडीएस के कैडर बेचैन और अस्थिर हो रहे हैं. कुमारास्वामी अच्छे से जानते हैं कि अगर इस बार वो हारते हैं, तो शायद उनके लिए आगे के रास्ते बंद हो जाए. ऐसे में कुमारास्वामी आखिरी जंग के लिए तैयार हैं. एचडी देवगौड़ा ने उन्हें इस चुनावी जंग का 'सेनापति' नियुक्त किया है.
दो महीने पहले सत्ताधारी कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ये मानकर चल रहे थे कि जेडीएस से उसे कोई टक्कर नहीं मिलने वाली. लेकिन, चीजें बदल रही हैं. कुमारास्वामी लगातार सही दिशा में मेहनत कर रहे हैं. इससे कांग्रेस की चिंता बढ़ रही है. कुमारास्वामी को जनता का जैसा समर्थन मिल रहा है, उससे ओल्ड मैसूर में चीजें बदल सकती हैं. यहां गौड़ाओं की हमेशा से मजबूत पकड़ रही है.
बीजेपी भी दबी जुबान से ओल्ड मैसूर क्षेत्र में जेडी (एस) के लिए बड़ी जीत की उम्मीद कर रही है, क्योंकि ऐसा होने पर राज्य में कांग्रेस का कुल आंकड़ा कम हो जाएगा. कांग्रेस और जेडी(एस) के बीच करीब 75 विधानसभा सीटों पर सीधा मुकाबला है. कांग्रेस और बीजेपी बाकी हिस्सों में आमने-सामने हैं. बता दें कि कर्नाटक विधानसभा में 224 सीटें हैं.
कुमारस्वामी की रैलियों में जुट रही है भारी भीड़
कुमारस्वामी ने पांच महीने पहले एक हार्ट सर्जरी कराई थी. इसके बाद उन्होंने बहुत जल्द रिकवर किया. ये सर्जरी काफी जटिल थी. ऐसे में ज्यादा दूर तक चलना और ज्यादा बोलना उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं है. ऐसे में कुमारास्वामी एक खास तरह से डिजाइन की गई बस से यात्रा करते हैं. जिसमें झटके नहीं लगते. वो इसी बस से रैली स्थल पर जाते हैं और कुछ मीटिंग करते हैं.
राज्य के मैसूर, हासान, मांड्या, टुमकुर और यहां तक कि बेंगलुरु के बाहरी इलाकों में हुई कुमारास्वामी की रैलियां भारी भीड़ जुटाने में कामयाब रही. राजनीति विश्लेषकों और कुमारास्वामी के विरोधियों की इसपर जरूर नजर पड़ी होगी.
देवगौड़ा के पुराने सहयोगी प्रोफेसर सी. नरसिम्हप्पा के मुताबिक, जेडीएस के साथ वोक्कलिंगा वोटों की एक बड़ी संख्या है, जो राज्य में त्रिशंकु विधानसभा बना सकती है. बाप-बेटे दोनों मिलकर इसकी कोशिश में जुटे हैं.
पार्टी के पास आखिरी मौका
नरसिम्हप्पा ने कहा, 'देवगौड़ा और कुमारास्वामी जानते हैं कि कर्नाटक और राष्ट्रीय राजनीति में बने रहने का ये उनके लिए आखिरी मौका है. अगर चुनाव में कांग्रेस जीतती है या फिर बीजेपी की सरकार बनती है, तो जेडीएस का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. जेडीएस की हालत वही हो जाएगी, जो यूपी में अजित सिंह की पार्टी आरएलडी के साथ हुई है. ऐसे में उनकी पूरी कोशिश राज्य में खंडित जनादेश की स्थिति बनाने की है. अगर वाकई ऐसा हुआ, तो जेडीएस कांग्रेस और बीजेपी से मजबूत बारगेनिंग (सीटों का जोड़-तोड़) कर पाएगी. अगर ऐसा नहीं हुआ, ये पार्टी खत्म हो जाएगी. क्योंकि, बीजेपी या कांग्रेस में से कोई भी 100 से ज्यादा सीटें जीत लेती है, तो ये पार्टियां जेडीएस के विधायकों को हाईजैक कर लेंगी.'
बीजेपी नहीं चाहेगी राज्य में त्रिशंकु विधानसभा
उन्होंने कहा कि अगर जेडीएस को बीजेपी की टीम बी बताने वाला राहुल गांधी और सिद्धारमैया के आरोपों में थोड़ी बहुत भी सच्चाई है, तो भगवा पार्टी यानी बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा बने. ऐसे में बीजेपी की कोशिश होगी कि जेडीएस कांग्रेस के वोट पर सेंध डाले, जहां उसकी पकड़ कमजोर है. 2006-2007 में कुमारास्वामी के साथ की गई '20-20 एक्पेरिमेंट' की यादें बीजेपी नेतृत्व अभी भूली नहीं होगी. ऐसे में बीजेपी इस बार कोई प्रयोग करने के मूड में नहीं दिख रही.
मैं जीतने के लिए आया हूं, किसी की मदद करने के लिए नहीं
कुमारास्वामी ने कहा कि मैं रेस में जीतने के लिए आया हूं, न कि किसी की मदद करने के लिए. जेडीएस किसी पार्टी की बी टीम नहीं है. ये लड़ाई हमारे खुद के लिए है. चुनाव के बाद जेडीएस पूर्ण बहुमत से सत्ता में आएगी. बीजेपी और कांग्रेस चुनाव के बाद धूल फाकेंगे. उन्होंने कहा कि सिद्धारमैया बेचैन हैं और झूठ बोल रहे हैं. येदियुरप्पा ने मुझे और मेरे पिता का नाम लिया है. आपको लगता है कि हम उन्हें सपोर्ट करेंगे.
कुमारास्वामी ने कहा कि जेडीएस के पक्ष में चीजें जा रही हैं. रैलियों में भारी तादाद में जुट रही लोगों की भीड़ इसका सबूत है. मेरी लोकप्रियता सिद्धारमैया और येदियुरप्पा से कहीं ज्यादा है. पहले हो चुकी कई सर्वे में ये बात साबित भी हो चुकी है. मैं जनता के करीब हूं और वे मेरा साथ जरूर देंगे.
ये जरूरी नहीं कि ज्यादा भीड़ का मतलब ज्यादा वोट
लेकिन, ज्यादा भीड़ का मतलब ज्यादा वोट मिलना नहीं होता. जेडीएस के एक नेता का कहना है, "कुमार अन्ना फिल्म स्टार की तरह हैं. लोग उन्हें इसलिए देखने आते हैं, क्योंकि वो एक संवेदशील और विनम्र इंसान हैं. वो जमीन से जुड़े हुए हैं. पूर्व पीएम देवगौड़ा के बेटे हैं. लेकिन इन सबका ये मतलब नहीं है कि कुमारास्वामी को देखने आने वाली जनता चुनाव में उनके लिए वोट भी करेगी."
राज्य के कुछ कांग्रेस नेताओं का मानना है कि राहुल गांधी और सिद्धारमैया को रैलियों में देवगौड़ा और कुमारास्वामी पर निशाना साधने से बचना चाहिए था. क्योंकि, इससे आपके वोट बैंक को नुकसान हो सकता है. कांग्रेस नेता का कहना है कि एक ही वक्त में दो तरफ लड़ने से बेहतर है कि कांग्रेस फिलहाल बीजेपी पर फोकस करे.
बहरहाल, जो भी हो, फिल्म प्रोड्यूसर रह चुके कुमारास्वामी चुनाव के लिए कमर कस चुके हैं. उनका कहना है कि उन्हें जीतने का पूरा भरोसा है. विपक्ष क्या कहता है, इससे उन्हें फर्क नहीं पड़ता.
(न्यूज-18 के लिए डीपी सतीश की रिपोर्ट)
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