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कर्नाटक चुनाव: बंद और नदी जल विवाद के सहारे चुनावी नैया पार करने की जुगत में लगी हैं पार्टियां

बृहस्पतिवार का बंद चुनाव की बेला में राजनीतिक प्रपंच था, कर्नाटक में एक नई शैतानी खोज

Updated On: Jan 27, 2018 03:02 PM IST

Srinivasa Prasad

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कर्नाटक चुनाव: बंद और नदी जल विवाद के सहारे चुनावी नैया पार करने की जुगत में लगी हैं पार्टियां

केरल के सफल बंद यहां के अनूठे शास्त्रीय नृत्य कथकली की ही तरह कला के एक शानदार नमूने होते हैं. इसका श्रेय इस राज्य के मार्क्सवादियों को जाता है. ईश्वर के अपने घर में कई बार 'संयोग' से बंद शुक्रवार या सोमवार को पड़ते हैं, जिसमें कि लंबे अलमस्त सप्ताहांत और यहां तक कि कभी-कभी महत्वपूर्ण वन डे क्रिकेट मैच भी पड़ सकते हैं. और अब कर्नाटक में बंद के 'संयोग' महत्वपूर्ण नेताओं के दौरे के समय से होने लगे हैं. इसका श्रेय कर्नाटक की सत्तारूढ़ कांग्रेस को जाता है.

कर्नाटक में महादयी नदी का पानी गोवा से बांटने के विवाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल देने की मांग को लेकर बृहस्पतिवार का बंद  'संयोग' से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के दौरे के दिन था. यह बंद सिर्फ आंशिक रूप से सफल रहा, लेकिन शाह ने बिना समय गंवाए कांग्रेस पर उनकी मैसूर रैली को नाकाम करने के लिए साजिश करने का आरोप लगा दिया. राज्य में करीब तीन महीने के अंदर चुनाव होने हैं- मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 28 मई को खत्म हो रहा है.

इसी मुद्दे को लेकर किसानों ने 4 फरवरी को एक और बंद की धमकी दे रखी है, हालांकि इसे लेकर कुछ अलग विचार भी हैं. अगर यह बंद होता है, तो इसका 'संयोग' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के समय से होगा, जब इसी दिन उनके बेंगलुरु में होने की संभावना है.

अगर आप किसी कारण से ऐसा सोचते हैं कि कर्नाटक के बीजेपी नेता ढीले और आलसी हैं, जो जैसे को तैसा के अंदाज में जवाब देना नहीं जानते तो बता दें कि उन्होंने भी एक दिन बंद 10 फरवरी को रखा है, ठीक उसी दिन जब राहुल गांधी चुनाव प्रचार के लिए बेंगलुरु में पांव रखने वाले हैं.

कर्नाटक में हाल के दिनों में कई बंद पूरी तरह सफल रहे हैं, और इनमें से कुछ ही स्वैच्छिक जन भागीदारी से हुए हैं. एक दुकानदार इस डर से अपना शटर गिरा लेता है कि ऐसा नहीं करने पर उसके साथ कुछ भी हो सकता है. बंद लुटेरों, तोड़फोड़ करने वालों, गुंडों और उन लोगों के लिए जो दुकानदार से हिसाब बराबर करने की ख्वाहिश रखते हैं, सुनहरा मौका मुहैया करते हैं.

बृहस्पतिवार का बंद चुनाव की बेला में राजनीतिक प्रपंच था, कर्नाटक में एक नई शैतानी खोज. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि उनकी पार्टी कांग्रेस का इस बंद से कुछ लेना-देना नहीं है, जिसका आह्वान निश्चित रूप से किसान समूहों और कर्नाटक समर्थक संगठनों ने किया था. लेकिन उन्होंने आंखें फेर लीं और जिन लोगों ने इसका आह्वान किया था, उनके पक्ष में गर्दन हिला दी. यहां तक कि कानून लागू करने वाले अधिकारियों ने भी पल्ला झाड़ लिया और इसकी तरफ से आंखें फेर लीं. स्कूल बंद कर दिए गए और सरकारी बसें व्यावहारिक रूप से चलीं ही नहीं, जिन्होंने बंद को आयोजकों की कल्पना से भी अधिक सफल बना दिया.

Ahmedabad: BJP National President Amit Shah listening to Prime Minster Narendra Modi's "Mann Ki Baat" (a radio programme) over tea, in Ahmedabad on Sunday. PTI Photo by Santosh Hirlekar   (PTI11_26_2017_000112B)

 

इस सांप-सीढ़ी के खेल की जड़ में आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एक दूसरे को मात देने की बीजेपी और कांग्रेस की अधीरता है.

अधीर हो रही हैं पार्टियां

अगले महीने होने वाले तीन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के सामने मुश्किल इम्तिहान हैः त्रिपुरा में 18 फरवरी और नागालैंड और मेघालय में 27 फरवरी को चुनाव हैं. त्रिपुरा में लड़ाई मुख्य रूप से सत्तारुढ़ सीपीएम और बीजेपी के बीच है, जिसमें कांग्रेस भी एक पार्टी है. मेघालय और नागालैंड दोनों में कांग्रेस काफी परेशानी में है.

इन तीनों राज्यों के बाद कर्नाटक में चुनाव का नंबर है, और चाहे आंधी आए या तूफान कांग्रेस इसे बचाना चाहती है. पार्टी के पास शासन करने के लिए सिर्फ कर्नाटक, पंजाब, मेघालय, मिजोरम और पुदुचेरी बचे हैं.

गुजरात में जीत के करीब पहुंचने के बाद, कर्नाटक में सत्ता में वापसी पार्टी के लिए संजीवनी जैसी होगी, जब वह इस साल के अंत में मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में उतरेगी. इससे कांग्रेस को मोलभाव की वह बहुप्रतीक्षित शक्ति भी मिल जाएगी, जिसकी इसे 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन के लिए जूझते हुए होगी.

और बीजेपी के लिए भी यह राज्य वापस पाना इतना ही महत्वपूर्ण है, जिसे इसने पांच साल के विस्मरणीय शासन, जिसमें येदीयुरप्पा समेत तीन मुख्यमंत्रियों की सरकारें आईं और भ्रष्टाचार, अस्थिरता व लंपट किस्म की मॉरल पुलिसिंग के बाद 2013 में गंवा दिया था. बीजेपी 'दक्षिण का प्रवेश द्वार' फिर से खोलना चाहती है, जबकि कांग्रेस इसे मोदी और शाह के लिए बंद ही रखना चाहती है.

Bengaluru : UP Chief Minister Yogi Adityanath, BJP State President B S Yeduyurappa, Union Minister Ananth Kumar, Prakash Javdekar and Sadananda Gowda being garlanded during the BJP Parivartan Rally in Bengaluru on Sunday. PTI Photo by Shailendra Bhojak   (PTI1_7_2018_000091B)

महादयी पर असमंजस में है बीजेपी

इसमें कोई अचंभा नहीं कि दोनों पार्टियां चुनावी दौड़ में ऐसा कोई भी मुद्दा फौरन लपकने को तैयार हैं, जो उन्हें दूसरी पार्टी पर बढ़त दिला दे. महादयी नदी (जिसे गोवा में मांडवी कहते हैं) विवाद इनमें से ही एक है. उत्तर कर्नाटक से शुरू होने वाली महादयी नदी राज्य में 28.8 किलोमीटर बहती है, फिर अरब सागर में मिल जाने से पहले गोवा में प्रवेश के बाद 81.2 किलोमीटर बहती है. सन् 1980 से, जब यह विवाद पहली बार उठा था, कर्नाटक कोई ना कोई प्रोजेक्ट पेश करता रहा है, जिससे इसके उत्तरी जिलों में पेयजल, सिंचाई और ऊर्जा की जरूरतें पूरी करने के लिए नदी का कुछ पानी डायवर्ट किया जा सके.

गोवा इस आधार पर कि, इससे इसकी पानी पर अपनी वैधानिक हिस्सेदारी कम हो जाएगी, इस विचार के एकदम खिलाफ है. गोवा के सुप्रीम कोर्ट और केंद्र के पास जाने के बाद विवाद को हल करने के लिए 2010 में एक ट्रिब्यूनल बनाया गया. ट्रिब्यूनल, जिसका विस्तारित कार्यकाल अगस्त में खत्म होने वाला है, अगले महीने किसी भी समय अंतिम सुनवाई शुरू करने वाला है.

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सिद्धारमैया करीब एक साल से इस मसले को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इस बात ने अमित शाह को पिछले महीने गोवा के बीजेपी के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर और कर्नाटक से पार्टी नेताओं के साथ बैठक के लिए प्रेरित किया. पर्रिकर ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए येदुरप्पा को पत्र लिख कर कहा कि गोवा कर्नाटक के लिए पेजयल के वास्ते पानी छोड़ने को तैयार है. इस पर सिद्धारमैया ने इसे अनुचित करार देते हुए कहा कि पर्रिकर को येदुरप्पा के बजाय उनको पत्र लिखना चाहिए था. इसके बाद अंत में बृहस्पतिवार का बंद आया और शाह बिल्कुल भी अचंभित नहीं थे.

बॉम्बे-कर्नाटक रीजन कही जानी वाली पट्टी में महादयी एक भावनात्मक मुद्दा है, जहां लिंगायत समुदाय के वोट, पार्टी की 2008 की जीत 2013 की हार का प्रमुख कारण थे. येदुरप्पा भी यहीं से आते हैं. इसलिए वह अपनी मैसूर रैली में इसे लेकर आक्रामक रहे, और सिद्धारमैया पर राज्य में बीजेपी और आरएसएस के '22 कार्यकर्ताओं' की हत्या पर उदासीन बने रहने और केंद्र की स्कीमें लागू करने के बजाय टीपू सुल्तान के जन्म दिवस का जश्न मनाने में व्यस्त रहने का आरोप लगाया.

जल्द आने वाला है: कावेरी पर फैसला

जैसे कि एक नदी विवाद काफी नहीं था. कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी के पानी पर विवाद में भी सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला अगले महीने आने की उम्मीद है. अगर उत्तरी कर्नाटक के किसान महादयी विवाद को लेकर आंदोलित हैं, तो कावेरी विवाद राज्य के दक्षिणी हिस्से में राजनीतिक तापमान बढ़ा सकता है.

इसके साथ ही यह भी चल रहा हैः सिद्धारमैया की बेसिरपैर की लोकलुभावन स्कीमें और बीजेपी का दावा कि इसमें से कुछ के लिए मोदी को श्रेय दिया जाना चाहिए, मुख्यमंत्री का मुसलमानों को खुश करने का जरूरत से ज्यादा उत्साह और बीजेपी का उन्हें हिंदू-विरोधी साबित करने पर तुला होना.

जब सिद्धारमैया अपनी लोकलुभाव स्कीमों के बारे में नहीं बता रहे होते हैं, तो वह मोदी के खिलाफ महत्वपूर्ण से लेकर बेहद सतही मुद्दे उठाने में लगे रहते हैं.

सरकार चलाने का मुद्दा? यह नेपथ्य में जा सकता है, और इसे भेजा भी जा चुका है. यह सारी बातें कर्नाटक में ऐसे चुनावी कैंपेन की गारंटी करते हैं, जो अपने तौर-तरीके में इतना शैतानी होगा कि वास्तविक मुद्दों पर ध्यान टिकने ही नहीं देगा.

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