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कैराना उप-चुनाव: क्या एक बार फिर मुसलमान बीजेपी के डर से ‘धर्मनिरपेक्ष' पार्टियों को वोट देगा?

‘धर्मनिरपेक्ष' पार्टी अगर चाहती हैं कि मुसलमान उनको वोट दें तो एक बार झूठा ही सही ये वादा कर दें कि मुजफ्फरनगर 2013 के आरोपियों को सजा दिलाएंगे और शरणार्थियों को वापस उनके घरों में बसायेंगे.

Updated On: May 22, 2018 05:18 PM IST

Saqib Salim

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कैराना उप-चुनाव: क्या एक बार फिर मुसलमान बीजेपी के डर से ‘धर्मनिरपेक्ष' पार्टियों को वोट देगा?

सांसद हुकुम सिंह की मृत्यु के कारण खाली हुई कैराना लोकसभा सीट पर 28 मई को चुनाव होने की घोषणा के साथ ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो चली हैं. फूलपुर और गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में मार्च में हुए बाय इलेक्शन में जीत दर्ज करने के बाद से ही उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों में एक ऊर्जा का संचार हुआ है. इस नए उत्साह के साथ ही एक बार फिर सभी विपक्षी दल मिल कर केवल एक ही प्रत्याशी को मैदान में उतार रहे हैं.

इस चुनाव को इस कारण भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि इसके परिणाम की बुनियाद पर ही ये फैसला होगा कि कौन-कौन से विपक्षी दल 2019 में बीजेपी के विरुद्ध गठबंधन करेंगे और उन की उस गठबंधन में क्या भूमिका होगी. बीजेपी ने जहां एक ओर दिवंगत सांसद हुकुम सिंह की पुत्री मृगांका सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय लोकदल ने समाजवादी पार्टी के समर्थन से पूर्व सांसद मुनव्वर हसन की विधवा तबस्सुम हसन को टिकट दिया है. तबस्सुम के समर्थन में बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस व अन्य छोटे दलों ने भी अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं उतारे हैं.

कुल मिला कर देखा जाए तो ये चुनाव ‘हिंदूवादी’ बीजेपी और ‘धर्मनिरपेक्ष' गठबंधन के बीच है. कम से कम दोनों ही ओर के नेता तो हमें यही यकीन दिलाना चाहते हैं.

जिनकी याद्दाश्त ठीक होगी, उनको याद होगा कि 2013 के अगस्त-सितंबर के दौरान मुजफ्फरनगर में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए थे. इन दंगों में 62 लोगों कि जान गयी थी और लगभग 50,000 बेघर हुए थे. ये बेघर लोग आज तक कैंपों में जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं. बीच-बीच में खबर आती रहती है कि दंगा पीड़ितों के कैंप में ठंड से कुछ बच्चे मर गए, या गर्मी से. खैर यहां ये जानना आवश्यक है कि कैराना लोकसभा में ही शामली जिले का अधिकतर हिस्सा आता है, जहां पर कि 2013 में कत्लेआम हुआ था.

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दंगा पीड़तों के कैंप की तस्वीर ( रॉयटर इमेज )

जो लोग पढ़ते-लिखते हैं उनमें ये आम सहमति है कि मुजफ्फरनगर दंगे 2014 में बीजेपी की जीत का एक बड़ा कारण रहे थे. इस एक मुद्दे ने जो वोटों का ध्रुवीकरण किया था उसने उनको उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व बढ़त दिला दी थी. और यहां ये भी याद रखा जाना चाहिए कि ये सब जब हुआ था तो प्रदेश में सरकार सपा की थी और केंद्र में कांग्रेस थी. ये दोनों ही पार्टियां आज ‘धर्मनिरपेक्ष' गठबंधन का हिस्सा हैं.

अखिलेश यादव जो कि तब मुख्यमंत्री थे उनका दावा है कि मुसलमान, जो कि इस सीट पर 40% हैं, पूरी तरह उनके साथ हैं. इसके साथ ही बसपा के दलित वोट और रालोद के जाट वोट. कुल मिलाकर गणित के हिसाब से रालोद प्रत्याशी तबस्सुम कि जीत आसान नजर आती है.

पर क्यों? ऐसा अखिलेश यादव ने क्या किया है कि मुसलमान उनको वोट दें? उनकी सरकार थी, जब इस क्षेत्र में दंगे भड़के. मुसलमानों को जान का नुकसान हुआ, महिलाओं से बलात्कार हुए, और हजारों मुसलमानों को घर छोड़कर कैंपों में शरण लेनी पड़ी. सोचिए अपने ही देश में हजारों मुसलमान शरणार्थी बन गए. ये लोग आज भी कैंपों में रह रहे हैं. इनके घर, इनकी जमीनें सब पीछे उन गांवों में छूट गए हैं जहां से ये जान बचा कर भागे हैं. अगर अखिलेश जी चाहते हैं कि दंगों की सारी जिम्मेदारी बीजेपी पर थोप दी जाए तो हम उनको वोट क्यों दें?

क्योंकि वो तो दंगा भड़कने की स्तिथि में कानून व्यवस्था संभाल नहीं पायेंगे. चलिए कोई नहीं. हमने माना अखिलेश जी दिल के अच्छे इंसान हैं, धर्मनिरपेक्ष भी हैं बस जरा काबिलियत की कमी है कि कानून व्यवस्था उनकी सरकार में भी विपक्षी बीजेपी के हिसाब से चलती रही. हम ने ये मान लिया. हम ने ये भी मान लिया कि आज़म खान समेत सपा के 64 मुस्लिम विधायक कुछ कर नहीं पाए और उनकी सरकार होते हुए भी बीजेपी ने दंगे करा लिए. 2013 से 2017 तक प्रदेश में सपा की सरकार रही. इतने दिन में क्या वो दंगे के कारण पलायन कर गए गरीब मुसलमानों को वापस उनके घर और खेत दिला पाये? क्या एक भी बलात्कार पीड़ित को इंसाफ दिलाया? क्या एक भी दंगाई को सजा हुई? किसने ‘धर्मनिरपेक्ष' सपा का हाथ चार साल तक पकड़ कर रखा था?

Akhilesh Mayawati

ये तो छोडिये आज भी कोई ‘गठबंधन' का नेता ये कहने को तैयार नहीं है कि सत्ता में आने पर वे 2013 के दोषियों को सजा दिलाएंगे, जिनको घरों से निकाला गया है उनको वापस घरों में बसायेंगे. मुसलमानों से कहा जा रहा है कि ‘धर्मनिरपेक्ष' पार्टियों को वोट दे दो वरना बीजेपी आ जाएगी. मैं पूछता हूं कि बीजेपी आ जाएगी तो क्या हो जायेगा? दंगे होंगे? वो तो आप की सरकार के समय में और भी ज्यादा हुए थे. दंगा पीड़ितों को इंसाफ मिलेगा? इंसाफ तो आपने भी आज तक किसी दंगा पीड़ित को नहीं दिया.

‘धर्मनिरपेक्ष' पार्टी अगर चाहती हैं कि मुसलमान उनको वोट दें तो एक बार झूठा ही सही ये वादा कर दें कि मुजफ्फरनगर 2013 के आरोपियों को सजा दिलाएंगे और शरणार्थियों को वापस उनके घरों में बसायेंगे. वरना तो हबीब जालिब ने कहा ही है;

'दुश्मनों ने दुश्मनी की है, दोस्तों ने क्या कमी की है.'

(लेखक एक स्वतंत्र टिपण्णीकार हैं और मुजफ्फरनगर के रहने वाले हैं.)

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