दिल्ली हाईकोर्ट के एक जस्टिस ने गुरुवार को आय से अधिक संपत्ति मामले में हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह के खिलाफ आरोप तय करने संबंधी निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा कि मामले को शुक्रवार को किसी अन्य जस्टिस के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा.
सीबीआई द्वारा दर्ज मामले में निचली अदालत ने 10 दिसंबर 2018 को वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी और सात अन्य के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया था. इसके बाद 82 वर्षीय कांग्रेस नेता और उनकी पत्नी ने बुधवार को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
निचली अदालत ने आगे की सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तारीख तय की है. इस दिन दंपति और अन्य आरोपियों के खिलाफ औपचारिक रूप से आरोप तय किए जाएंगे.
जांच शुरू करने के लिए हिमाचल सरकार से सहमति आवश्यक
सिंह ने अपनी याचिका में दावा किया कि ऐसा बताया गया है कि भ्रष्टाचार रोकथाम कानून के तहत दर्ज आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति रखने का कथित अपराध हिमाचल प्रदेश में किया गया और जांच शुरू करने के लिए राज्य सरकार की सहमति आवश्यक है.
याचिका में कहा गया है कि निचली अदालत को सहमति के बिना जांच करने के प्रभाव पर विचार करना था और उसे इस कानून पर विचार नहीं करना था कि सहमति आवश्यक है या नहीं.
इसमें कहा गया कि स्पेशल जस्टिस ने यह गलत कहा कि आरोप आईपीसी के तहत लगाए गए थे और आरोप पत्र का संज्ञान लिए जाते समय सिंह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, इसलिए सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अभियोजन के लिए मंजूरी की आवश्यकता नहीं है.
अपराध को उकसावा देने के मामले में उनकी पत्नी समेत सात के खिलाफ आरोप
अदालत ने दिसंबर, 2018 के अपने आदेश में कहा था कि सिंह बिना हिसाब की रकम को सेब की बिक्री से मिली राशि के तौर पर पेश करके, कर प्राधिकारियों को नुकसान पहुंचाना चाहते थे. अदालत ने कथित तौर पर अपराध को उकसावा देने के मामले में उनकी पत्नी और सात अन्य लोगों के खिलाफ भी आरोप तय करने का आदेश दिया था.
मामले के अन्य सात आरोपियों में एलआईसी एजेंट आनंद चौहान, चुन्नी लाल चौहान, जोगिंदर सिंह घाल्टा, प्रेम राज, वी चंद्रशेखर, लवन कुमार रोच और राम प्रकाश भाटिया शामिल हैं.
अदालत ने अपने 105 पृष्ठ के आदेश में कहा था कि वीरभद्र सिंह और आनंद चौहान ने एक सहमति पत्र (एमओयू) पर पूर्व की तारीख देकर ‘कपटपूर्ण तरीके और बेईमानी’ से हस्ताक्षर किए थे ताकि यह धारणा बनाई जा सके कि उन्होंने 15 जून 2008 को इस पर हस्ताक्षर किया था.
केंद्रीय मंत्री रहते जमा की आय से अधिक संपत्ति
इसमें कहा गया था कि चूंकि दस्तावेज को बिना हिसाब के धन को सेब की बिक्री से हुई आय के तौर पर दिखाने के लिए तैयार किया गया था इसलिए वे जालसाजी के लिए आरोपित किए जाने के लिए भी जिम्मेदार हैं.
सीबीआई ने यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रहने के दौरान सिंह के कथित तौर पर आय के ज्ञात स्रोतों से करीब 10 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति जमा करने के मामले में उनके और अन्य के खिलाफ मामला दायर किया था.
500 पृष्ठों से अधिक का आरोप पत्र निचली अदालत में दायर किया गया था जिसमें दावा किया गया था कि सिंह ने करीब 10 करोड़ रुपए की संपत्ति जमा की जो केंद्रीय मंत्री के उनके कार्यकाल के दौरान उनकी कुल आय से 192 प्रतिशत तक अधिक है.
हिमाचल हाईकोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट को किया था मामला ट्रांसफर
नौ लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 109 (उकसाने) और 465 (जालसाजी के लिए सजा) और भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत दंडनीय अपराधों के लिए अंतिम रिपोर्ट दायर की गई. 442 पन्नों के आरोप पत्र में तकरीबन 225 लोगों को गवाह बनाया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से मामला दिल्ली हाईकोर्ट के पास स्थानांतरित कर दिया था. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने छह फरवरी 2016 को सीबीआई से सिंह को गिरफ्तार नहीं करने और उन्हें (सिंह) जांच में शामिल होने का आदेश दिया था.
सीबीआई ने सिंह की गिरफ्तारी पर हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के रोक लगाने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सुप्रीम कोर्ट ने सिंह की याचिका हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से दिल्ली हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दी थी.
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