राहुल गांधी जज लोया केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार नहीं करना चाहते. उनको लगता है कि जज की मौत 'संदिग्ध' हालात में हुई थी, इसलिए उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को मामले में दखल देकर एसआईटी से जांच कराने के लिए को याचिका दी है.
कांग्रेस चाहती है कि जांच टीम में सीबीआई या एनआईए के अफसर शामिल ना किए जाएं, क्योंकि दोनों एजेंसियां केंद्र सरकार के अधीन काम करती हैं. जिस पार्टी ने 60 साल तक देश पर शासन किया, वह सोचती है कि ये एजेंसियां सरकार के असर में हैं और मौजूदा सरकार के निर्देश पर काम करेंगी.
इससे यह सवाल खड़ा होता है कि अगर- सीबीआई और एनआईए इस एसआईटी, अगर भविष्य में बनती है, का हिस्सा नहीं होंगी तो फिर कौन इसका नेतृत्व करेगा या इसका हिस्सा होगा? जाहिर है कि कांग्रेस महाराष्ट्र और गुजरात पुलिस या बीजेपी या एनडीए शासित 19 में से किसी भी राज्य की पुलिस पर भरोसा नहीं करेगी.
लोया केस में कोई नतीजा आए बिना राष्ट्रपति को याचिका देने के पीछे कांग्रेस पार्टी का तर्क और भी रोचक है- सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सिर्फ पीआईएल की सुनवाई कर रहा है. यह तर्क समझ से परे है क्योंकि अनगिनत ऐसे मामले हैं जब निचली और उच्च अदालतों के आदेश पर आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए हैं.
कांग्रेस के लिए ये एक मुद्दा है
कांग्रेस अध्यक्ष ने भारत के राष्ट्रपति के सामने जिस तरीके से अपनी मांग रखी है, उससे साफ पता चलता है कि उनकी पार्टी और सहयोगी (बीजेपी-विरोधी) मुद्दे को गरमाए रखना चाहते हैं, बावजूद इसके कि जज लोया के बेटे अनुज ने पीटीआई को बता दिया है कि उसके 'पिता की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है, हमारा परिवार समझता है कि यह एक प्राकृतिक मौत थी… मैं सुनिश्चित कर चुका हूं और हमें कोई शक नहीं है…यह एक प्राकृतिक मौत थी.'
राहुल ने कहा कि सांसदों में बेचैनी है क्योंकि एक जज (पहले कहा कि हाईकोर्ट का जज, फिर कपिल सिब्बल के ध्यान दिलाने पर सुधार कर कहा सीबीआई कोर्ट जज) की संदिग्ध हालात में मौत हुई है. अगर ठीक से जांच होती है तो यह उनको और उनके परिवार को श्रद्धांजलि होगी. 'चूंकि हमें यह संदिग्ध लग रहा है इसलिए हम बस इतना चाहते हैं कि इसकी स्वतंत्र जांच हो.'
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को स्वीकार कर लिया है और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच मामले की सुनवाई कर रही है. सोहराबुद्दीन शेख के मामले, जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी एक आरोपी हैं, की सुनवाई करते हुए जज लोया की मौत के तीन साल बाद इस केस ने राजनीतिक बिरादरी और मीडिया में गहरी उत्सुकता जगा दी है. इस तरह शेख की मौत के पीछे किसी भी तरह की साजिश के गंभीर मायने हैं, राजनीतिक और कानूनी. सर्वोच्च अदालत का जो भी फैसला हो, कांग्रेस चाहेगी कि जज लोया की मौत पर जनता के बीच बहस और चर्चा जारी रहे.
कांग्रेस-आप गठबंधन की कोई संभावना है?
बजट सत्र के अंतिम दिन पहले पूर्वार्ध में कांग्रेस ने राष्ट्रपति को याचिका देने के लिए समय मांगने को 15 दलों के 114 सदस्यों के हस्ताक्षर जुटा लिए. राहुल गांधी जब राष्ट्रपति को याचिका देकर लौटे और राष्ट्रपति भवन के सामने खड़े होकर मीडिया को ब्रीफ कर रहे थे, खासतौर पर तीन चीजें ध्यान देने लायक थीं- जिनके नतीजे लोया केस से जुदा हैं. पहला, हाल में निर्वाचित आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह राहुल गांधी के बगल में खड़े थे, जो उनकी पार्टी को दिल्ली विधानसभा में शून्य पर पहुंचा देने वाली पार्टी से संभावित गठबंधन का संकेत दे रहा था. पूर्व में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा कांग्रेस को दिए गए इस सुझाव के बाद भी कि विपक्षी एकता के विमर्श में आप को शामिल किया जाए, कांग्रेस ने अभी तक संसद और संसद के बाहर विपक्षी एकता की किसी भी कोशिश से आप को दूर ही रखा था.
आम आदमी पार्टी कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन से उपजी थी, लेकिन बाद में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के खिलाफ अपना रुख नरम करने के कई बार संकेत दे चुके हैं. उन्होंने अपने समर्थकों से गुजरात चुनाव में बीजेपी को हरा सकने वाली पार्टी (इसे कांग्रेस ही समझा जाए) को वोट देने की अपील की थी.
संजय सिंह का राज्यसभा में पहला भाषण, जिसमें उन्होंने बीजेपी पर तीखा हमला बोला, का वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने समर्थन किया था. अब यह समझ पाना मुश्किल है कि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन, जो दिल्ली में आप से दो-दो हाथ कर रहे हैं, इसे किस तरह हजम करेंगे. कांग्रेस-आप की दोस्ती के शुरुआती संकेत ऐसे समय में आए हैं, जब इस बात की मजबूत संभावना दिख रही है कि दिल्ली में आप के 20 विधायकों की सदस्यता चली जाने के बाद अगले कुछ दिनों में एक मिनी आम चुनाव होंगे. दिल्ली और यहां से बाहर के लोगों की भी यह जानने में गहरी रुचि होगी कि कांग्रेस और आप के बीच रिश्ते किस तरह के होंगे.
सिब्बल और राहुल का रुख
दूसरा, कपिल सिब्बल ने अपने नेता राहुल गांधी के कहे बिना ही याचिका और उनके तर्कों के बारे में बताने का जिम्मा अपने सिर ले लिया. कई बार वह राहुल को दरकिनार कर बोले, और कांग्रेस अध्यक्ष से पूछे गए ज्यादातर सवालों का जवाब उन्होंने खुद दिया. एक मौके पर सिब्बल ने कहा, 'मैं मामले में दखल नहीं देना चाहता, लेकिन अमित शाह इस केस में एक आरोपी होने चाहिए.' एक मंझे हुए वकील होने के नाते सिब्बल लोया केस के पहलुओं को बेहतर जानते होंगे, लेकिन पार्टी अध्यक्ष से आगे बढ़कर बोलना ऐसी चीज थी जो आमतौर पर नहीं देखी जाती, कम से कम कांग्रेस पार्टी में तो कभी नहीं.
तीसरा, राहुल ने खुद लोया केस का विषय बदल कर राफेल डील के बारे में बात करना शुरू कर दिया. उन्होंने यह कहते हुए अपनी बात शुरू की 'मैं लोया केस से ध्यान नहीं हटाना चाहता...” लेकिन फिर इस बात पर पहुंच गए कि वह क्यों ऐसा मानते हैं कि भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच हुई राफेल डील संदिग्ध है.
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