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जेएनयू की जंग: मठाधीशी के चक्कर में दोस्त बने 'जानी दुश्मन'

छात्रसंघ चुनाव आते ही हर साल मठाधीशों के भाव बढ़ जाते हैं, इस वक्त अमूमन कोई भी पार्टी इन्हें नाराज करने का खतरा मोल नहीं लेना चाहती है

Updated On: Sep 06, 2017 11:02 AM IST

FP Staff

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जेएनयू की जंग: मठाधीशी के चक्कर में दोस्त बने 'जानी दुश्मन'

सिर्फ मुख्यधारा की राजनीति ही नहीं बल्कि छात्र राजनीति में भी मठाधीश होते हैं. छात्रसंघ चुनावों में तो ये मठाधीश कई बार हार-जीत का मुख्य कारण भी बन जाते हैं. विचारधारा की राजनीति के लिए फेमस जेएनयू भी मठाधीशी के इस रोग से ग्रस्त है.

इस बार जब से जेएनयू छात्रसंघ चुनावों की घोषणा हुई है तब से ये मठाधीश ढाबों और हॉस्टल मेसों में सक्रिय हो गए हैं. दरअसल छात्रसंघ चुनाव आते ही हर साल मठाधीशों के भाव बढ़ जाते हैं. इस वक्त अमूमन कोई भी पार्टी इन्हें नाराज करने का खतरा मोल नहीं लेना चाहती है.

सोशल मीडिया के इस जमाने में तो ऐसे मठाधीशों को एक काम मिल जाता है. ऐसे लोग हर घंटे एक-एक फेसबुक पोस्ट लिखकर और एक-दूसरे को टैग करके जमकर वैचारिक रूप से गरियाते हैं. ‘बाल की खाल’ निकालना किसे कहा जाता है, अगर यह जानना हो तो इनके फेसबुक पोस्ट पढ़िए और मजा लीजिए.

हर साल होता है ‘इंडिपेंडेंट इंटेलेक्चुअल’ का पाला बदल खेल

सबसे दिलचस्प यह होता है कि हर बार इन मठाधीशों के गुट और पसंद बदलते रहते हैं. अब जब सब मठाधीश हैं तो इनके बीच भी आपसी होड़ बनी रहती है. इन लोगों को ऐसा लगता है कि उन्होंने ही पिछले साल अलां-फलां संगठन या उम्मीदवार को जिताया था. सबसे दिलचस्प बात यह है कि हर साल ‘इंडिपेंडेंट इंटेलेक्चुअल’ होने के नाम पर ये पाला बदलते रहते हैं. इसकी वजह से कई बार कभी गहरे दोस्त रहे दो मठाधीश चुनाव के वक्त ‘जानी दुश्मन’ भी बन जाते हैं.

इस बार ऐसा ही जेएनयू के ओबीसी फोरम के साथ हुआ. पिछले साल छिपे रूप से इसके कोर सदस्यों ने बापसा का समर्थन किया था. जो खुलकर सामने आए भी थे तो उन्होंने इसे अपनी व्यक्तिगत राय बताई थी. लेकिन इस बार फोरम में फूट हो गई. फोरम ने बापसा के समर्थन में पर्चा लाया तो फोरम के एक संस्थापक ने नाराज होकर संगठन छोड़ दिया. यह सब कौन सबसे बड़ा मठाधीश है इस चक्कर में हुआ है. कल की 'दांत काटी दोस्ती' आज 'जानी दुश्मनी' में बदल गई है.

इसी तरह के एक और ‘इंडिपेंडेंट इंटेलेक्चुअल’ के ग्रुप में भी घमासान मच चुका है. इस ग्रुप में एआईएसएफ की कैंडिडेट अपराजिता राजा के समर्थन को लेकर बवाल हुआ है. कभी एक साथ देर रात तक कुछ और ‘पीने’ वाले ये लोग आजकल फेसबुक एक-दूसरे को पानी पी-पीकर गरिया रहे हैं.

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'जिन्हें अपनों ने लूटा'

सबसे बुरा हाल पार्टियों से जुड़े मठाधीशों का है. हाल ही में छात्र नेता से ‘निष्पक्ष पत्रकार’ बने एक मठाधीश को फेसबुक पर उनकी तथाकथित 'निष्पक्षता' के लिए लताड़ा जा चुका है. उनके साथ दिक्कत है कि वे अपने संगठन का गुप्त प्रचार करें या पत्रकारिता.

हालांकि यह भी अद्भुत है कि लेफ्ट यूनिटी बनने से कभी जानी दुश्मन रहे मठाधीश आज गहरे दोस्त बन गए हैं. यह अलग बात है कि ऐसे लोगों के भीतर एक आरामतलबी भी दिख रही है. अभी तक अगर उम्मीदवारों, समर्थन और प्रचार के लिहाज से देखें तो लेफ्ट यूनिटी काफी आगे दिख रही है. लेकिन लेफ्ट यूनिटी का अभी हिस्सा रही आइसा इस ‘आरामतलबी’ की वजह से एक-दो बार कुछ सीटें गंवा भी चुकी है. वैसे बाहर और भीतर से लेफ्ट यूनिटी पूरी तरह एकजुट है.

इस बार मठाधीशी का सबसे अधिक खामियाजा एबीवीपी को भुगतना पड़ रहा है. संगठन से खुलेआम विद्रोह करके उनके दो पुराने कार्यकर्त्ता अध्यक्ष और सहसचिव पद पर लड़ रहे हैं. अंदरखाने संगठन कई गुटों में बंट गया है.

हालांकि लोग एक-दूसरे से नाराजगी खुलकर नहीं दिखा रहे हैं लेकिन उनके जोश में कमी और उत्साह को देखकर आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि कौन किसके साथ है. वैसे वोटिंग सभी गुट एबीवीपी को ही करेंगे बस किसी और को शायद पिछली बार की तरह वोट करने को नहीं कहेंगे.

इसी तरह की खबरें बापसा के भीतर से भी आ रही हैं. उनके जुलूस में पिछले साल की तुलना में भारी गिरावट आई है. कई लोग इसकी मुख्य वजह संगठन के भीतर उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत के मठाधीशों के बीच हुए विवाद को बता रहे हैं.

बहरहाल जो भी हो मठाधीशों का उत्साह अपने चरम पर है. सभी अपने-अपने पसंदीदा पार्टियों और उम्मीदवारों के पक्ष में आंकड़ों सहित फेसबुक से लेकर ढाबों पर गुणगान में व्यस्त हैं. इसके साथ-साथ एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कवायद भी काफी तेज हो गई है. अब देखना यह है कि क्या इस बार किस ग्रुप के मठाधीश की मठाधीशी रंग लाएगी.

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