1991 में करुणानिधि को हराने के बाद जयललिता पहली बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं, तब से अब तक वे चाहे सत्ता में रहीं या विपक्ष में, तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य पर निरन्तर छाई रहीं. जयललिता के राजनीतिक मेंटर एम जी रामचन्द्रन के निधन (1988) के बाद के दृश्य आज भी लोग भूले नहीं है, जब राजनीतिक विरासत को लेकर उनकी पत्नी जानकी रामचन्द्रन और जयललिता के बीच कड़ा संघर्ष हुआ था.
जानकी और जयललिता के बीच इस बात को लेकर सार्वजनिक विवाद हुआ था कि एमजीआर की शवयात्रा में पार्थिव शरीर के निकट कौन बैठे. उस वक्त जयललिता को चेन्नई की सड़कों पर अपमान का जहर पीना पड़ा था. फिर एक साल के बाद 1989 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि एमजीआर की राजनीतिक विरासत की असली हकदार जयललिता ही हैं.
डीएमके सदस्यों ने की थी जयललिता के साथ हाथापाई
कुछ ही महीनों के बाद तमिलनाडु विधानसभा में मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के इशारे पर डीएमके के सदस्यों ने जयललिता के साथ हाथापाई की जिसमें उनके कपड़े भी फट गए. इस शर्मनाक घटना के बाद तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता की लोकप्रियता का ग्राफ काफी ऊपर चला गया और 1991 में विधानसभा चुनाव के बाद वे मुख्यमंत्री बन गईं.
तमिलनाडु की जनता के बीच उनकी लोकप्रियता इस हद तक बनी रही कि एआईएडीएमके पार्टी पर उनका एकछत्र राज रहा. पार्टी के भीतर उनकी छवि एक कल्ट नेता के रूप में बनी रही, जहां उनके नेतृत्व को किसी भी स्तर पर चुनौती देनेवाले का जन्म अब तक नहीं हुआ. पार्टी के सभी नेताअों को उनके सामने साष्टांग करना पड़ता था.
जयललिता ने महिलाअों के लिए काफी काम
तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनने के बाद जयललिता ने महिलाअों के अधिकारों को सुरक्षित करने के विशेष प्रयास किए. पुलिस में 30 फीसदी स्थान महिलाअों के लिए आरक्षित कर हर जिले में महिला थानों की स्थापना की. प्रशासन में हर स्तर पर महिलाअों को रोजगार उपलब्ध कराया गया. नतीजा यह हुआ कि महिलाअों के बीच जयललिता की लोकप्रियता आज भी बनी हुई है.
डीएमके नेता करुणानिधि ने जयललिता के खिलाफ भ्रष्टाचार के अनेक मामले दर्ज करके उनके राजनीतिक जीवन को खत्म करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें विफलता ही हाथ लगी. जयललिता के खिलाफ दायर मुकदमों के संदर्भ में वर्तमान वित्त मंत्री व वकील अरुण जेटली ने भी मदद की थी. इस मदद का ही नतीजा है कि जयललिता व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बने हुए हैं.
'वाजपेयी सरकार गिर जाए तो जयललिता प्रधानमंत्री बन सकती हैं'
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने के बाद जयललिता की नजरें दिल्ली की राजनीति पर भी लगी हुई थीं. 1998 के अंत में डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को गिराने की योजना के तहत जयललिता से संपर्क किया और उनसे कहा कि अगर वाजपेयी सरकार गिर जाए तो वे प्रधानमंत्री बन सकती हैं.
जनवरी 1999 में डा. स्वामी ने दिल्ली में चर्चित चाय-पार्टी का आयोजन किया, जिसमें कांग्रेस सोनिया गांधी व जयललिता ने भाग लिया. नौसेना में एक वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति के सवाल पर तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांन्डिज व जयललिता के बीच विवाद हो गया था. नाराज जयललिता ने वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और एक वोट से वाजपेयी सरकार गिर गई.
फिर जब पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव लेकर लालू प्रसाद यादव व जयललिता सोनिया गांधी के घर पहुंचे तो उन्हें दरवाजे पर ही कह दिया कि मेरे नेतृत्व में ही सरकार बनेगी. तब सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति के सामने दावा किया था कि उन्हें 272 लोकसभा सांसदों का समर्थन प्राप्त है.
राजीव-सोनिया के साथ जयललिता के राजनीतिक रिश्ते सहज नहीं रहे
राजीव गांधी व सोनिया गांधी के साथ जयललिता के राजनीतिक रिश्ते कभी सहज नहीं रहे. राजीव गांधी द्वारा भारतीय सेना को श्रीलंका में लिट्टे के खिलाफ भेजने के निर्णय से दोनों ही द्राविड़ पार्टियां कांग्रेस से नाराज रही हैं. तमिलनाडु में पिछले 25 सालों का राजनीतिक इतिहास करुणानिधि बनाम जयललिता के बीच ही रहा है.
करुणानिधि ने जयललिता को भ्रष्टचार के मामले में जेल भिजवाया तो जयललिता ने सत्ता में आते ही करुणानिधि को जेल की हवा खिलाई. तमिलनाडु के इन दो राजनेताअों के बीच रिश्ते कभी भी सामान्य नहीं रहे.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी दिल्ली योजना के तहत जयललिता के साथ अच्छे रिश्ते बनाए. 2011 में जयललिता के शपथ समारोह में मोदी चेन्नई पहुंचे थे तो 2012 में जयललिता अहमदाबाद में मोदी के शपथ समारोह में मौजूद थीं. 2014 में मोदी ने बहुत कोशिश की कि जयललिता एनडीए सरकार का हिस्सा बनें, लेकिन जयललिता तैयार नहीं हुईं.
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