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तीन तलाक बिल पर जेडीयू के सदन बहिष्कार के क्या मायने हैं ?

तीन तलाक बिल को पास कराने में अपनी सहयोगी पार्टी जेडीयू का समर्थन नहीं मिलने पर बीजेपी को बड़ा झटका लगा है, जेडीयू पहले भी कई मामलों में बीजेपी के खिलाफ नजर आई है, चाहे वो राम मंदिर का मसला हो या ट्रिपल तलाक बिल का

Updated On: Jan 04, 2019 10:48 PM IST

Pankaj Kumar Pankaj Kumar

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तीन तलाक बिल पर जेडीयू के सदन बहिष्कार के क्या मायने हैं ?

जेडीयू के राज्यसभा सांसद और बिहार के अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा है कि तीन तलाक बिल के पक्ष में हमलोग नहीं हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि एक बड़े समुदाय की परंपरा में कुछ तौर तरीके बने हुए हैं. इस ट्रिपल तलाक से लाखों महिलाएं प्रभावित होंगी. इस पर उस समुदाय के लोगों से उनकी भावनाओं के साथ बातचीत करके एक समाधान निकालना चाहिए.

जेडीयू अध्यक्ष ने साफ तौर पर कहा कि वर्तमान स्वरूप में ट्रिपल तलाक के हम लोग पक्षधर नहीं हैं. उनकी पार्टी वोटिंग के समय क्या करेगी ? इस सवाल पर उन्होंने साफ कर दिया कि हम इस बिल के समर्थन में वोट नहीं करेंगे.

राज्यसभा में जेडीयू के 6 सांसद हैं. सरकार के लिए इन 6 सांसदों की ज्यादा जरूरत है, जब सरकार के पास सदन में बहुमत नहीं है और तीन तलाक बिल को पास कराने में उसे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे वक्त में अपनी सहयोगी पार्टी जेडीयू का समर्थन नहीं मिलने से उसे बड़ा झटका लगा है.

गौरतलब है कि लोकसभा में भी तीन तलाक बिल पर वोटिंग के दौरान जेडीयू के 2 लोकसभा सांसदों ने अपने-आप को अलग रखा. जेडीयू के इस रवैये के बाद कांग्रेस को इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का बड़ा मौका मिल गया है.विपक्षी दल इसे जेडीयू का अंतरविरोध बता रहे हैं, जबकि, बीजेपी के बिहार के नेता इसे जेडीयू का पुराना स्टैंड बताकर मामले से पीछा झाड़ रहे हैं.

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दरअसल, जेडीयू की तरफ से पहले भी इस मुद्दे पर अपनी राय कुछ इसी तरह से दी गई है. विधि आयोग को भी तीन तलाक के मुद्दे पर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लिखित रूप में अपनी राय देते हुए कुछ ऐसा ही किया था. नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर अपना विरोध प्रकट किया था. उस वक्त उन्होंने साफ किया था कि किसी भी संप्रदाय विशेष पर ऐसी कोई नीति नहीं थोपी जानी चाहिए, जबतक उस समुदाय के भीतर से उस मुद्दे पर सर्वसहमति न हो जाए.

क्या है जेडीयू की रणनीति ?

Patna: Bihar Chief Minister Nitish Kumar receives greetings from speaker Vijay Chaudhary during special session of Bihar Vidhan Sabha in Patna on Friday. PTI Photo(PTI7_28_2017_000081B)

दरअसल जेडीयू की नीति बीजेपी से हमेशा से ही अलग रही है. बिहार में साथ-साथ चुनाव लड़ने के बावजूद पहले से भी जेडीयू का स्टैंड कई मुद्दों पर बिल्कुल अलग रहा है. बीजेपी से गठबंधन के बाद राम मंदिर, धारा 370 और समान आचार संहिता जैसे मुद्दे ठंढ़े बस्ते में पहले ही जा चुके हैं. जेडीयू पहले से ही कहता रहा है कि ये मुद्दे बीजेपी के हो सकते हैं, लेकिन, एनडीए के नहीं.

अभी हाल ही में बिहार में बीजेपी, एलजेपी और जेडीयू के बीच सीटों के ऐलान के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी मंदिर मुद्दे को लेकर कुछ ऐसा ही बयान दिया था. उनका कहना था कि एनडीए का पहले से ही स्टैंड साफ है कि या तो अदालती फैसले या फिर आपसी सहमति के आधार पर ही इसका समाधान निकालना चाहिए.

जेडीयू की तरफ से ये सारी कवायद अपने जनाधार को ध्यान में रखकर की जाती रही है. पार्टी इस बात को समझती है कि बिहार में अल्पसंख्यक समाज के वोट के लिहाज से उन्हें बीजेपी के साथ रहते हुए भी अपनी छवि बीजेपी से अलग दिखाने की जरूरत है. इसका फायदा पार्टी को मिला भी है. बिहार में अल्पसंख्यक समुदाय में खासतौर से पसमांदा मुसलमानों का एक बड़ा तबका जेडीयू के साथ रहा है.

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भी सेक्युलर छवि रही है. 2013 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर नरेंद्र मोदी के नाम को आगे बढ़ाने के बीजेपी के फैसले के बाद जेडीयू ने अपने-आप को एनडीए से अलग कर लिया था. बाद में बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त आरजेडी और कांग्रेस के साथ जेडीयू ने महागठबंधन बनाकर बीजेपी को मात दे दी थी. इस महागठबंधन का चेहरा नीतीश कुमार थे, जिनकी छवि और बेहतर समीकरण के चलते जेडीयू को मुस्लिम समाज को वोट मिला था.

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अब जेडीयू फिर से बीजेपी के साथ आ गई है. लेकिन, नीतीश कुमार ने पहले ही साफ कर दिया है कि वो किसी भी कीमत पर सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार दोनों से समझौता नहीं करेंगे. जेडीयू की कोशिश है कि महागठबंधन में रहते हुए जो मुस्लिम वोटर उनके साथ जुडे थे, अब एनडीए में रहते हुए भी उनसे दूर न जाएं. तीन तलाक के मुद्दे पर एनडीए में रहते हुए भी बीजेपी के साथ खड़ी न होकर जेडीयू ने अपनी इसी रणनीति का परिचय दिया है.

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