केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी एक ‘डूबते राजवंश’ को बचाने के लिए झूठ पर झूठ फैलाने में लगी है.
जेटली ने फेसबुक पर अपनी एक टिप्पणी में भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) राजीव महर्षि पर राफेल मामले के ऑडिट में हितों के टकराव के आरापों को भी खारिज किया. उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय में 2014-15 के अपने कार्यकाल के दौरान महर्षि ने लड़ाकू विमान सौदे से जुड़ी कोई भी फाइल या दस्तावेज को नहीं देखा.
कैग और निर्णय प्रक्रिया में उनकी भागीदारी को लेकर गढ़ा गया
जेटली ने ‘डूबते राजवंश परिवार’ को बचाने के लिए और कितने झूठ बोले जाएंगे’ शीर्षक से डाली गई अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा है, ‘डूबते राजनीतिक परिवार को बचाने के लिए और कितने झूठ बोलने की जरूरत पड़ेगी? निश्चित रूप से भारत इससे बेहतर चीज का हकदार है.’
उन्होंने कहा कि इस झूठ छुआ-छूत का प्रभाव काफी बढ़ गया. कांग्रेस द्वारा फैलाये जा रहे झूठ का असर अब ‘महाझूठबंधन’ के उसके दूसरे साथियों पर भी दिखने लगा है.
जेटली ने कहा, ‘राफेल सौदे में जहां हजारों करोड़ों रुपए के सरकारी धन की बचत की गई है, उसको लेकर रोजाना एक नया झूठ खड़ा किया जा रहा है. इस मामले में ताजा झूठ मौजूदा कैग और निर्णय प्रक्रिया में उनकी भागीदारी को लेकर गढ़ा गया है.’
मौजूदा कैग राजीव महर्षि 2014-15 में आर्थिक मामलों के सचिव के तौर पर वित्त मंत्रालय में कार्यरत थे. मंत्रालय में सबसे वरिष्ठ अधिकारी होने की वजह से उन्हें वित्त सचिव के तौर पर नामित किया गया.
जेटली ने फेसबुक पोस्ट में कहा, ‘मैं गलत साबित होने के डर के बिना यह कह सकता हूं कि राफेल विमान सौदे से जुड़ी कोई भी फाइल और दस्तावेज कभी भी उनके (महर्षि) के पास नहीं गई और न ही रक्षा खरीद के इस सौदे से वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से जुड़े थे. सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा किए जाने वाले खर्च पर सचिव (व्यय) की मंजूरी लेनी होती है.’
जेटली ने कहा कि यह समझ से परे है कि कैग के खिलाफ इस तरह का हितों के टकराव का झूठ क्यों उठाया जा रहा है जो कि कभी था ही नहीं. जेटली ने कहा कि ‘यह राजनीतिक परिवार जानता है कि 500 करोड़ बनाम 1,600 करोड़ रुपए की उसकी बच्चों की कहानी कपोल कल्पित कहानी है. इस कहानी पर कोई विश्वास नहीं करता है. तथ्य इसका साथ नहीं देते. (इसीलिए) कैग रिपोर्ट के निष्कर्ष प्रकाशित होने से पहले ही कैग जैसी संस्था के खिलाफ पेशबंदी कर हमला शुरू कर दिया गया.’
केंद्रीय मंत्री ने राहुल गांधी का नाम लिये बिना ही कहा कि इस ‘राजवंश के लाडले’ और उनके मित्रों ने इससे पहले राफेल को लेकर दायर रिट याचिका को खारिज किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट को भी कटघरे में खड़ा किया था.
जेटली ने कहा कि राफेल कीमत को लेकर कांग्रेस के पूरे आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत हैं और इससे संबंध में जो प्रक्रियागत मुद्दे जो उठा रहे हैं कि कोई रक्षा खरीद परिषद नहीं थी, कोई सीसीएस नहीं थी, कोई अनुबंध बातचीत समिति नहीं थी, सरासर झूठ है.
उन्होंने कहा, ‘एक निजी कंपनी को जिस 30,000 करोड़ रुपए देने की बात की जा रही है वह कहीं है नहीं. एक अखबार द्वारा दस्तावेज के एक हिस्से का इस्तेमाल करना अपने आप में अप्रत्याशित है. अधूरे दस्तावेज का इस्तेमाल करना निश्चित तौर पर बोलने की आजादी की भावना के अनुरूप नहीं हो सकता.’
जेटली ने कहा कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध किसी शर्त के न होने का तर्क इस तथ्य की अनदेखी करता है कि रूस और अमेरिका के साथ पहले हुए अंतर-सरकारी सौदों में भी इस तरह के अनुबंध नहीं थे. अब अंश मात्र सच्चाई के बिना भी कैग के खिलाफ हितों के टकराव का आरोप गढ़ा जा रहा है.
भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी एक राजवंश की कैदी हो चुकी है
जेटली ने कहा कि सत्य बेशकीमती और पवित्र होता है. परिपक्व लोकतंत्र में जो लोग जानबूझ कर झूठ का सहारा लेते हैं वे सार्वजनिक जीवन से लुप्त हो जाते हैं. आज की दुनिया में राजवंशों की अपनी अंतर्निहित सीमाएं होती है. प्रगति की अभिलाषा रखने वाला समाज राजतंत्र को पसंद नहीं करता. ऐसे समाज के लोग जवाबदेही और काम देखना पसंद करते हैं. लेकिन भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी एक राजवंश की कैदी हो चुकी है.
इसके तमाम वरिष्ठ नेताओं में साहस और नैतिक अधिकार नहीं है कि वह इस परिवार के लोगों को रास्ता बदलने की सलाह दे सकें.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेताओं में यह प्रवृत्ति 70 के दशक में शुरू हुई. आपातकाल के समय यह पराकाष्ठा पर थी और उसके बाद भी यह बनी हुई है. (पार्टी) के वरिष्ठ नेताओं की ‘गुलाम’ की सोच के कारण उन्हें ‘राजवंश’ की स्तुतिगान करना ही अच्छा लगता है. इसके विरुद्ध कोई बात करने से उनका राजनीतिक जीवन खत्म हो सकता है. इसलिए जब ‘राजपरिवार का यह व्यक्ति’ बोलता है तो वे भी स्वर में स्वर मिलाने लगते हैं.
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