live
S M L

राजस्थान का रण: सिंहासन छिनने न पाए इसलिए रथयात्रा का ब्रह्मास्त्र चलाएंगी महारानी

रणभेरी अभी बजी नहीं है लेकिन सेनाओं को सजाने का काम शुरू कर दिया गया है

Updated On: Jul 12, 2018 04:26 PM IST

Mahendra Saini
स्वतंत्र पत्रकार

0
राजस्थान का रण: सिंहासन छिनने न पाए इसलिए रथयात्रा का ब्रह्मास्त्र चलाएंगी महारानी

रणभेरी अभी बजी नहीं है लेकिन सेनाओं को सजाने का काम शुरू कर दिया गया है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने एकबार फिर ताजपोशी के लिए रथयात्रा को ही ब्रह्मास्त्र के रूप में काम में लेने की रणनीति तैयार कर ली है. वे 1 अगस्त से चुनावी रथयात्रा शुरू कर रही हैं. इसका नाम होगा, सुराज गौरव यात्रा.

2 दिन पहले ही दिल्ली में अहम बैठक हुई जिसमें रथयात्रा की रणनीति बनी. इस बैठक में अमित शाह, खुद वसुंधरा राजे, प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी, संगठन महामंत्री चंद्रशेखर और सह संगठन मंत्री वी सतीश मौजूद थे.

पार्टी ने कमजोर कड़ी समझे जा रहे राजस्थान पर विशेष प्रयास शुरू कर दिए हैं. रथयात्रा के अलावा अमित शाह के दौरे भी लगातार होते रहेंगे. बूथ मैनेजमेंट की चर्चा भी दोबारा से उठी है. हर बूथ पर 5 स्मार्ट फोन और 5 बाइक मुहैया कराने की योजना को शाह ने हरी झंडी दे दी है. मोदी के करिश्मे को भी पूरी तरह भुनाने की तैयारी है. राजे की कोशिश है कि सुराज गौरव यात्रा की समापन रैली मोदी के हाथों ही सम्पन्न हो.

नई नहीं है रथयात्रा की रणनीति

राज्य में चुनाव शायद नवंबर के आखिर में होंगे. इसमें अब महज 4 महीने का वक्त बचा है. जाहिर है अब मतदाताओं तक पहुंचने के लिए ज्यादा समय नहीं है. ऐसे कम समय मे चुनावी यात्राएं ही सबसे कारगर उपाय होती हैं. ऐसी यात्राओं के जरिये पार्टियां और नेता मतदाताओं से सीधे संपर्क कर पाते हैं.

अतीत में हमने इन यात्राओं की काफी सफलता भी देखी हैं. 2004 में आंध्र में जब चंद्रबाबू अजेय नजर आ रहे थे तब वाई एस आर ने पैदल यात्रा निकाल न सिर्फ आंध्र में सत्ता हासिल की बल्कि 33 से ज्यादा लोकसभा सीट हासिल कर केंद्र में भी कांग्रेस को मजबूत किया. कर्नाटक और तमिलनाडु में भी ऐसे सफल उदाहरणों की कमी नहीं है.

राजस्थान में ही वसुंधरा राजे पहले भी ऐसी राजनीतिक यात्रा निकाल चुकी हैं. 2003 में परिवर्तन यात्रा और 2013 में सुराज संकल्प यात्रा के नाम से निकाली गई इन यात्राओं ने उन्हें झोली भर-भर कर सीटें भी दी थी. 2003 में बीजेपी ने इतिहास में पहली बार 120 से ज्यादा सीटें हासिल की थीं. 2013 में तो 80% से ज्यादा सीटें बीजेपी के पक्ष में आ गई थीं.

लेकिन एक बात है जो इस बार सुराज गौरव यात्रा की सफलता को संदिग्ध बनाती है. दरअसल, इतिहास में ऐसी चुनावी यात्राओं की सफलता में एक बड़ा फैक्टर एन्टी इनकमबैंसी भी रहा है. यानी विपक्षी पार्टी को ही ऐसी यात्राओं का चुनावी फायदा मिलता देखा गया है. सत्ता में रहते हुए और तब जब माहौल पूरी तरह पक्ष का न हो, तब ये देखने वाली बात होगी कि मतदाता इस रथयात्रा से कितना जुड़ पाएगा.

बदलते रहे हैं वसुंधरा के सारथी

भैरो सिंह शेखावत

भैरो सिंह शेखावत

2003 में पहली बार बीजेपी भैरों सिंह शेखावत की अगुवाई के बिना मैदान में उतरी थी. शेखावत और जसवंत सिंह की सलाह पर ही वसुंधरा को केंद्र से राज्य में भेजा गया था. तब चुनावी रणनीति के चाणक्य बने थे प्रमोद महाजन. जबकि परिवर्तन यात्रा में राजे के सारथी बने थे चंद्रराज सिंघवी.

2013 आते-आते बीजेपी के रणनीतिकार और राजे के सारथी, दोनों ही बदल चुके थे. प्रमोद महाजन की हत्या से बहुत पहले ही चंद्रराज सिंघवी और राजे के रास्ते अलग हो चुके थे. लिहाजा 2013 की सुराज संकल्प यात्रा की रणनीति बना रहे थे केंद्र से भेजे गए भूपेंद्र यादव.

2018 में अब फिर सुराज गौरव यात्रा का कार्यक्रम बना है. इस बार राजे के सारथी होंगे उनके पुराने 'यस मैन' कहे जाने वाले मौजूदा सामाजिक कल्याण मंत्री अरुण चतुर्वेदी. जबकि रणनीतिक टीम में इनके अलावा शामिल किए गए हैं मदन लाल सैनी, वी सतीश और भूपेंद्र यादव.

...लेकिन जातियों को साधना है टेढ़ी खीर

7 जुलाई की प्रधानमंत्री की रैली के बाद पार्टी की कोर कमेटी में जो प्रमुख मुद्दा उठा, वो था जातियों को साधने का मुद्दा. बीजेपी के सामने इस वक्त कांग्रेस से बड़ी चुनौती है सोशल इंजीनियरिंग को सुलझाना. गणित पूरी तरह उलझी हुई है. सबसे ज्यादा पेचीदा है राजपूत-जाट, गुर्जर-माली और दलितों को साधना. राजपूत संगठन रह-रह कर विरोध के सुर बुलंद कर रहे हैं.

जाट पूरी तरह बीजेपी के पक्ष में नहीं हैं. अगर राजपूत बड़े स्तर पर और खुलकर कांग्रेस के पक्ष में गए तो हो सकता है जाट बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो जाएं. वसुंधरा जाटों को पहले ही ये मैसेज देने में सफल रही हैं कि उन्होंने किसी राजपूत को प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनने दिया. इसी तरह मूल रूप से कांग्रेस का वोटर रहे गुर्जर 2 वजह से बीजेपी से दूर जा रहे हैं. ये वजह हैं- अनसुलझा रह गया आरक्षण और कांग्रेस में गुर्जर जाति के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट.

ASHOK-GEHLOT-sachin pilot

अशोक गहलोत की वजह से गुर्जरों के बराबर जनसंख्या वाली माली जाति कांग्रेस को वोट करती रही है. लेकिन गहलोत के दिल्ली जाने के बाद बीजेपी ने राजपूतों और गुर्जरों से होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई के लिए इस जाति पर नजर टिका दी है. मदन लाल सैनी को इसी वजह से प्रोमोट किया गया है. अब पेंच फंसता है दलित मतदाताओं का. 2013 में दलितों ने बीजेपी को समर्थन दिया था. हालांकि, बीएसपी धीरे-धीरे अपना जनाधार बढ़ा रही है. अब बीजेपी की कोशिश होगी कि कम से कम राजस्थान में कांग्रेस और बीएसपी का गठजोड़ न बन पाए. इससे दलित वोट कांग्रेस को नहीं जा पाएंगे.

कोर कमेटी में इन उलझनों पर चर्चा हुई. ये तय किया गया कि अनुसूचित जनसंख्या के प्रभाव वाली 100 सीटों पर पहले ध्यान दिया जाए. इसके लिए पार्टी के एससी सेल के नेता अपने सजातीय भाई-बहनों से संवाद स्थापित करेंगे. बहरहाल, इस रथयात्रा के जरिये खुद वसुंधरा भी सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों तक पहुंचेंगी. आगाज उसी उदयपुर संभाग से होगा, जिसके लिए कहा जाता है कि यहां से शुरुआत सफलता दिलाती है. राजे को उम्मीद है कि इस बार भी सुराज गौरव नाम का उनका रथ राज वापस दिलाने का रास्ता तय कर ही लेगा.

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. )

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi