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सरकार के लिए राज्यसभा में तीन तलाक बिल पास करा पाना बहुत मुश्किल है?

संसद का शीतकालीन सत्र भी 8 जनवरी को खत्म हो रहा है, ऐसे में सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि राज्यसभा से इस विधेयक को पारित कराया जाए

Updated On: Dec 31, 2018 09:23 PM IST

Amitesh Amitesh

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सरकार के लिए राज्यसभा में तीन तलाक बिल पास करा पाना बहुत मुश्किल है?

साल 2018 के आखिरी दिन 31 दिसंबर को विपक्षी दलों के हंगामे के चलते राज्यसभा की कार्यवाही नहीं चल सकी. कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा को रोकने के लिए लाए गए मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल को सेलेक्ट कमिटी के पास भेजने की मांग करते हुए हंगामा कर दिया जिसके बाद सदन की कार्यवाही 2 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी गई.

राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, 'तीन तलाक बिल एक महत्वपूर्ण बिल है जिसका करोड़ों लोगों के जीवन पर अच्छा या बुरा असर पड़ेगा. इसे सेलेक्ट कमेटी में भेजे बिना पास नहीं किया जाना चाहिए.'

तीन तलाक बिल पर विपक्ष का विरोध

कुछ इसी तरह की बात टीएमसी के सांसद डेरेक-ओ-ब्रायन ने कही, उन्होंने कहा, सभी विपक्षी पार्टियों ने तय किया है कि इस बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजा जाए.' कमोबेश यही रुख टीडीपी, डीएमके, एसपी, बीएसपी और आरजेडी समेत सभी विपक्षी दलों का है.

लेकिन, सरकार को अपनी सहयोगी जेडीयू के रवैए से बड़ा झटका लगा है. जेडीयू ने भी विपक्ष के सुर में सुर मिलाते हुए ट्रिपल तलाक पर अपना स्टैंड बदल लिया है. जेडीयू ने बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की इच्छा जताई है. हो सकता है कि जेडीयू ने मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया हो लेकिन, पार्टी के नजरिए में आए बदलाव से राज्यसभा में बिल पास कराने की सरकार की कवायद असफल होती दिख रही है.

उधर, बीजेडी के सांसद प्रसन्ना आचार्य ने कहा कि इस पर सुप्रीम कोर्ट के आए निर्णय से उनकी पार्टी सहमत है. इस बिल को सदन में पास होना चाहिए लेकिन इसमें कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें हटाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी की मांग है कि इस बिल को कुछ सुधारों के बाद राज्यसभा में जल्द से जल्द पास करवाया जाए.

विपक्षी दलों के हंगामे और उनके तीन तलाक बिल पर रवैए की एक झलक उसी वक्त मिल गई थी जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी पार्टी का रुख सुबह-सुबह साफ कर दिया था. सोमवार को संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेने जाने के दौरान उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस पर अपना स्डैंड पहले ही साफ कर चुकी है. कांग्रेस सरकार के पेश ट्रिपल तलाक विधेयक में दोषी पति को सजा के प्रावधान समेत कुछ मुद्दों का विरोध कर रही है.

सरकार की विपक्षी दलों से समर्थन की अपील

विपक्षी दलों के हंगामे के कारण सदन ठप्प रहा लेकिन, सरकार अभी भी इस बिल को लेकर अपनी तैयारी में लगी हुई है. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने साफ किया है कि इस पर चर्चा के लिए हम तैयार हैं. उन्होंने कहा है कि अगर विपक्ष का कोई सुझाव है तो हम सुनने के लिए तैयार हैं लेकिन उनका कहना है कि विपक्ष इस बिल को लटकाए नहीं.

सरकार की अपील के बावजूद लगता नहीं है कि विपक्ष अपने रुख से टस-से-मस होने वाला है. क्योंकि मुद्दा मुस्लिम समाज से जुड़ा हुआ है और लोकसभा चुनाव से पहले इस पर विपक्षी दल ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहते हैं जिसमें उनकी रणनीति को झटका लगे और सरकार अपनी रणनीति में सफल हो जाए.

राज्यसभा में सरकार के पास नंबर नहीं!

लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 245 और खिलाफ में महज 11 वोट पड़े थे. वोटिंग के दौरान कांग्रेस, एआईएडीएमके, डीएमके और एसपी के सदस्य सदन से वॉक आउट कर गए थे. लेकिन, राज्यसभा में अब विपक्ष के विरोध के बाद सरकार के लिए बिल पास कराना मुश्किल दिख रहा है.

राज्यसभा में एनडीए गठबंधन के 93 सदस्य हैं. इसमें से 73 बीजेपी, जेडीयू के 6, शिवसेना के 3 और आरपीआई के 1 सदस्य शामिल हैं. दूसरी तरफ यूपीए गठबंधन और विपक्ष के 112 सांसद राज्यसभा में हैं. कांग्रेस के पास 50, समाजवादी पार्टी के पास 13, टीएमसी के 13, सीपीएम के 5, एनसीपी के 4, बीएसपी के 4, सीपीआई के 2 और पीडीपी के कुल 2 सदस्य हैं.

इसके अलावा कुछ दल ऐसे भी हैं जो न सत्ता पक्ष के साथ हैं और न ही विपक्ष के साथ. यह दल समय और हालात के हिसाब से किसी मुद्दे पर समर्थन करने और नहीं करने पर फैसला लेते हैं. ऐसे दलों के कुल 28 सांसद राज्यसभा में मौजूद हैं. जिनमें एआईएडीएमके के 13, टीआरएस के 6 और बीजेडी के 9 सदस्य हैं.

लोकसभा में तीन तलाक बिल पर वोटिंग के दौरान एआईएडीएमके के वॉक आउट करने के बाद अब सबसे अहम सवाल यह खड़ा होता है कि राज्यसभा में इस पार्टी का रुख क्या रहने वाला है.

मौजूदा सत्र में पास करा पाना मुश्किल

संसद का शीतकालीन सत्र भी 8 जनवरी को खत्म हो रहा है. ऐसे में सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि राज्यसभा से इस विधेयक को पारित कराया जाए. अगर इस बार भी विधेयक राज्यसभा में अटक गया तो सरकार को अध्यादेश का सहारा लेना पड़ेगा.

2019 लोकसभा चुनाव से पहले सरकार चाहती है कि इस बिल को पारित करा लिया जाए और प्रचार के दौरान इसे एक उपलब्धि के तौर पर जनता के बीच लेकर चला जाए. लेकिन, विपक्ष सरकार के इस मंसूबे पर पानी फेरने की कोशिश में लगा है.

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