26 दिसंबर से ही चेन्नई के राघवेंद्रम कल्याण मंडपम में अपने प्रशंसकों से मुलाकात कर रहे तमिल फिल्मों के थलैवा यानी बॉस रजनीकांत पर सबकी निगाहें हैं. टॉलीवुड के बॉस के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले रजनीकांत तमिलनाडु के लोगों के दिलों पर लंबे वक्त से राज कर रहे हैं.
लेकिन, 31 दिसंबर को अपने अगले कदम का ऐलान करने की बात कह कर उन्होंने तमिलनाडु का सियासी पारा गरमा दिया है. अटकलों का बाजार गर्म है. कयास लगाए जा रहे हैं क्या रजनीकांत अपनी सियासी पारी की शुरूआत तो नहीं करने जा रहे हैं.
इस तरह की अटकलों को हवा इसलिए भी मिल रही है क्योंकि रजनीकांत ने खुद ही इस तरह का बयान दिया है जिससे उनकी राजनीति में आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. कुछ वक्त पहले ही रजनीकांत ने कहा था ‘राजनीति में हम नए नहीं हैं लेकिन, चिंतन-मनन की जरूरत है. जब युद्ध होगा तो हम देखेंगे और यह युद्ध और कुछ नहीं चुनाव है.’
रजनीकांत का कहना था कि ‘एक व्यक्ति को युद्ध जीतना होता है. युद्ध जीतने के लिए बहादुरी पर्याप्त नहीं है, रणनीति की जरूरत भी होती है.’
रजनीकांत के इस बयान से साफ है कि वो राजनीति में देर-सबेर इंट्री जरूर करेंगे. नए साल के जश्न से पहले अपने प्रशंसकों के साथ लगातार मुलाकात और नए साल के एक दिन पहले यानी मौजूदा साल के आखिरी दिन किसी बड़े ऐलान का संकेत देकर उन्होंने राजनीति के मैदान में उतरने का संकेत भी दे दिया है.
लंबे वक्त से कयासबाजी का दौर जारी
हांलांकि यह पहला मौका नहीं है जब रजनीकांत के राजनीति में उतरने को लेकर चर्चा चल रही है. पिछले महीने उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई मुलाकात के बाद भी अटकलों का बाजार काफी गर्म रहा. इसके पहले भी रजनीकांत की प्रधानमंत्री से लगातार मुलाकात होती रही है. लेकिन, अब तक न ही बीजेपी से और न ही रजनीकांत की तरफ से इस बारे में औपचारिक तौर पर कुछ बताया गया है.
जयललिता के निधन के बाद शून्य को भरने की कोशिश
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहते जे. जयललिता के निधन के बाद तमिल राजनीति में एक खालीपन दिख रहा है. जयललिता की विरासत को लेकर उनकी पार्टी एआईएडीएमके के भीतर ही संग्राम मचा हुआ है. ईपीएस और ओपीएस गुट के आपस में विलय के बावजूद जयललिता की करीबी रही शशिकला और उनके भतीजे दिनाकरण की तरफ से उनको तगड़ी चुनौती मिल रही है.
जयललिता के निधन के बाद खाली हुई आरके नगर सीट पर हुए उपचुनाव में दिनाकरण की जीत ने साबित कर दिया है कि विरासत की यह जंग काफी लंबी चलने वाली है. लेकिन, विरासत की इस लड़ाई में नुकसान एआईएडीएमके का ही हो रहा है.
बीजेपी को फिलहाल तमिल राजनीति में अपना पांव जमाने का माकूल वक्त लग रहा है. लेकिन, पार्टी अभी भी काफी सोच-समझकर तमिल राजनीति में कोई कदम बढ़ाना चाहती है. क्योंकि भावनात्मक राजनीति का ज्वार तमिलनाडु में उफान मारता रहता है, ऐसे में कोई भी छोटी गलती बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है. बीजेपी फिलहाल राज्य सरकार से बेहतर तालमेल बिठाकर चलने के साथ-साथ वेट एंड वाच की नीति अपना रही है.
दूसरी तरफ, विपक्ष में बैठे डीएमके के प्रमुख करुणानिधि भी लगभग अपनी अंतिम पारी खेल रहे हैं. बुजुर्ग करुणानिधि के बाद डीएमके की राजनीति को लेकर उत्तराधिकार की जंग तेज होने वाली है. हाल ही में करुणानिधि की बेटी कन्निमोझि और ए राजा के टूजी घोटाले में बरी होने के फैसले के बाद उनकी पार्टी को थोड़ी राहत मिल गई है. लेकिन, अभी भी नेतृत्व का संकट पार्टी के सामने एक धुंधलापन लिए खड़ा है.
इसी खालीपन को देखकर तमिल राजनीति में कमल हासन से लेकर रजनीकांत तक के आने की चर्चा हो रही है. टॉलीवुड के साथ-साथ बॉलीवुड के बड़े स्टार कमल हासन ने तो बकायदा अपनी पारी की शुरूआत भी कर दी है. फिलहाल कमल हासन ने बीते 7 नवंबर को अपने जन्मदिन के मौके पर ‘मध्यम व्हिसल’ नाम से एक ऐप लॉन्च कर इसी के माध्यम से अपनी राजनीतिक पारी का आगाज कर दिया है. वो जल्द ही पार्टी बनाकर राजनीति की मैदान में उतरने वाले हैं.
तमिल राजनीति में टॉलीवुड का दबदबा रहा है
तमिल राजनीति में फिल्मी सितारों का पहले से ही दबदबा रहा है. एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के राजनीति में आने से लेकर जयललिता तक का सफर कुछ ऐसा ही रहा है. जहां लोग अपने सुपरस्टार के दीवाने होकर उसे सिंहासन पर बैठा देते हैं.
तमिल फिल्मों और तमिल राजनीति के सुपरस्टार रहे एमजी रामचंद्रन को लेकर तमिलनाडु में काफी सम्मान का भाव रहा है. लेकिन, करुणानिधि के साथ विवाद होने के बाद 1972 में एमजीआर ने डीएमके से अलग होकर अपनी नई पार्टी बना ली थी. वर्ष 1977 से 1987 तक वो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे थे.
एमजीआर के निधन के बाद जयललिता ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया था. जयललिता ने भी तमिल फिल्मों में कम उम्र में ही एक अलग पहचान बना ली थी. बाद में एमजीआर ही उन्हें सियासत में लेकर आए थे.
अब सबकी नजरें रजनीकांत पर हैं
रजनीकांत को लेकर भी इसीलिए कयास लगाए जा रहे हैं क्योंकि इस दौर में रजनीकांत कमल हासन से कहीं ज्यादा बड़े स्टार हैं. उनकी लोकप्रियता और उनके चाहने वालों की फेहरिस्त कमल हासन के मुकाबले काफी बड़ी है.
ऐसे में रजनीकांत अगर इस खालीपन को भरने के लिए कोई बड़ा राजनीतिक ऐलान करते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. लेकिन, सवाल अभी भी बना हुआ है कि रजनीकांत अगर राजनीति में आएंगे तो क्या अलग पार्टी बनाएंगे या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी लगातार हो रही मुलाकात कोई गुल खिलाएगी.
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