ढाई दिनों की येदियुरप्पा सरकार के गिरने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दिल्ली में कांग्रेस दफ्तर में मीडिया से मुखातिब हुए. कर्नाटक के डेवेलपमेंट से उत्साहित राहुल गांधी ने एक सवाल के जवाब में कहा ‘हम सभी विपक्षी दल मिलकर, कोऑर्डिनेट कर बीजेपी को हराएंगे.’
राहुल गांधी के इस बयान से बहुत कुछ साफ हो जाता है. उनके बयान से कांग्रेस की आगे की रणनीति का पता चलता है, जिसमें वो मोदी विरोधी मुहिम को आगे बढ़ाने की तैयारी में हैं. मोदी विरोधी मुहिम के मूल में हर हाल में 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी को हराना है. इस कवायद में कांग्रेस भी लगी है और टीएमसी, टीआरएस से लेकर आरजेडी, एसपी और बीएसपी जैसी दूसरी पार्टियां भी लगी हैं.
त्याग को तैयार है कांग्रेस?
तो क्या कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पद से हटाने के लिए सबकुछ त्याग करने को तैयार हो गई है. क्या कांग्रेस पूरे देश भर में वही फॉर्मूला अपनाने को तैयार है जिस फॉर्मूले के तहत उसने बीजेपी को कर्नाटक में पटखनी दी है.
बात पहले कर्नाटक की करें तो, 224 सदस्यीय विधानसभा में 222 सीटों पर वोटिंग हुई थी, जिसमें बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी. लेकिन, सत्ताधारी कांग्रेस 78 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर खिसक गई. जेडीएस को महज 37 सीटों पर ही जीत मिली, जबकि बीएसपी, केपीजेपी और निर्दलीय एक-एक सीट पर विजयी रहे.
लेकिन, चुनाव नतीजे आते ही कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा से संपर्क साधा और उनके बेटे एचडी कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री पद ऑफर करते हुए सरकार बनाने का दावा पेश करने की सलाह दे दी. सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी 104 सीटों से आगे बढ़ नहीं पाई. आठ विधायकों को जुटाने में विफल बीजेपी को मात खानी पड़ी. अब जेडीएस-कांग्रेस की सरकार कर्नाटक में बनने जा रही है. यानी छोटी पार्टी को समर्थन देने के लिए कांग्रेस ने त्याग कर दिया या फिर त्याग करना पड़ा. ये त्याग बीजेपी को रोकने के लिए ही है.
यूपीए-3 की तैयारी में लगी है कांग्रेस!
लेकिन, कांग्रेस कर्नाटक में बीजेपी को रोकने के लिए ही ऐसा नहीं कर रही है. अब तैयारी 2019 की है. कर्नाटक में बीजेपी का रास्ता रोककर कांग्रेस का मनोबल बढ़ा हुआ है. कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त भी कर्नाटक में जेडीएस के साथ मिलकर गठबंधन कर चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस की रणनीति भी यही है जिसमें यूपीए 1 और 2 की तरह एक बार फिर से यूपीए 3 का कुनबा बड़ा किया जाए. कांग्रेस अपने साथ अलग-अलग दलों को जोड़ने के लिए अभी से ही तैयारी कर रही है.
हालांकि कांग्रेस को इसके लिए क्षेत्रीय दलों का पिछलग्गू बनकर ही रहना पड़ेगा. मसलन, बिहार मे कांग्रेस को आरजेडी का पिछलग्गू बनकर रहना पडेगा, जबकि, यूपी में अखिलेश यादव और मायावती के साथ गठबंधन कर कांग्रेस को यहां भी कम सीटों पर समझौता करना पडे़गा. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की हालत खस्ता हो गई है. वहां ममता बनर्जी का मुकाबला बीजेपी से ही है. ऐसे में कांग्रेस वहां भी ममता की बी टीम बनकर काम करने के लिए तैयार हो सकती है.
इसी तरह झारखंड में जेएमएम के पीछे-पीछे और तमिलनाडु जैसे राज्य में कांग्रेस डीएमके के पीछे चलने को तैयार दिख रही है. कांग्रेस की कोशिश ममता बनर्जी और चन्द्रशेखर राव जैसे नेताओं को अपने साथ लाने की है जो अलग मोर्चे की तैयारी में दिख रहे हैं. लेकिन, कांग्रेस इन दलों की बी टीम बनकर उनको साधने की तैयारी में है.
इस फॉर्मूले से है कांग्रेस को केंद्र में वापसी की उम्मीद
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, भले ही यूपी, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु जैसे राज्यों में कांग्रेस बी टीम बनकर लड़ने को राजी है. लेकिन, उसे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों से ज्यादा उम्मीद है जहां उसकी लड़ाई सीधे बीजेपी से है. कांग्रेस को लगता है कि इन सभी राज्यों से आने वाली उसकी सीटें मिलाकर उसकी अपनी ताकत में ज्यादा इजाफा हो जाएगा, जिससे विपक्षी कुनबे में वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर पाएगी.
कर्नाटक में जेडीएस को सरकार बनाने का मौका देकर कांग्रेस इसकी कीमत वसूलने की कोशिश लोकसभा चुनाव में कर सकती है. फिलहाल कर्नाटक में कुमारास्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी नेताओं का जमावड़ा लगाकर कांग्रेस शक्ति प्रदर्शन की तैयारी में है. शपथ ग्रहण समारोह में मायावती, अखिलेश यादव से लेकर शरद पवार, ममता बनर्जी जैसे नेता दिख सकते हैं.
कांग्रेस कर्नाटक को टर्निंग प्वाइंट मानकर चल रही है. उसे लगता है कि कर्नाटक में सरकार बनाकर वह देश भर में एक ऐसा माहौल बना सकती है जिससे विपक्षी दलों को भी एक संदेश जाएगा कि कांग्रेस मोदी को हटाने के लिए भी सबकुछ त्याग कर सकती है.
लेकिन, विपक्षी एकता की कोशिश में लगी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद पर दावे से बचना होगा. वरना कांग्रेस की मोदी विरोधी मुहिम की हवा निकलते देर नहीं लगेगी.
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