ऐसे वक्त में जब केंद्र सरकार देश में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने की कोशिश में जुटी है, चुनावी राज्य राजस्थान की बीजेपी सरकार ने इस सिलसिले में मिला-जुला और अलग तरह का संकेत दिया है. राज्य में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अगुवाई वाली सरकार ने पिछले 5 साल में आईटी और इंटरनेट आधारित कई स्कीम की शुरुआत की है. हालांकि, बार-बार इंटरनेट शटडाउन (बंद करने) के मामले में राजस्थान दूसरे नंबर पर है. इंटरनेट शटडाउन के सबसे ज्यादा मामले जम्मू-कश्मीर में देखने को मिले हैं और उसके बाद राजस्थान का ही नंबर आता है.
इंटरनेट शटडाउन के कारण सिर्फ बीते साल राज्य को करोड़ों डॉलर का नुकसान
इस सिलसिले में इसी साल अप्रैल में भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक अनुसंधान परिषद (ICRIER) ने एक रिपोर्ट छापी थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल यानी सिर्फ 2017 में राजस्थान को 'एकाउंटेड ऑर्डर्ड इंटरनेट शटडाउन' के कारण 8.024 करोड़ डॉलर के आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा.
सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (sflc.in), इंडिया के मुताबिक, इस राज्य में पिछले 4 साल में इंटरनेट शटडाउन की 56 घटनाएं हुई हैं. मनमाना तरीके से इंटरनेट बंद किए जाने के मामलों से निपटने के लिए अगस्त 2017 में टेलीकॉम सेवाओं का अस्थाई निलंबन (पब्लिक इमरजेंसी या जन सुरक्षा) नियम पेश किया गया था, लेकिन यह अब तक इस मोर्चे पर कारगर नहीं नजर आ रहा है.
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सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में राज्यों के गृह विभागों को पब्लिक इमरजेंसी या राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति में इंटरनेट शटडाउन यानी पूरी तरह से बंद करने की इजाजत दी थी. हालांकि, राजस्थान की सरकार ने परीक्षा के संचालन में भी इंटरनेट ब्लॉक करने का फैसला किया. खबरों के मुताबिक, राज्य में हालिया इंटरनेट कर्फ्यू राजस्थान प्रशासनिक सेवा के लिए प्रारंभिक परीक्षा के दौरान बीते 5 अगस्त को लगाया गया था.
जयपुर के टेक्नोलॉजी कंसल्टेंट निशीथ दीक्षित ने बताया, 'सार्वजनिक सुरक्षा अच्छी चीज है, लेकिन पुलिस एग्जाम के लिए पूरे शहर में इंटरनेट को बंद कर देना सिस्टम की नाकामी है. हम अब 5जी का स्वागत कर रहे हैं, जो रोबोटिक सर्जरी जैसी गतिविधियों के लिए गुंजाइश बनाएगा. इंटरनेट शटडाउन की ऐसी परिस्थितियों में इस तरह की चीजें किस तरह से काम करेंगी?'
इंटरनेट सेवा पूरी तरह से बंद करने की बजाय अन्य विकल्पों पर अमल का सुझाव
सूत्रों का कहना है कि राजस्थान इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी और कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट (DOIET&C) ने राज्य के गृह विभाग को इंटरनेट की उपलब्धता पूरी तरह से बंद करने की बजाय अन्य विकल्पों को आजमाने का सुझाव दिया है. राजस्थान इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी और कम्युनिकेशन विभाग के एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर बताया, 'इंटरनेट को पूरी तरह से बंद किए जाने की बजाय कई तरह के अन्य विकल्प हैं. मसलन सभी सर्विस प्रोवाइडर्स के पास पोर्ट ब्लॉक करने का विकल्प उपलब्ध है. उदाहरण के तौर पर अगर एक निश्चित समय के लिए व्हाट्सऐप सर्विस को ब्लॉक करना है, तो जिस पोर्ट पर व्हाट्सऐप डेटा को भेजा जा रहा है, उसे बंद किया जा सकता है. इसके तहत सोशल मीडिया एप्लिकेशंस को ब्लॉक करना एक और उपाय हो सकता है. बहरहाल, इसे किस तरह से लागू करना है, यह गृह विभाग पर निर्भर करता है.'
गौरतलब है कि इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी और डिजिटल इंडिया से जुड़े अभियान और कार्यक्रम राजस्थान की मौजूदा वसुंधरा राजे सरकार के पूरे कार्यकाल में प्राथमिकता की सूची में रहे हैं. इन कार्यक्रमों में निजी तौर पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की काफी दिलचस्पी रही है. विभाग को डिजिटल मोर्चे पर पहल के लिए विभिन्न जगहों से सम्मान और पहचान भी हासिल हुआ है. हाल में भामाशाह डिजिटल परिवार योजना के लिए राजस्थान सरकार को न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से भी तारीफ मिली है.
सितंबर में शुरू की गई इस योजना के तहत ग्रामीण परिवारों को इंटरनेट कनेक्शन वाला मोबाइल फोन खरीदने के लिए फंड दिया जाता है. इस योजना के तहत परिवार की महिला को भामाशाह कार्ड मिलता है, जो परिवार के बैंक खाते से जुड़ा होता है. इसके बाद राज्य सरकार पेंशन, राशन कार्ड, तकनीकी और उच्च शिक्षा और मेडिकल खर्चों जैसे फायदों को सीधा खाते में ट्रांसफर कर देती है. हालांकि, जमीन पर स्थितियां विरोधाभासी हैं और जमीनी हालात पर इस तरह की परिस्थिति होने से यह भी पता चलता है कि राजस्थान को खुद को 'डिजिटल राज्य' घोषित करने से पहले उसके लिए कई चीजें दुरुस्त करनी अभी बाकी है.
बिल भुगतान, फीस जमा करने, भर्ती के लिए आवेदन, शिकायत निवारण, टिकट बुकिंग और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले जैसी सेवाओं को ऑनलाइन मुहैया कराने के लिए पूरे राज्य में कई ई-मित्र बूथ और अटल सेवा केंद्र स्थापित किए गए हैं. हालांकि, ज्यादातर दिनों में अधिकतर ऐसे बूथों को इंटरनेट की सेवाओं की उपलब्धता हासिल करनेके लिए संघर्ष करना पड़ता है. दरअसल, इंटरनेट का नेटवर्क कमजोर होने के कारण ऐसा होता है.
उदयपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज शेख ने बताया, 'हमारे पंचायत में अटल सेवा केंद्र में इंटरनेट नहीं है, लिहाजा ई-मित्र बूथ वहां काम नहीं करता है. उदयपुर जिले के कोटरा प्रखंड में सभी कर्मचारियों को ई-मित्र चलाने के लिए निजी जगहों पर बैठना पड़ता है. जब जीपीएस के जरिये ई-मित्र की निगरानी की जाती है, तो यह प्रखंड स्तर पर पाया जाता है, जबकि इसे पंचायत स्तर पर उपलब्ध होना चाहिए. पंचायत स्तर पर इसके उपलब्ध नहीं होने की वजह बिजली और इंटरनेट की कमी बताई जाती है.' केंद्रों पर 'राजनेट' कार्यक्रम के तहत इंटरनेट मुहैया कराया जाता है. इसके तहत सरकार हर केंद्र को सुरक्षित वीपीएन नेटवर्क उपलब्ध कराती है. इंटरनेट की दिक्कत जमीनी स्तर पर भी लोगों को प्रभावित करती है.
नेटवर्क की दिक्कत के कारण लोगों को नहीं मिल पाता है राशन
बजट एनालिसिस रिसर्च सेंटर, जयपुर के को-ऑर्डिनेटर निसार अहमद ने बताया, 'अब बायोमेट्रिक एनालिसिस किए जाने के बाद राशन सिर्फ ई-पीडीएस (जन वितरण प्रणाली) के जरिये उपलब्ध है. चूंकि इंटरनेट ठीक से नहीं चलता है (खास तौर पर पहाड़ी इलाकों में), इसलिए ज्यादातर लोगों को बिना राशन लिए ही वापस जाना पड़ता है, क्योंकि दुकानदारों के इंटरनेट का इंतजार कभी खत्म नहीं होता. कभी-कभी नेटवर्क हासिल करने के लिए पीडीएस मशीनों को दुकान से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ले जाना पड़ता है.'
खासतौर पर आदिवासी इलाकों में डिजिटल ज्ञान और उपलब्धता की कमी के कारण स्थानीय नागरिकों को 'आत्म-निर्भर' भामाशाह एटीएम से भी एक तरह से जूझना ही पड़ता है. शेख ने बताया, 'पंचायत स्तर पर जनता न तो तकनीक से लैस है और न ही पर्याप्त शिक्षित है और इस वजह से उसे पैसा निकासी जैसे छोटे कार्यों के लिए पंचायत प्रमुख पर निर्भर रहना पड़ता है.'
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इसके अलावा, सरकारी वेबसाइट्स और डेटा भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं. दीक्षित ने बताया, 'राजस्थान में किसी भी सिस्टम को आधिकारिक तौर पर 'सुरक्षित सिस्टम' नहीं बताया गया है और न ही उसे महत्वपूर्ण इन्फोर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर (CII) घोषित किया गया है. सभी सरकारी वेबसाइट्स हैकिंग को रोकने में पूरी तरह से सक्षम नहीं हैं. हालांकि, वेबसाइट को हैक करने की कोशिश की स्थिति में 3 साल कैद की सजा का प्रावधान है और अगर हैकर महत्वपूर्ण डेटा चुराने का प्रयास करता है, तो इसके लिए उसे 10 साल कैद तक की सजा हो सकती है.' उनका यह भी कहना था, 'सरकार को डेटा सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी लेने की जरूरत है.'
सीधे डिजिटल इंडिया अभियान पर चोट करता है शटडाउन का मामला
कई साइबर लॉ एक्सपर्ट्स का मानना है कि राजस्थान अब तक डिजिटल बदलाव के लिए तैयार नहीं हो सका है. जयपुर के एक वकील प्रतीक कासलीवाल ने बताया, 'साइबर पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को इसके लिए अपडेट और पूरी तरह से तैयार नहीं किया गया है. सब कुछ सतही है. राजस्थान सरकार आईटी और स्टार्टअप को बढ़ावा देती है, लेकिन वे संसाधनों से लैस नहीं हैं. वैसी कोई पूर्णकालिक अथॉरिटी नहीं है, जो डिजिटल लालफीताशाही की जांच-पड़ताल कर इसे खत्म कर सके.'
उनका कहना था, 'टेलीकॉम अब जरूरी सेवा मानी जाती है और इंटरनेट शटडाउन वास्तव में पूरे डिजिटल इंडिया अभियान पर बुरा असर डाल सकता है. यह आजीविका का अधिकार जैसे कुछ मानवाधिकारों का भी उल्लंघन करता है.'
बार-बार इंटरनेट शटडाउन की घटनाओं को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की गई है. हालांकि, इस सिलसिले में फैसला अभी भी अटका पड़ा है. हाईकोर्ट ने जनहित याचिका का संज्ञान लेते हुए जुलाई में राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था. नोटिस में पूछा गया था कि किस कानून के तहत परीक्षा आयोजित करने के लिए इंटरनेट को बंद किया गया.
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