मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिन पांच बाबाओं को राज्य मंत्री का दर्जा दिया है लोग अब उनकी कुंडली जुटाने में लग गए हैं. कंप्यूटर बाबा ने इंदौर की जिस पहाड़ी पर अपना आश्रम बनाया हुआ है वो सरकारी जमीन है. जमीन पर से कब्जा हटाने के लिए जनहित याचिका सालों से विभिन्न अदालतों में लंबित पड़ी हुई है. वहीं नर्मदानंद द्वारा दृष्टिहीन होने के आधार रेल किराए में रियायत लेने के दस्तावेज भी सामने आए हैं. दृष्टि पर विवाद हुआ तो अब बाबा सफाई में कह रहे हैं कि उनकी नेत्र ज्योति नर्मदा की परिक्रमा कर लौट आई है.
दिग्विजय सिंह ने दिया था कंप्यूटर बाबा नाम
कंप्यूटर बाबा से सबसे ज्यादा नाराज इंदौर का दिगंबर जैन समाज है. इंदौर के गोम्मटगिरी पहाड़ी पर दिगंबर जैन समाज का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. इस तीर्थ स्थल के लिए पहाड़ी जमीन का आवंटन अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में हुआ था. पहाड़ी का क्षेत्रफल 200 एकड़ से अधिक का बताया जाता है. कंप्यूटर बाबा पर आरोप है कि इस सरकारी पहाड़ी के रिक्त हिस्से पर ही उन्होंने अपना आश्रम और मां कालिका का मंदिर अवैध रूप से बनाया है.
कंप्यूटर बाबा को राज्य मंत्री का दर्जा दिए जाने के बाद पहाड़ी पर अतिक्रमण का मामला फिर चर्चा में आ गया है. दिगंबर जैन समाज के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त के साथ कहा कि सरकार में कई स्तरों पर कंप्यूटर बाबा को लेकर शिकायतें की गईं. हाईकोर्ट में भी जनहित याचिका लगाई गई.
सरकार कोर्ट में भी अपना पक्ष नहीं रख रही है. कंप्यूटर बाबा इस पहाड़ी पर पिछले पंद्रह साल से आश्रम बनाकर रह रहे हैं. 28 मार्च को इसी आश्रम में बाबाओं और संतों की बैठक हुई थी. बैठक में एक अप्रैल से नर्मदा घोटाला रथ निकालने का निर्णय लिया गया था.
इसके दो दिन बाद ही कंप्यूटर बाबा भोपाल में मुख्यमंत्री निवास पर देखे गए. 31 मार्च को सरकार ने कमेटी गठित कर दी और कंप्यूटर बाबा को राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया. बताया जाता है कि कंप्यूटर बाबा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भी काफी नजदीक रहे हैं. कंप्यूटर बाबा नाम भी उन्होंने ही दिया था.
बीपीएल कार्ड, दृष्टिहीन के नाते रेल किराए में रियायत
राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त दूसरे बाबा नर्मदानंद जी हैं. नर्मदानंद इन दिनों अपने शिष्यों के काफिले के साथ पैदल नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं. बाबा नर्मदानंद के पास गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को दिए जाने वाला नीला बीपीएल राशन कार्ड है. इस राशनकार्ड में केवल दो सदस्यों का परिवार बताया गया है. नर्मदानंद का नाम वर्ष 2002-2003 में हुए बीपीएल सर्वे वाली सूची में नहीं था.
इस नीले कार्ड पर बीपीएल सर्वे क्रमांक निरंक लिखा हुआ है. बीपीएल कार्ड खंडवा जिले मांधाता ग्राम के सरपंच द्वारा जारी किया गया बताया जाता है. मध्यप्रदेश में बीपीएल परिवारों को एक रुपए किलो गेंहू और चावल की सुविधा मिली हुई है. इसके अलावा बिजली भी रियायती दर पर दी जाती है. कई अन्य सुविधाएं भी बीपीएल परिवार को मिलती हैं.
बाबा के पास रेलवे का रियायती पास भी है. यह पास उन्हें दृष्टिहीन होने के कारण मिला है. राज्य मंत्री का दर्जा मिलने के बाद बाबा की नेत्र ज्योति का भी खुलासा भी हो रहा है. बाबा की नेत्र ज्योति सामान्य आदमी की तरह है. उन्हें चश्मा भी नहीं लगता है. रियायती रेलवे पास का विवाद उठने के बाद बाबा ने सफाई दी है कि नर्मदा की नंगे पांव परिक्रमा करने के बाद नेत्र ज्योति लौट आई है. बाबा का दावा है कि उनकी 89 प्रतिशत आंख खराब थी. बाबा ने सफाई दी है कि वर्ष 2014 के बाद उन्होंने रेल में रियायत नहीं ली है.
दर्जा देने से संत समाज नाराज
पांच बाबाओं और संतों को राज्य मंत्री का दर्जा दिए जाने से अखाड़ा परिषद नाराज है. परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरी ने कहा कि महात्मा का पद किसी भी मंत्री के पद से बड़ा है. ब्लैकमेल करना महात्माओं के लक्षण नहीं होते हैं. इस तरह के आचरण से लोगों की आस्था भी कम होती है. नरेंद्र गिरी ने उपकृत बाबाओं के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए दिगंबर अखाड़ा परिषद को पत्र लिखा है.
काशी सुमेरूपीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि मंत्री को संत होना चाहिए. संत यदि मंत्री हो जाएं तो कैसा सम्मान. उन्होंने राज्य मंत्री के दर्जे को राजनीति से प्रेरित फैसला बताते हुए कहा कि विरोध के एवज में उपकृत करने की नीति गलत है. द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपनंद सरस्वती ने कहा कि सरकार ने यह फैसला अपने स्वार्थी उद्देश्यों के चलते लिया है.
शंकराचार्य के इस बयान पर शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल के सदस्य जालम सिंह पटेल ने कहा कि वे शंकराचार्य नहीं शंकाचार्य हैं. नर्मदा घोटाला रथ रोकने के लिए योगेंद्र महंत को भी राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है. योगेंद्र महंत की राजनीति में गहरी दिलचस्पी है. वे कांग्रेसी नेताओं के ज्यादा करीब हैं. इंदौर नगर निगम के चुनाव में उन्होंने पार्षद का चुनाव भी लड़ा था, लेकिन हार गए. भय्यू जी महाराज एूपीए सरकार के दौरान हुए अन्ना आंदोलन में भी सक्रिय दिखाई दिए थे. अन्ना का अनशन समाप्त कराने के लिए उनकी मदद ली गई थी.
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