राजस्थान में पुलिस कांस्टेबल भर्ती की लिखित परीक्षा में नकल को रोकने के लिए पूरे प्रदेश में जिस तरह नेट कर्फ्यू लगाया गया, वो सरकार-प्रशासन की काबिलियत के साथ-साथ उसकी मंशा को भी कठघरे में खड़ा कर रहा है. राजस्थान के इतिहास में ऐसा पहली बार था जब नकल रोकने के नाम पर दो दिन करीब 10-10 घंटे के लिए पूरे प्रदेश की इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई. अभी तक आंदोलनों के दौरान राजस्थान का प्रशासन झट से इंटरनेट पर रोक लगाता था, लेकिन अब कांस्टेबल की परीक्षा के दौरान ऐसा कारनामा कर दिखाया गया. लेकिन इस कारनामे ने बड़ा सवाल यही खड़ा किया कि डिजिटल इंडिया का नारा भी क्या जुमला भर है?
भर्ती परीक्षा के दौरान 20 घंटे से ज्यादा नेट ठप रहने की वजह से 15 हजार से ज्यादा रेलवे ईटिकटिंग नहीं हुई, 4500 से ज्यादा ई-चालान नहीं हुए, बिजली कंपनियों में 10 लाख रुपए की ऑनलाइन बिलिंग नहीं हुई, 30 करोड़ रुपए का मोबाइल ट्रांजेक्शन प्रभावित रहा और सबसे बड़ी बात यह कि नेट के रुप में आम लोगों की हथेली में सिमटी ताकत अचानक खत्म कर दी गई यानी नेट आपातकाल लागू कर दिया गया. जयपुर के रहने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर देवेन्द्र गुप्ता कहते हैं, 'मैं दिल्ली से जयपुर पहुंचा था लेकिन नेट बंद था तो एप नहीं चल पाया और ऑनलाइन टैक्सी बुक नहीं हो रही थी. मेरी ही तरह कई लोग परेशान थे.' एक अनुमान के मुताबिक राज्य में दो दिन में 600 करोड़ रुपए का कारोबार प्रभावित हुआ.
विडंबना देखिए कि जिस पुलिस पर सुरक्षा का दायित्व होता है, उसकी भर्ती परीक्षा में नकल रोकने के लिए इतने व्यापक इंतजाम हुए. यानी नकल हर परीक्षा का अब अनिवार्य सच है. दरअसल, मार्च में राज्य में हुई पुलिस भर्ती परीक्षा धांधली के चलते रद्द कर दी गई थी तो इस बार प्रशासन कोई गलती नहीं करना चाहता था. लेकिन नकल रोकने के लिए राज्य को बंधक बना देने का क्या मतलब था? राजस्थान में नेट पर रोक के मामले जिस तरह बढ़ रहे हैं-वो नई चिंता का विषय है. पिछले सात महीने में राजस्थान में 9वीं बार इंटरनेट पर रोक लगाई गई है. जम्मू कश्मीर के बाद राजस्थान में सबसे ज्यादा बार रोक लगाई गई है. आलम ये है कि कितने दिन प्रशासन नेट को ठप रखे-कोई नहीं जानता. पिछले साल सीकर में दो गुटों के विवाद और आनंदपाल प्रकरण में 15 दिन इंटरनेट सेवाएं बंद रहीं थीं.
सीआरपीसी की धारा 144 में इंटरनेट बैन का जिक्र नहीं
जानकारों की मानें तो सीआरपीसी की धारा 144 में कहीं भी इंटरनेट बैन को लेकर जिक्र नहीं है, लेकिन आईटी एक्ट में लंबी प्रक्रिया की वजह से सरकारें धारा 144 में इंटरनेट पर रोक के आदेश जारी कर देती है. तो क्या प्रशासन-सरकार को किसी भी हालात में नियंत्रण का पहला तरीका नेट ठप करना ही लगता है? लेकिन ऐसा है तो डिजिटल इंडिया का मतलब क्या है, जिसमें चंद छात्रों की परीक्षा सरकार करा नहीं सकती और नेट रोकने में उसे कुछ गलत लगता नहीं.
वैसे,नेट पर रोक का एक सिरा अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ता है,जिसमे भारत की ही छवि अच्छी नहीं है. 'दक्षिण एशियाई प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट 2017-18' के मुताबिक दक्षिणी एशियाई देशों में इंटरनेट बैन के कुल 97 मामले सामने आए हैं जिनमें से भारत में अकेले 82 मामले सामने आए हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में इंटरनेट बैन के बढ़ते मामले अब प्रेस की आजादी और उसपर लगने वाली पाबंदी के रूप में देखा जा रहा है. वहीं भारत के चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान की बात करें तो वहां कुल 12 मामले ही सामने आए हैं.
इसका मतलब क्या यह माना जाए कि पाकिस्तान भारत से ज्यादा डेमोक्रेटिक सेटअप में जीने की कोशिश कर रहा है, और भारत में कहीं भी हालात बेकाबू होने की आशंका भर से नेट बैन कर देना ही हल माना जा रहा है. राजस्थान ने इस सोच को और पुख्ता किया है. राजस्थान में बीजेपी की सरकार है और डिजिटल इंडिया प्रधानमंत्री मोदी का अहम नारा है.ऐसे में राजस्थान सरकार की कार्रवाई केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया के नारे को ही कठघरे में खड़ा करती है.
जिस तरह देश में छोटी-छोटी आशंकाओं के बीच नेट ठप करने का चलन बढ़ रहा है, वो न केवल आर्थिक रुप से घातक है बल्कि साइबर इमरजेंसी की तरफ राज्य सरकारों के बढ़ते कदम का परिचायक भी है. गौरतलब है कि दुनिया भर में इंटरनेट बैन से पिछले साल 16 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है. इनमें सबसे ज्यादा नुकसान भारत को हुआ है, जोकि करीब छह हजार करोड़ रुपए है. जाहिर है, साइबर इमरजेंसी की तरफ बार बार बढ़ते कदम अच्छे नहीं हैं.
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