एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा कांग्रेस के निशाने पर हैं. कांग्रेस की अगुआई में विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने का फैसला किया है. राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने राज्यसभा के चेयरमैन एम वेंकैया नायडू से मुलाकात कर महाभियोग प्रस्ताव को आगे बढाने की मांग की.
गुलाम नबी आजाद ने बताया ‘महाभियोग चलाने के लिए राज्यसभा में 50 सांसदों के समर्थन और दस्तखत की जरूरत होती है. लेकिन, हमने 71 राज्यसभा सांसदों के दस्तखत के साथ प्रस्ताव को चेयरमैन वेंकैया नायडू को दिया है. लेकिन, इनमें सात सांसद अब रिटायर हो चुके हैं. लिहाजा उनकी संख्या कम करने के बाद भी हमारे पास महाभियोग चलाने लायक जरूरी संख्या मौजूद है.’ आजाद ने कहा ‘इस बारे में चेयरमैन से सकारात्मक फैसले की उम्मीद है.’
जस्टिस दीपक मिश्रा पर आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया, ‘जब सुप्रीम कोर्ट के चार जज एक साथ प्रेस कांफ्रेंस कर 12 जनवरी को कहते हैं कि ये चीजें सही नहीं हो रही हैं. तो मुख्य न्यायाधीश को इनकी भावना समझनी चाहिए थी. लेकिन, तीन महीने बाद भी कुछ भी नहीं बदला.’
कपिल सिब्बल ने एक-एक कर पांच आरोप लगाकर जस्टिस दीपक मिश्रा पर महाभियोग चलाने की वजहें भी बता दीं.
लेकिन,जज लोया पर सर्वोच्च अदालत के फैसले के अगले ही दिन इस तरह से बना माहौल कई सवाल खड़ा करता है.
गौरतलब है कि सोहराबुद्दीन इनकाउंटर मामले की जांच कर रहे सीबीआई की विशेष अदालत के जज बृजगोपाल लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में हुई थी. मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना बताया गया था. लेकिन, बाद में इस पर सवाल खड़े किए जाने लगे.
चूंकि यह पूरा मामला सोहराबुद्दीन इनकाउंटर से जुड़ा था लिहाजा, जज लोया की मौत के मामले को संदिग्ध बताकर इसे राजनीतिक रंग दिया जाने लगा. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और मौत की जांच के लिए एसआईटी गठन की भी मांग की गई, लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को ठुकरा दिया है.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है ‘हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि रिट याचिका में कोई मेरिट नहीं है. अदालत के लिए चार न्यायिक अधिकारियों के स्पष्ट और सुसंगत बयान पर शक करने का कोई कारण नहीं है. दस्तावेजी सुबूत प्रमाणित करते हैं कि जज लोया की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है. अदालत के पास ऐसा मानने के लिए कोई आधार नहीं है कि मौत की स्थितियों और कारण पर तर्कपूर्ण तरीके से शक किया जाए, जिससे आगे और जांच की जरूरत हो.'
अदालत ने इस याचिका को राजनीतिक उद्देश्य से न्यायपालिका को बदनाम करने वाली साजिश के तहत दायर की गई याचिका बताया था.
गौरतलब है कि लोया मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की ही बेंच में हो रही थी.
अब इस फैसले के अगले ही दिन कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
लेकिन, कांग्रेस के भीतर से ही इस मामले में उठ रही आवाजें कई सवाल खड़ा कर रही हैं. पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि चाहे जज लोया का मामला हो या कोई अन्य, सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही अंतिम होता है. अगर शीर्ष कोर्ट के फैसले को लेकर किसी को कोई आपत्ति है तो पुनर्विचार याचिका, उपचारात्मक याचिका दाखिल करने की छूट होती है. यह अलग बात है कि इनका दायरा बहुत सीमित होता है.
पेशे से वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि वकील का काला गाउन और सफेद बैंड पहनने वाले किसी भी आदमी को कोर्ट के फैसले पर सोच समझ कर सवाल उठाने चाहिए.
सलमान खुर्शीद की तरफ से उठाए गए सवाल से कांग्रेस के इस कदम की हवा निकल रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री की तरफ से ही जब इस मामले का खुलकर समर्थन नहीं किया जा रहा है तो फिर कांग्रेस की इस कोशिश को क्या माना जाए.
क्या अपने मनमुताबिक फैसले नहीं होने पर न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल खड़ा किया जा सकता है. क्या दीपक मिश्रा के खिलाफ उस पद की गरिमा को कम करने का आरोप साबित हुआ है. क्या उनके खिलाफ इतने पर्याप्त साक्ष्य हैं. क्या किसी तरह के गलत व्यवहार का आरोप साबित हो गया है. अगर ऐसा नहीं है तो महज आरोप लगाकर राजनीतिक फायदे के लिए महाभियोग लाने की प्रक्रिया को कहां तक जायज ठहराया जा सकता है.
हालांकि कांग्रेस के लिए महाभियोग की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना भी आसान नहीं है. क्योंकि संसद में दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन के बगैर ऐसा कर पाना संभव नहीं होगा. तो क्या कांग्रेस को संसद के भीतर विपक्षी कुनबे को एक कर इतनी संख्या जुटाने की ताकत का अंदाजा नहीं है ?
हालांकि संसद के भीतर चर्चा और उस चर्चा के बाद मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग लगाकर हटाना मुश्किल है. क्योंकि उसके पास संख्या बल नहीं है. लेकिन, उसके पहले अभी सबकुछ राज्यसभा के चेयरमैन पर निर्भर करता है कि वो इस मामले में विपक्ष के आरोपों को मानते हुए महाभियोग के प्रस्ताव पर क्या फैसला लेते हैं.
जब कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ मिलकर भी महाभियोग प्रस्ताव पास नहीं करा सकती है तो फिर इस मुद्दे को इतनी हवा क्यों दे रही है. दरअसल, यह सबकुछ राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा है. कांग्रेस मोदी सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग करने का आरोप पहले से लगाती रही है. लेकिन, सोहराबुद्दीन इनकाउंटर की जांच कर रहे जज लोया का मामला चूंकि सीधे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से जुड़ा हुआ था. लिहाजा इस मामले में आए फैसले पर सवाल खड़ा कर कांग्रेस अपना वोटबैंक साधने की कोशिश कर रही है.
एक और दिलचस्प बात है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की ही बेंच में अयोध्या में मंदिर विवाद की सुनवाई हो रही है. ऐसे में कांग्रेस की जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ आक्रामकता भी कई सवाल खड़े कर रही है. कांग्रेस अपनी तरफ से ज्यादा आक्रामक होकर सियासी फायदा लेने की कोशिश कर रही है. लेकिन, उसकी यह रणनीति उसके लिए आत्मघाती साबित हो सकती है.
क्योंकि बीजेपी भी इस मुद्दे पर काफी आक्रामक होकर जनता के सामने अपना पक्ष रखने की तैयारी कर रही है. बीजेपी जनता के दरबार में पहुंचकर जज लोया की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और राजनीतिक षड्यंत्र के तहत अपने अध्यक्ष अमित शाह को फंसाए जाने के मामले को उछालने से परहेज नहीं करने वाली.
इसका संकेत मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दे भी दिया है. इस मामले को उठाने के लिए लंदन से प्रधानमंत्री मोदी के फोन कॉल के बाद अमित शाह और राजनाथ सिंह के फोन कॉल आने का सार्वजनिक मंच से जिक्र कर शिवराज ने बीजेपी की आने वाली रणनीति का खुलासा भी कर दिया है.
मतलब जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग तो नहीं पारित हो पाएगा, लेकिन, महाभियोग पर महाभारत की पटकथा लिखी जा चुकी है.
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