प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजापुर की रैली में बोलते हुए कहा, ‘अति पिछड़े समाज से आने वाला गरीब का बेटा आज देश का प्रधानमंत्री है तो यह बाबा साहेब की ही देन है.’ मौका बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की 127 वीं जयंती का था और जगह छत्तीसगढ़ का आदिवासी बहुल इलाका बीजापुर, तो प्रधानमंत्री ने इस मौके पर अपने विरोधियों को करारा जवाब दिया जो उन्हें और उनकी सरकार को दलित-आदिवासी विरोधी बताकर घेरने की कोशिश कर रहे हैं.
मोदी ने अपने-आप को दलितों और गरीबों के मसीहा संविधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के साथ जोड़ दिया. यहां तक कि एक साधारण कार्यकर्ता से ऊपर उठकर आज देश के शीर्षस्थ पद पर पहुंचने तक का श्रेय बाबा साहेब को दे दिया. उन्होंने अपनी सरकार को गरीबों, दलितों, शोषितों, वंचितों और आदिवासियों की सरकार बताकर उनकी भलाई और उनके हित के लिए हर संभव मदद का भरोसा भी दिया.
दलित मुद्दों पर सरकार की छवि को सुधारने की कोशिश
लेकिन, इस मौके पर उनकी तरफ से दिया गया बयान देशभर में इस वक्त पैदा हुए माहौल को खत्म करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि इस वक्त कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष मोदी सरकार को दलित विरोधी बताने में लगा हुआ है.
खासतौर से सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एससी-एसटी एक्ट को लेकर दिए गए आदेश के बाद तो कांग्रेस ने तो सीधे इसके लिए सरकार की लापरवाही बता दिया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर सुप्रीम कोर्ट में ठीक तरीके से अपना पक्ष नहीं रखने का आरोप भी लगा दिया.
देश भर में माहौल ऐसा बना कि बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के दलित नेताओं की तरफ से भी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर पुनर्विचार याचिका दायर करने की मांग कर दी गई. आखिरकार सरकार ने इस मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करते हुए एक बार फिर से एससी-एसटी की हिफाजत और उनके हितों के ख्याल के लिए अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई.
लेकिन, कई दलित संगठनों के आह्वान पर बुलाए गए भारत बंद के दौरान हुई हिंसा ने बीजेपी की केंद्र सरकार के साथ-साथ कई राज्य सरकारों को भी चिंता में डाल दिया. क्योंकि इस दिन हुई हिंसा और उसमें हुई मौतों के कारण दलित समुदाय के भीतर गुस्सा है. इसके बाद विपक्ष के हमले ने सरकार को और भी परेशान कर रखा है.
कई दलित संगठनों की तरफ से सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश हो रही है. दलित नेताओं ने इस मुद्दे को लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी को सबक सिखाने का ऐलान किया है. जाहिर है सरकार के लिए दलितों की नाराजगी आने वाले दिनों में चिंता का कारण हो सकती है, क्योंकि अभी मई में कर्नाटक में चुनाव है. उसके बाद अक्टूबर-नवंबर में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने हैं.
दलितों की नाराजगी बढ़ने पर बढ़ सकती है बीजेपी की मुश्किल
अगर इन चुनावों में दलितों की नाराजगी बढ़ी तो बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. लेकिन, असल चुनौती 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर है. अगर दलितों ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो भी पार्टी की परेशानी बढ़ सकती है.
हालांकि सरकार की तरफ से इस मामले में बीजेपी और सरकार के दलित नेताओं को आगे कर दिया गया है. संघ ने भी विपक्ष पर संघ-बीजेपी के खिलाफ झूठा प्रचार करने का आरोप लगाया है.
लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी को इस बात का एहसास है. उन्हें मालूम है कि विपक्षी पार्टियों की साजिश अगर कामयाब हुई तो फिर इसका नुकसान बड़ा हो सकता है. इसलिए उन्होंने विपक्षी राजनीति की हवा निकालने की कोशिश की है. अपने-आप को दलितों, पिछड़े और गरीब तबके से जोड़कर बीजेपी और सरकार की एंटी दलित बनाई जा रही छवि को तोड़ने की पूरी कोशिश की है.
दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त भी मोदी लहर में पूरे देश में कास्ट बैरियर धाराशायी हो गया था. बीजेपी को लोकसभा चुनाव के वक्त बिहार और यूपी समेत कई राज्यों में पिछड़े समुदाय के साथ-साथ दलित समुदाय के लोगों ने भी खुलकर वोट दिया था. यूपी में गैर-जाटव दलित समुदाय के साथ-साथ अति पिछड़े तबके के वोट बैंक को तोड़कर बीजेपी ने हाथी को जीरो पर लाकर खड़ा कर दिया था.
सोशल इंजीनियरिंग के जरिए विपक्ष से निपटने की कोशिश
यही ट्रेंड 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला. उस वक्त भी मायावती की तमाम कोशिशों के बावजूद अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग बरकरार रही. नतीजा रहा कि बीजेपी को तीन-चौथाई सीटें मिली. हालांकि इन चुनावों में भी बीजेपी के खिलाफ दलित विरोधी होने का आरोप लगाया जाता रहा, लेकिन गैर-जाटव दलित समुदाय के वोटरों ने फिर से बीजेपी का ही साथ दिया.
हालांकि इसके लिए बीजेपी की कोशिश पहले से ही चल रही है. संघ परिवार जहां एक कुंआ, एक मंदिर, एक श्मशान के अभियान के जरिए दलित समुदाय को बराबरी का हक दिलाकर साथ लाने में लगा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत पार्टी के दूसरे नेता भी दलितों के घर जाकर खाना खाकर एक बेहतर संदेश देने की कोशिश करते रहे हैं.
बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की विरासत और उनके साथ अपने-आप को जोड़ने की कोशिश में बीजेपी की केंद्र सरकार ने पिछले चार साल में बाबा साहेब के जीवन से जुड़े सभी स्थलों को विकसित किया है. 13 अप्रैल को प्रधानमंत्री की तरफ से दिल्ली में अलीपुर में अंबेडकर स्मारक को राष्ट्र को समर्पित किया जा चुका है.
लेकिन, अभी हाल की घटनाओं और उस पर हो रहे विपक्षी वार ने बीजेपी को परेशान कर दिया है. अब प्रधानमंत्री इसी परसेप्शन को खत्म करना चाहते हैं. उनकी तरफ से खेला गया पिछड़ा कार्ड विपक्षी हमले का जवाब माना जा रहा है.
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