विधानसभा चुनाव में रविवार को अपना नामांकन दाखिल करने राजकोट पहुंचे मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने रिंग रोड किनारे अमृत सागर पार्टी प्लॉट में अपने संबोधन के दौरान कहा, ‘हूं प्रचार मा नथी आवानू, तमे भाजप छो, तमे विजय रूपाणी छो, तमे नरेंद्र मोदी छो’. यानी मैं यहां राजकोट में चुनाव प्रचार करने नहीं आऊंगा. आप सब मान कर काम करो कि तुम ही बीजेपी हो, तुम ही विजय रूपाणी हो, तुम ही नरेंद्र मोदी हो.
राजकोट पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से अपने नामांकन की पूर्व संध्या पर मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने राजकोट जिले के ‘स्वनिर्भर शाला संचालक मंडल’ के तहत आने वाले स्कूलों के संचालकों, शिक्षकों और उनके परिवार के लोगों को संबोधित करते हुए यह बात कही. रूपाणी की इस बात को लेकर लोगों ने खूब तालियां बजाईं. तालियों की गड़गड़ाहट से रुपाणी को नई उर्जा जरूर मिली होगी, क्योंकि उन्हें राजकोट के ‘गुरुजनों’ की तरफ से समर्थन का संकेत मिल रहा था.
दरअसल, विजय रूपाणी के लिए स्वनिर्भर शाला के संचालन से जुड़े लोगों से मिलने का खास इंतजाम किया गया था. क्योंकि राजकोट जिले में इस संस्था के तहत आने वाले 350 स्कूलों में आधे से ज्यादा स्कूलों को पटेल समुदाय के लोग ही संचालित करते हैं.
मुख्यमंत्री को पाटीदार समुदाय की नाराजगी का डर सता रहा
विजय रूपाणी की चिंता भी इसी बात को लेकर है. उनको भी पाटीदार समुदाय की नाराजगी का डर सता रहा है. लेकिन, रूपाणी राजकोट जिले के अलग-अलग इलाकों से आए इन पटेल-गुरुओं के सामने नतमस्तक होकर समर्थन की अपील करते दिखे.
हालांकि, इस कार्यक्रम में शिरकत कर रहे राजकोट के स्वनिर्भर शाला संचालक मंडल के अध्यक्ष अजय पटेल ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान कहा, ‘राजकोट शहर में पाटीदार समुदाय को लेकर कोई परेशानी नहीं है, वो अभी भी बीजेपी के साथ ही है. इसलिए शहरी क्षेत्र में कोई नुकसान नहीं होगा. लेकिन, ग्रामीण क्षेत्रों में नाराजगी अभी भी बरकरार है.’
स्वनिर्भर शाला संचालक मंडल की बैठक के अगले दिन 20 नवंबर को नामांकन से ठीक पहले रूपाणी ने आजी डैम जाकर पूजा की जहां नर्मदा नदी का पानी आता है. इसके बाद रूपाणी राजकोट के कई मंदिरों में गए. दोपहर के वक्त राजकोट पश्चिम सीट से उन्होंने अपना नामांकन दाखिल किया. इस अवसर पर एक बार फिर रूपाणी ने अपनी और अपनी पार्टी की बड़ी जीत का दावा किया.
कैसा है मुख्यमंत्री के विधानसभा का गणित?
राजकोट पश्चिम सीट से ही विजय रूपाणी पहली बार 2014 में उपचुनाव में जीत हासिल कर एमएलए बने थे. आनंदीबेन सरकार में मंत्री बनने के बाद उन्हें 2016 में मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई. अब बतौर मुख्यमंत्री विजय रुपाणी एक बार फिर से इस सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
लेकिन, राजकोट पश्चिम सीट का गणित ऐसा है कि उसमें विजय रूपाणी को पटेल-गुरुओं की शरण में जाना पड़ रहा है. राजकोट-पश्चिम विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा करीब 55 हजार पटेल वोटर हैं. इसके अलावा व्यापारी वर्ग की तादाद लगभग 30 हजार है. ब्राम्हण जाति के 28 हजार और राजपूत जाति के 12 हजार वोटर इस इलाके में हैं. जबकि 25 हजार के आस-पास पिछड़ी जातियों का वोट बैंक है. इस सीट पर 12 हजार दलित और 10 हजार मुस्लिम और लगभग 3 हजार जैन समुदाय के लोग हैं.
विजय रूपाणी को कितना टक्कर दे पाएंगे राज्यगुरु?
लेकिन, इस बार विजय रूपाणी को चुनौती मिल रही है राजकोट पूर्व सीट से कांग्रेस के मौजूदा एमएलए इंद्रनील राज्यगुरु से. राज्यगुरु ने एक साल पहले ही इस बात का ऐलान कर दिया था कि इस बार विधानसभा चुनाव में वो अपनी सीट बदलकर सीधे मुख्यमंत्री के खिलाफ ही ताल ठोकेंगे.
इंद्रनील राज्यगुरु ब्राह्मण समाज से आते हैं तो कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार ब्राह्मण समुदाय बीजेपी को वोट न देकर उनके पाले में आ जाएगा. इसके अलावा पटेल बहुल इस सीट पर पटेल फैक्टर को लेकर भी कांग्रेस आस लगाए बैठी है.
राजकोट के पार्टी कार्यालय में चर्चा के दौरान कांग्रेस के जिलाध्यक्ष हितेश भाई वोरा दावा करते हैं, ‘इस बार मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को हरा देंगे’. इसके तर्क में वो कहते हैं कि ‘जीएसटी से व्यवसायी नाराज है. इसका सीधा फायदा हमें मिलेगा’. हालांकि उनका दावा है कि ‘पटेल भी बीजेपी के बजाए कांग्रेस को ही वोट करेंगे.’
अपने जिलाध्यक्ष के सुर में सुर मिलाते हुए राजकोट में गोंडल तहसील की देरड़ी से जिला पंचायत सदस्य चंदूभाई सिंगाड़ा कहते हैं कि ‘इस बार तो इतिहास बनेगा, पहली बार होगा कि कोई मौजूदा सीएम गुजरात में हारेगा’. 30 साल तक बीजेपी में रहने के बाद चंदूभाई ने वर्ष 2010 ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था. उनका कहना है कि राजकोट शहर में 80 फीसदी स्मॉल स्केल इंडस्ट्री पटेल समुदाय के पास है. लेकिन, नोटबंदी, जीएसटी और फिर मंदी ने कमर तोड़कर रख दी है.
मगर बीजेपी सीएम विजय रूपाणी की जीत को लेकर ज्यादा फिक्रमंद नहीं है. पार्टी नेताओं को लगता है कि कांग्रेस जितनी भी उछल-कूद कर ले मुख्यमंत्री को हराने की बात करना तो महज खयाली पुलाव है.
रूपाणी के विधानसभा क्षेत्र के इंचार्ज नितिन भारद्वाज का मानना है कि ‘विजय भाई रूपाणी पहले एक कार्यकर्ता के तौर पर चुनाव जीते थे. लेकिन, अब सीएम के तौर पर चुनावी मैदान में हैं. ऐसे में इस बार का हौसला ही अलग है’. लेकिन, कांग्रेस के दावे से उलट इनका आरोप है कि ‘कांग्रेस पैसे के जोर पर चुनाव लड़ रही है. उसके पास तो इस सीट पर न बेस है, न लोग हैं और न ही पार्टी का संगठन है.’
राजकोट क्षेत्र में लंबे वक्त से विजय रूपाणी के साथ जुड़े रहे और वर्तमान में गुजरात बीजेपी के प्रवक्ता राजू भाई ध्रुव का कहना है कि ‘विजय भाई रूपाणी सरल आदमी हैं. सहज आदमी हैं. धूर्त और दंभी व्यक्ति नहीं हैं. सबके लिए आसानी से मिलने वाले और कार्यकर्ता के बीच हमेशा सक्रिय रहने वाले मुख्यमंत्री हैं. लिहाजा उन्हें चुनाव में उन्हें क्षेत्र की जनता भारी अंतर से जीत दिलाएगी.’
बीजेपी के लिए लकी रही है राजकोट-पश्चिम सीट
राजकोट पश्चिम की सीट बीजेपी के लिहाज से काफी भाग्यशाली रहा है. मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी भी 2002 में इसी सीट से उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. इस बार विजय रूपाणी के लिए भी यह सीट काफी ‘लकी’ रहा. 2014 में हुए उपचुनाव में जीत हासिल करने के बाद विजय रुपाणी दो साल बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.
2002 से लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले वजूभाई बाला भी कर्नाटक के राज्यपाल बन चुके हैं. ऐसे में यह सीट मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के लिए कितना लकी साबित होगा, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा. लेकिन, मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को भी पता है कि इस बार चुनाव में वो अपनी सीट पर ज्यादा वक्त नहीं दे पाएंगे, लिहाजा अपने कार्यकर्ताओं से मंत्रणा कर राजकोट से निकल गए हैं.
बीजेपी कार्यकर्ता विजय रूपाणी के उसी गुरु-मंत्र को लेकर उनकी जीत के लिए मैदान में उतर गए हैं ‘तमे भाजप छो, तमे विजय रूपाणी छो, तमे नरेंद्र मोदी छो.’
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