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भूपेश बघेल: 2013 के नक्सल हमले में समूचा पार्टी नेतृत्व खत्म होने के बाद कैसे कांग्रेस को दोबारा खड़ा किया

2003 में छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस हार गई थी, लेकिन भूपेश बघेल ने अपनी सीट बरकरार रखी थी. 2008 में, उन्हें हार मिली थी. लेकिन 2013 में विधानसभा में वापस लौट आए

Updated On: Dec 16, 2018 05:41 PM IST

FP Staff

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भूपेश बघेल: 2013 के नक्सल हमले में समूचा पार्टी नेतृत्व खत्म होने के बाद कैसे कांग्रेस को दोबारा खड़ा किया

भूपेश बघेल, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी को पुनर्जीवित करने वाले नेता के रुप में जाने जाते हैं. बघेल ने राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए और लोगों को अपने साथ बड़े पैमाने पर जोड़ने के लिए 'पदयात्रा' की और प्रदेश में पार्टी की किस्मत बदल दी. बघेल एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जिसने राज्य में BJP शासन का खात्मा कर दिया.

मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह कैबिनेट के पूर्व मंत्री बघेल के सामने पहाड़ सी स्थिति थी. उन्हें पूरी पार्टी को फिर से खड़ा करना था क्योंकि 2013 में बस्तर जिले के दरबा में माओवादियों के जानलेवा हमले ने राज्य के पार्टी नेताओं को खत्म कर दिया था.

2013 के नक्सल हमले में पूरा पार्टी नेतृत्व खत्म हो गया:

कांग्रेस के एक नेता ने कहा, 'हमले में प्रदेश कांग्रेस का पूरा नेतृत्व खत्म हो गया था. इसलिए चुनाव के दौरान, पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया. लेकिन 2013 के बाद से ही पूरा फोकस पुनर्निर्माण पर रहा.' बघेल ने पिछले साल पार्टी छोड़ने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अजित जोगी के पार्टी छोड़ने के बाद उन्हें और उनके परिवार को हाशिए पर पहुंचा दिया.

राज्य में पार्टी के पुनर्निर्माण की योजनाओं का केंद्र ओबीसी मतदाता थे, जो मुख्य रूप से किसान थे. बीजेपी ने पिछड़े वोटों के बल पर तीन चुनाव जीते थे. कुर्मी और साहू राज्य की कुल आबादी का 36% हिस्सा हैं. कांग्रेस ने अपने ओबीसी सेल का राष्ट्रीय अध्यक्ष ताम्रध्वज साहू को बनाया. साहू और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बगेल दोनों को ही पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा बनाकर पेश किया गया.

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बघेल के एक नजदीकी नेता ने बताया, 'आइडिया ये था कि लोगों के साथ बातचीत किए बिना रैलियों या यात्राओं का संचालन नहीं किया जाएगा. इसके बजाय भगेल ने अभियान के दौरान 10,000 किमी से अधिक की पदयात्रा की. उन्होंने मतदाताओं, गरीब किसानों से बातचीत की और इससे मतदाताओं के साथ संबंध बनाने में मदद मिली, जिसे किसी और तरीके से पाया नहीं जा सकता था.'

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2003 में छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस हार गई थी, लेकिन भूपेश बघेल ने अपनी सीट बरकरार रखी थी. 2008 में, उन्हें हार मिली थी. लेकिन 2013 में विधानसभा में वापस लौट आए. 2003 से 2008 तक उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा में विपक्ष का उपनेता बनाया गया.

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1993 से बघेल, छत्तीसगढ़ मानव कुमरी क्षत्रिय समाज रहे हैं. बघेल कुर्मी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका राज्य में बड़ा प्रतिनिधित्व है.

लेकिन कांग्रेस में अजीत जोगी की मौजूदगी ने पिछड़े समुदायों का बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकरण करने में मदद की. इन निर्वाचन क्षेत्रों में अन्य जातियों के विरोधी सतनामी ध्रुवीकरण के कारण बीजेपी ने एससी सीटों में से 90% से अधिक जीता. कांग्रेस के एक सूत्र ने कहा, 'अगला कदम यह पता लगाना था कि अजीत जोगी को हाशिए में कैसे पहुंचाया जाए.' लेकिन जोगी ने अपनी पार्टी की घोषणा करके यह काम आसान कर दिया.

2000 में मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद गठित राज्य के पहले मुख्यमंत्री जोगी, पिछले साल तक पार्टी का प्रमुख चेहरा बने रहे. उत्तर में सरगुजा के जनजातीय बेल्ट और दक्षिण में बस्तर के बीच बसे छत्तीसगढ़ के चावल के कटोरे में रहने वाले दलित समुदाय के बीच उनकी मजबूत पकड़ है. भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि जोगी फैक्टर ने वास्तव में दुर्ग, रायपुर और बिलासपुर के तीन डिवीजनों में कांग्रेस के लगभग 9% वोट का हिस्सा कम कर दिया. जिससे कांग्रेस का वोट प्रतिशत 40.3% से 31% हो गया.

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लेकिन कांग्रेस ने इस घाटे को बीजेपी के साहू-कुर्मी और ओबीसी वोटों के लगभग 8-10% वोटों को अपने पक्ष में करके दूर कर लिया.

बीजेपी की बूथ प्रबंधन रणनीति को दोहराया:

पार्टी ने बूथ प्रबंधन की बीजेपी की रणनीति को भी दोहराया. जो उनकी सफलता में महत्वपूर्ण था. ऐसा करने में, पार्टी के नेताओं ने कहा, वे भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने में सफल हुए.

'हमने बूथ स्तर पर अपनी ताकत बनाई है. ऐसा कुछ हमने पहले नहीं किया था ऐसा नहीं है, लेकिन जब हमने ये किया था, तब हमने महसूस किया कि बहुत से लोगों को 'नकली मतदाता' के रूप में सूचीबद्ध किया गया था. जब हमने उनसे बात की, तो हमें एहसास हुआ कि वे वास्तव में, बीजेपी के वोटर नहीं थे. हमने उन मुद्दों को समझने की कोशिश की और फिर उसपर काम किया.'

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बघेल के एक सहयोगी ने कहा कि, 'पार्टी में कांग्रेस को जिस प्रमुख मुद्दे का सामना करना पड़ा वो यह था कि जोगी समेत कुछ नेता रमन सिंह पर नरम हो गए थे. पार्टी को 'बीजेपी की बी-टीम' के रूप में पेश किया गया था. बघेल के नेतृत्व में पार्टी इसे बदलने के लिए सक्षम थी. हमने विभिन्न मुद्दों पर कई अदालतों में केस लड़ा और इससे लोगों की धारणा को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा हुई.'

साथ ही पार्टी राज्य में किसानों की दिक्कतों को भी समझने और उसे सामने लाने में सफल रही. सहयोगी ने कहा, 'चाहे वह कर्ज में छूट का वादा था या फिर न्यूनतम समर्थन मूल्यों में वृद्धि, हम राज्य के किसानों को यह समझाने में सक्षम थे कि कांग्रेस पार्टी उनकी देखभाल करेगी.'

(न्यूज18 के लिए अनिरुद्ध घोषाल की रिपोर्ट)

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