असम के स्वास्थ्य, शिक्षा और वित्त मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने 49 साल की उम्र में पड़ोसी राज्य त्रिपुरा में अपनी राजनीतिक पैठ बना ली है. हेमंत बिस्व सरमा ने अगस्त 2015 में कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था. बीजेपी ने सरमा को त्रिपुरा चुनाव का प्रभारी बनाया है. हेमंत बिस्व सरमा से बातचीत के कुछ अंश-
त्रिपुरा चुनाव में कुछ ही समय बचा है. ऐसे समय में आप बीजेपी को कहां देखते हैं?
बीजेपी काफी आरामदायक स्थिति में है. मेरे विचार से सरकार बनाने के लिए जितनी सीटें चाहिए वो हमने पहले से ही सुनिश्चित कर लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो और रैलियों और कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों के साथ हम अपना तालमेल अधिक प्रभावशाली बना लेंगे और राज्य में एक आरामदायक स्थिति में होंगे.
आपकी पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी?
मुझे लगता है हमें आराम से 35 सीटें (60 में से) मिल रही हैं. लेकिन अभी भी 10 सीटें ऐसी हैं जो मार्जिनल हैं. जिसमें से माना जा रहा है कि हमें 5 सीटें मिल जाएंगी. ऐसे में हम 40 सीटों के आसपास जीत जाएंगे.
क्या आपको लगता है ये अच्छा बहुमत है?
अभी की स्थिति में ऐसा है. लेकिन मैं ये एक चेतावनी के साथ कह रहा हूं. यहां सीपीएम के खिलाफ एक मजबूत विरोधी लहर चल रही है. अटकलें हैं कि माणिक सरकार अपनी धनपुर की सीट गंवा सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो आप एक आश्चर्यजनक परिणाम देखेंगे.
पिछले साल के आपके प्रदर्शन पर गौर करें तो आपके पास 0 सीटें थीं और सिर्फ 1.5 प्रतिशत वोट शेयर था. आपका वाम मोर्चा को तोड़ने का लक्ष्य है, ये कैसे संभव हो पाएगा?
हमने असम और मणिपुर में सरकारें बनाई हैं. सवाल ये है कि विपक्ष पर कब्जा कौन करता है. त्रिपुरा में कांग्रेस ने जगह बनाई है लेकिन सीपीएम के साथ उनके रिश्ते डांवाडोल रहे हैं. इसलिए अब सभी एंटी लेफ्ट पार्टियां बीजेपी के साथ सम्मेलित हो रही हैं क्योंकि लोगों को लगता है कि बीजेपी सीपीएम के साथ वैचारिक या कोई दूसरा समझौता नहीं करेगी. ऐसा ही कुछ मणिपुर में भी हुआ. बाईपोलर चुनाव स्थिति में पहले के चुनावी आंकड़ें मायने नहीं रखते. त्रिपुरा में 44 फीसदी मतदाता हमेशा सीपीएम के विरोध में होते हैं और 44 फीसदी अब बीजेपी के पीछे रैली कर रहे हैं. इसके अलावा मोदीजी का प्रदर्शन और हमारे आक्रामक अभियान राज्य में हमारी स्थिति मजबूत बना रहे हैं.
ऐसा लगता है कि नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी एक फॉर्मूले पर काम कर रही है. इसमें बीजेपी कांग्रेस को को-ऑप्ट कर रही है जो विपक्ष पर कब्जा करने वाली है. इसके अलावा पार्टी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर काम कर रही है जो अलग राज्य की आकांक्षाएं रखते हैं. इस फॉर्मूले ने आपके लिए असम और मणिपुर और कुछ हद तक अरुणाचल में भी काम किया था. क्या आपको लगता है कि त्रिपुरा में ये काम करेगा?
आज हमने त्रिपुरा में कांग्रेस को खत्म कर दिया है. उनके कुछ नेता बीजेपी में शामिल है गए हैं. टीएमसी के एक विधायक दल का पूरी तरह से बीजेपी में विलय हो गया है. तो अब विपक्ष में हमारे अलावा कोई पार्टी नहीं है. जहां तक आईपीएफटी और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों की बात है तो आदिवासियों से बीजेपी का कोई टकराव नहीं है. उन्हें मुख्यधारा में लाने, गठबंधन में शामिल करने, उन्हें सहज करने और राष्ट्रीय पार्टी में उनके साथ अधिकार बांटने का हम प्रयास कर रहे हैं. हमने मणिपुर और असम में ये कर दिखाया है और अरुणाचल में इसी कोशिश में लगे हैं.
लेकिन अगर आईपीएफटी ने कहा कि वह अलग ट्विपरालनाड की मांग नहीं छोड़ेगी और बीजेपी संयुक्त त्रिपुरा चाहता है. आप इस मुद्दे को कैसे सुलझाएंगे जबकि अब वे आपके राजनीतिक सहयोगी हैं.
मुझे नहीं लगता कि आईपीएफटी ने किसी भी रैली में अलग राज्य के लिए एक भी शब्द कहा है. मैं जानता हूं क्योंकि मैं वहीं था. हमारे संयुक्त बयान में कहा गया कि त्रिपुरा एक रहेगा और उसे विभाजित नहीं किया जाएगा.
आप न केवल त्रिपुरा में वाम दलों से लड़ रहे हैं बल्कि सीएम माणिक सरकार की विरासत से भी लड़ रहे हैं. इन चुनावों में बीजेपी मुख्यमंत्री उम्मीदवार का चेहरा लोगों के सामने क्यों नहीं लाती?
आप देख रहे हैं कि इस पद के लिए हमारे आसपास सक्षम लोग हैं. ये हमारी रणनीति है कि हम एक का नाम नहीं बता रहे जिससे हमारे सभी विरोधियों की उनके निर्वाचन क्षेत्र में हार सुनिश्चित हो. नॉर्थ ईस्ट का ये कल्चर है कि जब आप मुख्यमंत्री का चेहरा सामने लाते हैं तो हर कोई उसे टारगेट करने लगता है और वो हार जाता है. इसलिए हमने अपनी रणनीति तैयार की है. त्रिपुरा में हर कोई जानता है कि हमारा मुख्यमंत्री कौन होगा बस बात ये है कि हमने इस पर बयान जारी नहीं किया है.
(न्यूज 18 के लिए सौगत मुखोपाध्याय की रिपोर्ट)
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