हाल ही में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि हम अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ेंगे. बातचीत हो चुकी है. विपक्ष के साथ आने का फायदा झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) को मिल भी चुका है, दो सीटों पर हुए हालिया विधानसभा उपचुनाव में पार्टी को सफलता मिली.
अब ऐसे में सवाल उठता है कि झारखंड में विपक्ष का मतलब केवल जेएमएम और कांग्रेस ही है क्या? बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा, आरजेडी, वाम पार्टी को विपक्ष की साझी लड़ाई में क्यों नहीं शामिल किया जा रहा है? फ़र्स्टपोस्ट ने इन्हीं सब मुद्दों पर हेमंत सोरेन से लंबी बातचीत की.
'बाबूलाल अब मार्गदर्शक बनें, हमें बीजेपी से लड़ने दें'
हेमंत सोरेन ने साफ कहा कि ‘बाबूलाल मरांडी अपना ध्यान लोकसभा चुनाव पर अधिक लगाएं, विधानसभा में वह हमारे मार्गदर्शक की भूमिका निभाएं, तो राज्य के लिए बेहतर होगा. सीनियर हैं हमसे, अनुभव है उनका, उसको हमारे साथ साझा करें. उनके सुझाव को मानेंगे. हालांकि उनके मन में क्या है, ये तो वही जानें.' साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि 'दोनों चुनावों में में हम अधिक लचीले रुख के साथ उतरेंगे. अगर नौबत आई तो आरजेडी और लेफ्ट को भी सीटें दी जा सकती हैं.’ उन्होंने कहा कि ‘विपक्ष एक साथ खड़ा होना चाह रहा है. मंशा बन रही है. मौजूदा समय की डिमांड है कि साथ चला जाए, इसमें सफलता भी है, अब इसको आकार देना है.’
जहां तक कांग्रेस की बात है, वह झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को तैयार है. सीटों के बंटवारे पर दोनों पार्टियों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, कई दौर की होनी है, लेकिन खुलासा शायद ही कोई पार्टी चुनाव से एक साल पहले करती हो.
किन मुद्दों पर लड़ा जा सकता है झारखंड में चुनाव?
हेमंत सोरेन ने कहा कि ‘बिजली, पानी, सड़क तो हमेशा से मुद्दा रहा है. लेकिन जब आप बीजेपी से लड़ाई लड़ रहे हैं तो इससे इतर भी सोचने की जरूरत है. चुनाव आते-आते वह अपने तिकड़मों और पैसों से खुद इन्हीं मुद्दों को भटका देती है. सीएनटी-एसपीटी, भूमि अधिग्रहण, नियोजन नीति, जेपीएससी, कर्मचारी चयन आयोग का मसला है, इन मुद्दों पर बीजेपी का जो रवैया रहा है, उसने हमारे लिए रास्ता बनाया है. सरकार खुद मुद्दा दे रही है. बीजेपी सरकारी एजेंसी का इस्तेमाल कर केवल कार्यकर्ता खड़ी कर रही है, मुखिया की निगरानी के लिए भी बीजेपी कार्यकर्ता खड़ी कर रही है.’
पूरी तरह गलत है पत्थलगड़ी का तरीका
झारखंड के खूंटी जिले सहित कई अन्य इलाकों में पत्थलगड़ी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है. यहां आदिवासियों ने ग्राम पंचायत को अधिकार देने के नाम पर अपना बैंक स्थापित कर लिया है, सरकारी अधिकारियों के आने-जाने पर रोक लगा दिया गया है. एक आदिवासी नेता की छवि रखने के बावजूद हेमंत ने इस पूरे आंदोलन को सिरे से खारिज कर दिया.
उन्होंने कहा कि ‘मेरा साफ मानना है कि जिस तरीके से यह मूवमेंट चल रहा है, यह पूरी तरह गलत है. गुजरात से इसका कनेक्शन जुड़ गया है. मजेदार बात ये है कि जिस गुजरात से इसके संचालन की बात हो रही है, वहां कोई मुद्दा नहीं है यह, लेकिन झारखंड में विवाद का मुद्दा बन जाता है. पुलिस अधिकारियों को बंधक बनाया जा रहा है. साफ है कि बीजेपी सरकार अंदर ही अंदर इसे हवा दे रही है. झारखंड में पत्थलगड़ी की परंपरा रही है. लेकिन वर्तमान सरकार जानबूझकर इसे गलत डायरेक्शन में ले गई है. बीजेपी के डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी का नतीजा है कि लोग विद्रोह कर रहे हैं. ये आदिवासियों को आपस में लड़ाने की चाल है. बैंक का खुलना बहुत गलत बात है, हजार करोड़ रुपए गुजरात से आने की बात हो रही है, ये सब कहां से हो रहा है. अगर मेरी सरकार होती हो तो सीधा उनके बीच जाता और उनके बीच से एक गिलास हड़िया लेता और कहता है कि क्या समस्या है, बातचीत से सुलझाओ. इतनी देरी तो होती ही नहीं. लेकिन हो ये रहा है कि झारखंड के अलावा अन्य आदिवासी राज्यो में इसको फैलाया जा रहा है.’
थर्ड फ्रंट मतलब बीजेपी को हराने के लिए जमीन तैयार करना
कभी थ्रर्ड फ्रंट के नाम पर के चंद्रशेखर राव को अपना पुरजोर समर्थन देनेवाले हेमंत ने अब इससे खुद को पूरी तरह अलग कर लिया है. साफ कहा कि ‘थर्ड फ्रंट कोई नया मुद्दा नहीं है, यह बहुत पुराने समय से चला रहा है. केसीआर और चंद्रबाबू से मुलाकात का मतलब यह नहीं था कि थर्ड फ्रंट की बात हुई हो. इसमें निर्णय कुछ नहीं हुआ है क्योंकि बीजेपी देशभर में जिस तरीके से राजनीति कर रही है, डिवाइड एंड रूल की, एसी स्थिति में थर्ड फ्रंड जैसी चीजों से उसे दुबारा मौका मिल सकता है. चूंकि कांग्रेस को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन लोकसभा जीतने के बाद ही राहुल गांधी को सपोर्ट का मुद्दा आएगा. फिलहाल किसी तरह की कायसबाजी राजनीतिक चोंचलेबाजी के अलावा कुछ नहीं होगा. अगर बड़ी मेजॉरिटी के साथ राहुल आते हैं तो उनकी दावेदारी खुद बनती है.'
भूख से मौत पर बवाल क्यों नहीं
हाल ही में गिरिडीह जिले में सावित्री देवी नामक महिला की मौत हो गई. खबर आई कि भूख से मौत हुई है. लेकिन मेडिकल रिपोर्ट दोनों ही पार्टियों में से किसी के पास नहीं है. फिर भी सरकार इसे बीमारी से मौत का नाम दे रही और विपक्ष भूख से मौत बता रही है.
इसपर हेमंत ने कहा ‘चाहे भूख से हो या बीमारी से हो, दोनों स्थितियों में मौत होती है तो हत्या की श्रेणी में आएगा. दवा के अभाव में मौत हुई है, इसकी जिम्मेवारी कौन लेगा? सीएम लेंगे, मंत्री लेंगे, अधिकारी लेंगे, किसी न किसी तो लेना होगा न. हमने तो कहा है कि एक आयोग गठन कर इसकी जांच होनी चाहिए. यह एक मामला नहीं है, पलामू, गढ़वा, सिमडेगा, कांके सहित कई जगहों पर हुई है. यहां कंबल घोटाला हो रहा है, इसी राज्य में कंबल के अभाव में लोग मर रहे हैं. जनता पदाधिकारियों के दरवाजे तक पहुंच रही है, फिर भी नहीं मिल रहा है.
'रघुवर दास गुंडागर्दी से काम कर रहे हैं'
हेमंत पर यह भी आरोप लगता रहा है कि वह खुलकर रघुवर दास का विरोध नहीं कर पाते हैं. लोग इसकी कई वजहें गिनाते हैं, इसपर उन्होंने कहा कि ‘रघुवर दास का साफ मानना है अभी मेरी सरकार है, मुझे जैसे चलाना है, चलाएंगे, जिसको टेंडर देना हो देंगे. यह साफ गुंडागर्दी है और कुछ नहीं. सड़क पर उतरने का नतीजा है कि हमारे दो-दो विधायक सस्पेंड कर दिए गए. जब भी आंदोलन होते हैं, हजारों लोगों पर एफआईआर कर दिया जाता है. मैं नहीं चाहता हूं कि राज्य को आग के हवाले किया जाए. झारखंड के लोग शांत स्वभाव के हैं, उनको बीजेपी सरकार ने परेशान करके रख दिया है. जब मेरी सरकार आएगी सभी जेल जाएंगे, सीएम के लेकर जो इनका कुनबा है, सभी को जेल भेजूंगा. समय आने दीजिए. हमारे पास बीजेपी की तरह पैसा नहीं है, रोज कुआं खोदना है रोज पानी पीना है. बस देखते रहिए. अंदर ही अंदर हम सुलग रहे हैं.’
मोदी से कैसे लड़ेंगे?
बीजेपी के आईटी सेल को पूरी तरह खारिज करते हुए हेमंत ने कहा ‘जेएमएम को न तो रघुवर दास से फर्क पड़ता है न पीएम से. सभी उपचुनावों से पहले पीएम ने दौरा किया, लेकिन परिणाम जेएमएम के पक्ष में रहा. बीजेपी के आईटी सेल का झारखंड में कुछ असर नहीं पड़ेगा. सौ सुनार का एक लोहार का- यही होगा. जब राजनीतिक मंच सजेगा, चुनावी मैदान में देखिएगा. झारखंड के आदिवासियों की यही खासियत है, यह जमीन पर लड़ती है, इंटरनेट पर नहीं. जेएमएम विधायक और सांसद की बदौलत चुनाव नहीं लड़ती है, वह कार्यकर्ताओं के दम पर लड़ती है.
'आजसू खत्म होने से पहले संभल जाए तो ठीक होगा'
हालिया उपचुनाव में हारने के बाद बीजेपी सरकार की सहयोगी आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने कहा कि उन्हें बीजेपी ने हराया. हेमंत ने इसे खारिज करते हुए कहा ‘आजसू अब खत्म होने के कगार पर आ चुकी है. आप देखिएगा यह अलग होकर चुनाव लड़ेंगे. जिस तरीके से आजसू ने समर्थन देकर रघुवर सरकर की गलत नीतियों को पास करने का काम किया, उसका खामियाजा वह भुगत रहे हैं. हारने के बाद अब वह (सुदेश महतो पेरिस घूमने चले गए) विदेश चले गए तो हम क्या कह सकते हैं. बड़े लोग बड़ी बात, वैसे निजी मसलों पर हम कुछ नहीं कहेंगे, यह बीजेपी वालों का काम है.'
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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