हरियाणा में लोकल बॉडी और मेयर के चुनाव में बीजेपी को बढ़त मिली है. तीन राज्यों में हार के बाद बीजेपी के लिए सुखद खबर है. इस हार की वजह से कांग्रेस का मज़ा किरकिरा हो गया है. कांग्रेस को उम्मीद नहीं थी कि बीजेपी को इस तरह का फायदा होने जा रहा है. कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी कहीं जीत दर्ज नहीं कर पाए हैं.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के लिए ये जीत संजीवनी से कम नहीं है. लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को बड़ी मात मिली है. हालांकि कांग्रेस अपने निशान पर चुनाव नहीं लड़ी थी, लेकिन बड़े नेताओं ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनको जनता ने नापंसद किया है. कांग्रेस के प्रदेश के मुखिया अशोक तंवर ये मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि ये कांग्रेस की हार है. अशोक तंवर का कहना है कि ये नेताओं की व्यक्तिगत हार है, कांग्रेस की हार नहीं हैं, और प्रदेश में कांग्रेस के समर्थन में माहैल है, जनता अब बीजेपी के नहीं बल्कि राहुल गांधी के साथ है. हालांकि कांग्रेस ने एक मौका गंवा दिया है. बहरहाल तीन राज्यों के नतीजों से कांग्रेस को फायदा मिलना था वो नहीं हो पाया है.
शक्ति एप को इग्नोर किया गया
राहुल गांधी से सीधे कार्यकर्ताओं से संवाद के लिए ये एप बनाया गया है. जिसका रियल टाइम डेटा राहुल गांधी के पास रहता है. हरियाणा में कांग्रेस अपने सिंबल पर चुनाव लड़े या न लड़े इसको लेकर कार्यकर्ताओं से पूछा गया, सूत्र बता रहें है कि 90 फीसदी से ज्यादा वर्करों ने सिंबल पर चुनाव लड़ने का समर्थन किया, जिसके बाद राहुल गांधी भी इसके लिए तैयार हो गए थे. लेकिन सीनियर नेताओं ने कहा कि कांग्रेस सिंबल पर चुनाव कभी लड़ी नहीं है, इसकी वजह से कांग्रेस ने चुनाव में ना उतरने का फैसला किया था.
कई अलग-अलग जगहों से मिल रहे फीडबैक के आधार पर शक्ति एप पर दोबारा पोल हुआ फिर से कार्यकर्ताओं ने सिंबल पर लड़ने की हिमायत की, जिसके बाद राहुल गांधी ने दिल्ली के प्रभारी पी सी चाको को इस मामले को सुलझाने के लिए कहा लेकिन चाको भी मामले को समझने में नाकाम रहे हैं
पीसी चाको नहीं ले पाए फैसला
दिल्ली के प्रभारी पीसी चाको इस काम को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाए, बल्कि कार्यकर्ताओं के मूड को भांप नहीं पाए थे. कांग्रेस में प्रदेश के सीनियर नेताओं के कहने पर फैसला कर लिया और वही फीडबैक राहुल गांधी को दे दिया गया, जिसके बाद ये फैसला हो गया कि कांग्रेस का चुनाव में उतरना माकूल नहीं है. हालांकि कांग्रेस का चुनाव में नहीं उतरना बीजेपी के लिए केक वॉक साबित हुआ है. बिना किसी संघर्ष के हरियाणा के इस चुनाव में बीजेपी का परचम लहरा गया है.
संगठन भी नजरअंदाज
हालांकि हरियाणा का संगठन चुनाव लड़ने का हिमायती था. संगठन को लग रहा था कि चुनाव लड़ने से पार्टी की लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता था. ये भी आंकलन हो जाता कि लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की ताकत कितनी है. ऐसा नहीं हो पाया है, जिससे साफ है कि संगठन को नए सिरे से काम करना पड़ सकता है.
सीनियर नेताओं के किले ढहे
हरियाणा में कांग्रेस के सबसे सीनियर नेता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं, दस साल तक राज्य के मुख्यमंत्री थे, लेकिन रोहतक में बीजेपी की जीत हुई है. मुख्यमंत्री रहते हुए रोहतक को चमकानें में हुड्डा ने काम किया था. लेकिन ऐसा लगता है कि जनता से कनेक्ट कम हो गया है. बताया जाता है कि उनके वार्ड में भी उम्मीद से कम वोट मिले हैं. रोहतक में हुड्डा समर्थित सीताराम सचदेव को बीजेपी के मनमोहन गोयल ने 14,000 से ज्यादा वोट से हराया है. यही हाल रणदीप सुरजेवाला का गढ़ समझे जाने वाले कैथल से भी है. जहां पुंडरी नगर पालिका में बीजेपी जीती है. जाहिर है यही हाल पानीपत, हिसार और करनाल में रहा है. इस जीत के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि ये बीजेपी और कार्यकर्ताओं की जीत है. जीत से उत्साहित खट्टर ने कहा कि सरकार के कामकाज पर जनता की मुहर है.
हरियाणा में आपसी खींचतान का नतीजा
हरियाणा में कांग्रेस का सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ना आपसी खींचतान का नतीजा है. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और मौजूदा संगठन के मुखिया अशोंक तंवर के बीच नहीं पटती है. जिसके कारण संगठन और नेताओं के बीच सामंजस्य नहीं है. भूपेंद्र सिंह हुड्डा खुद संगठन की चुनाव से पहले कमान चाहते हैं, इसके लिए हुड्डा एड़ी चोटी का जोर भी लगा रहे हैं. लेकिन अभी कामयाबी नहीं मिल पाई है. हालांकि सड़क पर अशोक तंवर संघर्ष कर रहे हैं.
अशोक तंवर के खिलाफ ज्यादातर सीनियर नेता एक साथ नज़र आ रहे हैं. इस आपसी सर फुटव्वल की वजह से कांग्रेस का काम खराब हो रहा है. अशोक तंवर को राहुल गांधी की हिमायत हासिल है. राहुल गांधी नए नेतृत्व को आगे बढ़ा रहे हैं. हुड्डा को बैलेंस करने के लिए दीपेंद्र हुड्डा को कांग्रेस वर्किंग कमेटी में जगह दी गई है. हरियाणा में प्रभारी के नहीं होने से एक दूसरे के बीच सहमति बनाने का काम नहीं हो पा रहा है. हरियाणा में कमलनाथ के मध्य प्रदेश जाने के बाद पद खाली है.
कांग्रेस को नुकसान
हरियाणा में विरोधी के बंटे होने का फायदा बीजेपी को मिल रहा है. बीजेपी के लिए प्रदेश में सब कुछ ठीक चल रहा है. मुख्य विरेधी पार्टियों में बिखराव है. ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी में दो फाड़ हो गए हैं. जो सतह पर हैं. कांग्रेस में अंदरूनी तौर पर कई फाड़ हैं. सीनियर नेता एकतरफ हैं. संगठन एकतरफ है. इस लड़ाई का मज़ा बीजेपी ले रही है.
राहुल गांधी को करना पड़ेगा पहल
हरियाणा में अंदरूनी कलह से निपटने के लिए राहुल गांधी को पहल करनी पड़ेगी. जिस तरह चुनाव से पहले प्रदेश के मुखिया की अगुवाई में चुनाव वड़ने के लिए सहमति बनाई गयी है. जिसमें सभी नेताओं ने प्रगेश के नेतृत्व में लड़ने पर रज़ामंदी ज़ाहिर की थी, उसकी वजह से कांग्रेस बीजेपी को मात देनें में कामयाब हो पायी है. हालांकि हरियाणा में सभी को राज़ी करना आसान नहीं है. कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी, कुलदीप विश्नोई, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सबका अलग खेमा है. सबको साथ लाने के लिए मैराथॉन कोशिश की ज़रूरत है.
कॉर्डिनेशन की कमी
कांग्रेस के इस राज्य में लगभग सभी बड़े नेताओं की दिलचस्पी रहती है. जिसकी वजह से प्रदेश के हर नेता की मज़बूत लॉबी है. ये लॉबी कांग्रेस के काम को सही तरीके से अंजाम देने में रूकावट बन रही है. हर नेता अपने करीबी को प्रमोट करने की कोशिश कर रहा है. लोकसभा चुनाव से पहले सब दुरूस्त हो सकता है, अगर राहुल गांधी इस पूरे मसले पर दिलचस्पी ले या किसी ऐसे व्यक्ति को प्रभारी बनाए जो इस मसले का हल निकाल सकता हो.
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