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गुजरात चुनाव नतीजे 2017: मतदाताओं ने मोदी को चुना मगर बीजेपी को नकार दिया

आशा की जानी चाहिए कि बीजेपी गुजरात के नतीजों से सबक लेगी और 2019 से पहले अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव करेगी

Updated On: Dec 19, 2017 09:36 AM IST

Ajay Singh Ajay Singh

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गुजरात चुनाव नतीजे 2017: मतदाताओं ने मोदी को चुना मगर बीजेपी को नकार दिया

अक्सर पेचीदा सियासी समीकरणों को एक सामान्य सी कहावत सरल बनाकर समझा देती है. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने ऐसे ही गुजरात चुनाव के नतीजों का विश्लेषण किया. ईरानी ने कहा कि, 'जो जीता वही सिकंदर.'

इसमें कोई दो राय नहीं कि गुजरात चुनाव में विजेता साबित हुई बीजेपी के लिए हार बेहद करीब दिखाई दे रही थी. गुजरात के फैसले ने बीजेपी के नेतृत्व को जबरदस्त झटका दिया है. पार्टी बमुश्किल ही गुजरात का अपना किला बचा पाई है. इसी बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह कहते फिरते थे कि वो विधानसभा में तीन चौथाई बहुमत से एक सीट भी कम नहीं हासिल करेंगे. लेकिन, नतीजे आए तो साफ हो गया कि बीजेपी बमुश्किल ही जीती है. 182 सदस्यों वाली विधानसभा में पार्टी के हाथ कुल 99 सीटें ही लगीं.

दो दशकों से अपना ये किला बचाने में कामयाब होती रही थी

हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की जीत जरूर जश्न की वजह हो सकती है. लेकिन नतीजों के दिन सभी की निगाहें गुजरात पर टिकी थीं. गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य है. विपक्ष की लगातार कोशिशों के बावजूद बीजेपी पिछले दो दशकों से अपना ये किला बचाने में कामयाब होती रही थी.

इसी रिकॉर्ड के बूते बीजेपी के नेताओं को लग रहा था कि गुजरात में चुनाव जीतना तो उनके लिए बाएं हाथ का खेल होगा. केंद्र की सत्ता में तीन साल से ज्यादा वक्त गुजारने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बरकरार है. इसी साल मार्च में आए उत्तर प्रदेश के नतीजों ने जता दिया था कि जनता के बीच वो सबसे लोकप्रिय नेता हैं. बीजेपी ने पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में अपना विस्तार किया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद बीजेपी ने ऐसे इलाकों और ऐसे समुदायों के बीच विस्तार किया है, जिनसे जुड़ने में वो लंबे वक्त से नाकाम रही थी.

ऐसी बातों के चलते गुजरात में जीत हासिल करना बीजेपी के लिए बाएं हाथ का खेल होना चाहिए था.

PM Modi at BJP's parliamentary board meeting

गुजरात चुनाव में मिली जीत के बाद बीजेपी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं का अभिवादन करते हुए नरेंद्र मोदी

गुजरात में बीजेपी के खिलाफ सिर्फ एक बात थी. मोदी अब मुख्यमंत्री नहीं, देश के प्रधानमंत्री हैं. गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्री के तौर पर 13 साल के कार्यकाल के बाद, ये पहले चुनाव थे. नतीजे बताते हैं कि उनके सियासी वारिसों के लिए उनकी जगह ले पाना बहुत बड़ी चुनौती था. इसमें वो नाकाम भी रहे हैं. शायद यही वजह थी कि राज्य के बीजेपी नेताओं को जीत इतनी आसान नहीं लग रही थी. उनके लिए उम्मीद की एक ही किरण थी, कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व और संगठन.

बीजेपी को भरोसा या यूं कहें कि गुरूर था कि वो चुनावी चुनौती से आसानी से पार पा लेगी. लेकिन उसका ये यकीन गलत निकला.

नतीजे बताते हैं कि पार्टी को अपने अंदर झांकने की सख्त जरूरत है

हालांकि बीजेपी आखिरकार गुजरात का किला बचाने में कामयाब रही. लेकिन आखिरी नतीजे बताते हैं कि पार्टी को अपने अंदर झांकने की सख्त जरूरत है. बीजेपी को पहला सबक तो ये सीखना होगा कि अहंकार, सुशासन का विकल्प नहीं हो सकता. पूरे राज्य में, आम जनता से लेकर कारोबारियों, उद्योगपतियों, पेशेवर लोगों के बीच गुजरात के बीजेपी नेताओं के प्रति गुस्सा था. उन्हें लगता था कि बीजेपी को कुछ ज्यादा ही गुरूर आ गया था.

आम लोग यही कहते सुनाई देते थे कि बीजेपी के नेताओं को लोगों की परेशानियों की कोई परवाह नहीं.

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बीजेपी के लिए दूसरा सबक ये है कि जनता की भलाई सिर्फ अफसरशाही के भरोसे नहीं हो सकती. मोदी भी ब्यूरोक्रेसी पर बहुत भरोसा करते थे. उन्होंने प्रशासनिक लक्ष्य हासिल करने के लिए अफसरों से बखूबी काम लिया. लेकिन मोदी की जगह लेने वाले अफसरशाही का इस्तेमाल अपने सियासी मकसद के लिए करते रहे. न तो आनंदीबेन पटेल, और न ही विजय रुपाणी वो चतुराई दिखा सके, जो अफसरों से जनता की भलाई के लिए काम कर सके. यही वजह थी कि भ्रष्टाचार इन चुनावों में अहम मुद्दा बन गया.

Vadnagar: Prime Minister Narendra Modi launches the “Intensive Indradhanush Misssion” campaign for the vaccination of children at a public meeting in his hometown Vadnagar on Sunday. Union Health Minister J P Nadda and Gujarat CM Vijay Rupani are also seen. PTI Photo (PTI10_8_2017_000103B)

नरेंद्र मोदी के गुजरात छोड़कर जाने के बाद विजय रुपाणी उसकी चमक को बरकरार नहीं रख सके

केंद्रीय नेताओं पर भी आरोप लगा कि वो जनता की परेशानियों की अनदेखी करते हैं. वित्त मंत्रालय पर आरोप लगा कि वो जीएसटी से हो रही परेशानियों को दूर करना तो दूर, सुनने में भी दिलचस्पी नहीं रखते थे. सूरत, वडोदरा और राजकोट में नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी थी. उनकी शिकायत थी कि जीएसटी को बहुत ही गलत तरीके से और हड़बड़ी में लागू किया गया. सूरत के कुछ कपड़ा व्यापारियों का आरोप था कि हंसमुख अधिया और अरुण जेटली भी उनकी शिकायतें ढंग से नहीं सुन रहे थे.

बीजेपी को सबक सिखाना जरूरी है, तानाशाही करने से रोकना जरूरी है

गुजरात में किसी से भी चर्चा कीजिए, हर कोई बस एक बात कहता था कि बीजेपी को एक सबक सिखाना जरूरी है. लेकिन ये पूछने पर कि क्या बीजेपी हार जाएगी, तो लोगों का जवाब होता था कि उन्हें तानाशाही करने से रोकना जरूरी है. ये नाराजगी इतनी ज्यादा थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चुनाव को गुजराती अस्मिता बताने को मजबूर होना पड़ा.

ऐन वोटिंग से पहले शायद लोगों को यह एहसास हुआ कि बीजेपी को हराने से मोदी के सियासी कद पर भी असर पड़ेगा. इसीलिए लोगों ने बीजेपी को तो सबक सिखाया, मगर मोदी के हक में वोट दिया.

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गुजरात के नतीजों का यह मतलब कतई नहीं निकाला जा सकता कि लोगों ने राहुल गांधी के नेतृत्व में भरोसा जताया है. नतीजों से साफ है कि कांग्रेस लोगों की भयंकर नाराजगी को भी भुनाने में नाकाम रही. गुजरात में कांग्रेस की जीत देश की सियासत में बड़ा बदलाव ला सकती थी. लेकिन, कांग्रेस ने अपने वोट बैंक पर फोकस करने के बजाय चुनाव में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर जैसे नौसिखिए युवाओं को आगे कर दिया. इन नेताओं का कांग्रेस के साथ आना ऐसा सामाजिक गठजोड़ है, जो लंबे वक्त तक चलने वाला नहीं. लोगों ने अर्जुन मोढवाडिया, भरतसिंह सोलंकी और शक्तिसिंह गोहिल जैसे नेताओं को खारिज कर कांग्रेस को बता दिया है कि उनकी नजर में ये नेता बीजेपी के नेताओं का विकल्प नहीं हैं.

Hardik-Alpesh_Jignesh

हार्दिक पटेल-अल्पेश ठाकोर-जिग्नेश मेवाणी की तिकड़ी ने चुनाव में बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था

नतीजों से सबक लेकर 2019 से पहले अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव करेगी

उम्मीद है कि बीजेपी गुजरात के नतीजों से सबक लेगी और 2019 से पहले अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव करेगी. ये भी हो सकता है कि राहुल गांधी इस हार से सबक सीखकर राजनीति में नई रणनीति के साथ नया दांव खेलें. हो सकता है कि राहुल गांधी अपनी पार्टी के भीतर एक नया माहौल बनाकर 2019 के रण में उतरें.

गुजरात चुनाव के नतीजे आगे आने वाली बड़ी लड़ाई के संकेत हो सकते हैं.

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