चेहरे पर मुस्कान लेकिन, कद-काठी और चेहरे से देखने में हिंदुस्तानियों से बिल्कुल अलग, इनसे मिलने के बाद थोड़ी देर के लिए आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि हम इस वक्त कहां हैं. जब हमारी गफ्फार भाई से बात होने लगी तो एक पल के लिए यकीन करना मुश्किल हो रहा था.
गफ्फार भाई फर्राटेदार गुजराती बोलने में माहिर हैं, लेकिन, जब उन्हें लगा कि दिल्ली से पत्रकार आए हैं तो उन्होंने फिर उसी अंदाज में फर्राटेदार हिंदी बोलना शुरू कर दिया. मैं आश्चर्य में था लेकिन, गफ्फार भाई के चेहरे पर मुस्कान दिख रही थी. दरअसल, गफ्फार भाई अफ्रीकन गोमा जनजाति से आते हैं. इस पूरे इलाके में इन लोगों को सीदी बादशाह यानी सीदी समुदाय के नाम से भी जाना जाता है. गिर सोमनाथ जिले के तलाला से सटे जांबुर गांव में गफ्फार भाई का अपना घर है. गांव में ही अपनी सब्जी की दुकान है.
कहां से आए सीदी समुदाय के लोग?
बातचीत के दौरान गफ्फार भाई ने बताया, ‘हमारे बारे में कई तरह की कहानियां हैं. कोई कहता है कि हम अफ्रीका से आए हैं, कोई कहता है कि हम इंडोनेशिया से आए हैं, कोई कहता है कि हमें पुर्तगाली शासकों ने यहां लाया, जबकि कुछ लोग कहते हैं कि जंगल काटने और मेहनत-मजदूरी करने के लिए हमें यहां लाया गया और फिर हम यहीं के होकर रह गए.’
सीधी समुदाय के लोग यहां आने के बाद यानी आज से कई पीढ़ी पहले से ही इस्लाम को मानते हैं. इसलिए उन्हें सीधी बादशाह या सीदी मुसलमान भी कहकर बुलाया जाता है.
पिछले चार सदी से इस इलाके में रहने वाले सीदी समुदाय के लोगों की कई पीढ़ियां हिंदुस्तान की मिट्टी में ही विलीन हो गई हैं. पहले इनके घरों में बुजुर्गों के बीच इस बात की चर्चा होती थी कि ये कहां से आए और कौन हैं. लेकिन, अब तो इस पर कोई चर्चा भी नहीं करता. गफ्फार भाई कहते हैं, ‘हम अब इसी मिट्टी में रच-बस गए हैं. हम केवल इतना जानते हैं कि हम हिंदुस्तानी हैं.’
नई उड़ान को तैयार हैं सीदी
गांव में स्कूल के सामने एक दुकान पर गफ्फार भाई के साथ कुछ और लड़कों से मुलाकात हो गई. शौकत अली ने कहा, ‘मैं अभी बीए फर्स्ट ईयर का छात्र हूं और आगे चलकर पुलिस इंस्पेक्टर बनना चाहता हूं’. शौकत अली के पिता मजदूरी कर परिवार का गुजारा करते हैं लेकिन, अब बेटा अपनी अलग पहचान बनाने के लिए तैयार दिख रहा है.
वहीं दसवीं में पढ़ रहा शकील कहता है कि ‘हम आगे चलकर सेना में भर्ती होना चाहते हैं.’
परंपरागत रूप से मेहनत-मजदूरी कर अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले सीदी समुदाय के लोग कई पीढ़ियों से गिर के जंगल से सटे इलाके में रहते आए हैं. आदिवासी समुदाय में शामिल सीदी लोग इस बात से खफा हैं कि जितना विकास होना चाहिए उतना नहीं हुआ है. यहां तक कि आजादी के 60 साल बाद इनके नाम पर इनके अपने घरों का दस्तावेज भी तैयार हो सका है.
गफ्फार भाई कहते हैं, ‘यह काम नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते किया था'. वो आगे कहते हैं, ‘कांग्रेस हमारा बाप है, लेकिन, वो किस काम का है जो अपने बेटा (हम लोगों) के लिए कुछ नहीं किया. इससे ज्यादा तो बीजेपी ने किया.’
गांव में कब होगा पूर्ण विकास?
गांव के अंदर घुसने पर अभी भी मिट्टी के पुराने मकान ही दिख रहे हैं. हांलांकि कुछ नए मकान भी बनाए गए हैं, लेकिन, अभी भी गांव में पुराने मकान गांव के पिछड़ेपन की कहानी दिखा रहे हैं. गांव में पक्की सड़क बन गई है, बिजली भी है, पानी भी. लेकिन, रोजगार के लिए सीदी लोग अभी भी मजदूरी पर ही निर्भर हैं.
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चुनाव के वक्त नई सरकार से इनकी सबसे बड़ी मांग है कि बाकी बचे सभी घर बना दिए जाएं और रोजगार के नए अवसर इन्हें मिले जिससे इनके जीवन में और बदलाव आ सके.
इस पूरे इलाके में सीदी समुदाय के कुछ और गांव हैं जिनको मिलाकर इनकी आबादी 10 हजार से ज्यादा है.
सीदी समुदाय के लोग धीरे-धीरे गिर सोमनाथ के इलाके से थोड़ी तादाद में अहमदाबाद, ओखा, वड़ोदरा, राजकोट, जूनागढ़ और भावनगर तक भी जाकर बस गए हैं. लेकिन, इनकी शादी इन सभी इलाकों के लोगों के बीच होती रही है. जांबुर गांव में सीदी बादशाह की आबादी लगभग 2 हजार से ज्यादा है, जिसमें 1100 के करीब मतदाता हैं. लेकिन, जांबुर के अलावा और भी कई गांवों में इनकी आबादी है.
बॉलीवुड में भी होगी इंट्री?
देखने में विदेशी लगने वाले इन लोगों को फिल्मों से भी ऑफर की उम्मीद जगने लगी है. इनकी तमन्ना है कि आगे चलकर फिल्मों में भी अगर कुछ रोल मिले तो वो इसे बखूभी निभा सकते हैं. गफ्फार भाई 1999 में बॉलीवुड के नामी अभिनेता ओमपुरी के साथ टेलीफिल्म में काम कर चुके हैं जिसकी शूटिंग दीव में हुई थी. अब उम्मीद बड़े पर्दे की है जहां विदेशी किरदार में इस गांव के लड़के अपनी किस्मत आजमा सकते हैं.
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मजदूरी कर अपना काम करने वाले अब्दुल भाई कहते हैं, ‘हमाने कोई नथी वीक नथी, हमने कोई डराव नथी’. मतलब, हमें किसी तरह का कोई डर नहीं है यहां पर.
लेकिन, मौसम चुनाव का है तो यहां चुनाव को लेकर जब चर्चा शुरू हुई तो सीदी समुदाय के लोग कुछ भी बोलने से अभी कतराने लगते हैं. बार-बार कुरेदने के बावजूद इनका कहना है अभी वक्त है, आगे आने वाले दिनों में हम तय करेंगे कि वोट किसे देना है.
दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद अब मजदूरी कर रहे रमजान का कहना है कि ‘सरकार गमे दिन बने, भाजप बने, कांग्रेस बने, हमारा समाज नू सारु थाउ जोए. हमारा समाज ने नोकरे मडवी जोए’. यानी सरकार किसी की बने हमारे समाज की भलाई और समाज के लोगों के लिए काम करने वाला होना चाहिए. लेकिन, सीदी समुदाय के लोग अपनी इस पहचान को कायम रखते हुए इस बार चुनाव में अहम भूमिका निभाने की तैयारी में हैं.
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