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गुजरात चुनाव 2017: गरबा में छाया है चुनावी रंग

इस बार जीएसटी की मार से गरबा भी अछूता नहीं है, इसकी वजह से नवरात्र के लिए स्पॉन्सर मिल नहीं रहे

Updated On: Sep 26, 2017 11:27 AM IST

Reema Parashar

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गुजरात चुनाव 2017: गरबा में छाया है चुनावी रंग

गुजरात की आबोहवा में ही गरबा रचा बसा है तभी तो राज्य के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने इसे दुनिया का सबसे बड़ा डान्सिंग फ्लोर कहा था. इस बार चुनाव से ठीक पहले पड़ा नवरात्र महोत्सव भी चुनावी रंग में रंग गया है. डेढ़ दशक बाद नरेंद्र मोदी के बिना होने वाले इन चुनाव में बीजेपी के लिए अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाए रखना जितना जरूरी है उतना ही अहम है एंटी इंकम्बेन्सी को कारगर ना होने देना. गुजरात में नवरात्री और गणेश महोत्सव की धूम हर घर में दिखाई देती है खासकर युवा जमकर इसमें शामिल होते हैं. जाहिर है उन्हें लुभाने का आसान तरीका गरबा और डांडिया में उपस्थिति दर्ज कराना है.

खास बात ये है की हर ऐसा गुजरात चुनाव जो साल के अंत में पड़ता है, तो दिवाली और गरबा के दौरान चुनावी आचारसंहिता लागू हो जाती है. लेकिन इस बार अब तक ऐसा नहीं हुआ है. इस मौके को भुनाने के लिए हर राजनीतिक पार्टी मैदान में है. मुख्यमंत्री से लेकर हर मंत्री तक अपने-अपने इलाके में गरबा और डांडिया नाइट में पहुंचने वाले हैं.

सरकार के पर्यटन विभाग ने अहमदाबाद में बड़े आयोजन की तैयारी की है. यही नहीं कई बड़े कॉर्पोरेट घरानो को भी सांस्कृतिक ग्रुप में शामिल कर इस आयोजन से जोड़ा गया है. जिसका उद्घाटन खुद राज्य के मुख्यमंत्री करेंगे.

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विकास के नारे की गूंज गरबा में भी रहेगी

इस बार जीएसटी की मार से गरबा भी अछूता नहीं है. इसकी वजह से नवरात्र के लिए स्पॉन्सर मिल नहीं रहे. गरबा आयोजकों का कहना है कि रियल इस्टेट सेक्टर में मंदी है तो टेलीकॉम, एफएमसीजी, पान मसाला कंपनियों पर जीएसटी और नोटबंदी की मार पड़ी है. हालत ये है की वडोदरा जैसे शहर में जहां स्पॉन्सरशिप लोकेशन महीना भर पहले बिक जाती है, इस बार उसकी बुकिंग नवरात्री के पहले दिन तक खुली हुई है. यही वजह है की खुद सरकार को अपने प्रभाव वाली निजी कंपनियो को विज्ञापन देने के लिए आगे करना पड़ा. लेकिन गरबा जो हर गुजराती के दिल से जुड़ा है इस बात को समझ रहा है और विकास के नारे पर सवाल भी उठा रहा है.

विकास के नारे पर हो रही राजनीति की बानगी गणेश महोत्सव के दौरान ही दिखनी शुरू हो गई थी. सोशल मीडिया से शुरू हुई लड़ाई मंडपो तक पहुंची और कई जगह पंडालो में बैनर पोस्टर तक छा गई. बीजेपी ने स्वीकारा कि इस बार गणेश महोत्सव पर हर बार से ज्यादा पैसा खर्च हुआ है. उस दौरान 'विकास पागल हो गया है' से लेकर 'विकास तूफानी हो गया है' जैसे स्लोगन की धूम मची तो इस बार महंगाई से लेकर पेट्रोल के बढ़ते दामों को मुद्दा बनाया जा रहा है.

आम आदमी पार्टी का गरबा डांस

नवरात्र से ठीक पहले आम आदमी पार्टी ने गरबा सॉन्ग जारी किया है. गुजरातियों के करीब दिखने के लिए ये गाना गुजराती में बनाया गया है. जिसके बोल हैं 'अब गुजरात मा आवछे केजरीवाल’ हिंदी में अर्थ है गुजरात में केजरीवाल आ रहे हैं. वीडियो में आम आदमी पार्टी की टोपी पहने लोग गरबा करते दिखाए गए हैं. इससे पहले 'विकास पागल हो गया है' नाम से बना वीडियो काफी सुर्खियां बटोर चुका है जिस पर बहस अब भी जारी है.

बिन मोदी सब सून

नरेंद्र मोदी गुजरात की नब्ज को जानते थे. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने ही गरबा फेस्टिवल को सरकार के साथ जोड़ा और पर्यटन विभाग को आयोजन की जिम्मेदारी दी. मोदी का गुजरात से जाना राज्य में बीजेपी को महंगा पड़ रहा है.

पहले मुख्यमंत्री का बदलना, फिर हार्दिक पटेल का आंदोलन और अब विकास के नाम पर विपक्ष का हल्ला बोल बीजेपी के लिए एक साथ कई चुनौतियां खड़ी कर रहा है. नवरात्री के बाद अक्टूबर के पहले हफ्ते से चुनाव प्रचार का बिगुल फूंका जाएगा और उससे पहले सबकी कोशिश होगी डांडिया के संगीत में थिरकते गुजरातियों को अपनी राजनीति में रंगने की.

( लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं )

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