67 वर्ष के अहमद पटेल का कांग्रेस के शीर्ष परिवार की तीन पीढ़ियों (इंदिरा,राजीव और सोनिया व अब राहुल) से भरोसे का रिश्ता रहा है. कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक पार्टियों से लेकर औद्योगिक घरानों तक में उनके दोस्त और दुश्मन मुख्यत: इसी वजह से बने हैं.
पटेल,भारतीय संसद में गुजरात का सात बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. तीन बार वह लोकसभा (1977 से1989) और चार बार राज्यसभा (1993 से 2011) से चुनकर संसद पहुंचे हैं. गुजरात से वह फिलहाल एकमात्र मुस्लिम सांसद हैं. गुजरात की राजनीति में वह अहसान जाफरी के बाद सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा माने जाते हैं. अहसान जाफरी, गुजरात दंगों के दौरान मारे गए थे.
सियासी सफर: सबसे युवा सांसद बन सबको चौंकाया
पटेल 1977 में 26 साल की उम्र में गुजरात के भरुच से लोकसभा चुनाव जीतकर तब सबसे युवा सांसद बने थे. तब देश में आपातकाल के खिलाफ आक्रोश से पनपी जनता पार्टी की लहर चल रही थी.
ऐसे में उनका जीतना इंदिरा गांधी समेत सभी राजनीतिक पंडितों के लिए एक बेहद चौंकाने वाली घटना थी. वे 1993 से राज्यसभा सदस्य हैं. पांचवीं बार फिर किस्मत आजमा रहे हैं.
अहमद पटेल की रुचि कभी भी सामने आकर राजनीति करने में नहीं रही है. वे पर्दे के पीछे की राजनीति में भरोसा करते रहे हैं. इसके पीछे कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति की सीमाएं भी काफी हद तक जिम्मेदार है. इसीलिए अहमद पटेल कांग्रेस के अमित शाह नहीं हो सकते है. सियासी रणनीति के मास्टर माइंड पटेल को मुद्दे बनाने व उछालने का महारथी माना जाता है.
गुजरात का उना कांड हो या आंध्र में रोहित वेमूला की आत्महत्या का मामला अथवा सांप्रदायिकता का मसला पटेल ने इनपर कांग्रेस को केंद्र में रखने में अहम भूमिका निर्वाह की है.
कांग्रेस को 2004 और 2009 में दिलाई जीत
पटेल को 2004 व 2009 के लोक सभा चुनावों में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की जीत का अहम रणनीतिकार माना जाता है. कांग्रेस व संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार के नाते वे मनमोहन सरकार के कई अहम फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाते थे. नियुक्तियों, पदोन्नतियों से लेकर फाइलों पर फैसलों तक में उनका सिक्का चलता था.
गुजरात का शेर कौन: पटेल या शाह
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह व अहमद पटेल के बीच पुरानी अदावत है. यह 2010 से बढ़ी जब सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस में शाह को जेल जाना पड़ा. माना जाता है कि तत्कालीन संप्रग सरकार ने पटेल के इशारे पर शाह को इस मामले में घेरा था. संप्रग के 10 वर्ष के शासन के दौरान उन्होंने ही मोदी और शाह की जोड़ी पर निशाना साधने की केंद्रीय एजेंसियों की प्रत्येक कार्रवाई का खाका तैयार किया था.
इसके बाद से शाह के मन में पटेल को लेकर फांस धंस गई. जानकारों के अनुसार गुजरात में पटेलों की बीजेपी से बढ़ती दूरी के पीछे अहमद की खास भूमिका रही है. शाह, पटेल के राजनीतिक कद को छोटा कर दिखाना चाहते हैं. इसीलिए उन्होंने पटेल, राज्यसभा न पहुंचे इसके लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है.
गुजरात का ये राज्यसभा चुनाव अंतिम बॉल पर एक रन लेकर मैच जीतने के लक्ष्य जैसा रोमांचक हो गया है. अहमद पटेल की जीत की उम्मीद और अंतिम क्षणों में किसी अप्रत्याशित की आशंका को देखते हुए कांग्रेस हाईकमान रणनीति बना रहा है. माना जा रहा है कि पटेल की जीत या हार के नतीजे कांग्रेस की रणनीति में काफी आमूल चूल बदलाव लाएंगे.
पटेल के उत्तराधिकारी
वैसे पटेल के उत्तराधिकारी के तौर पर उनके बेटे फैसल को देखा जा रहा है.राजनीतिक जानकार मानते हैं कि वह 2019 से सक्रिय राजनीति में कदम रखेंगे. फैसल दून स्कूल और हार्वर्ड में पढ़े हैं. फैसल कारोबार और समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हैं. फैसल एक अच्छे वक्ता माने जाते हैं.
वह दक्षिणी गुजरात में एचएमपी अस्पताल के जरिए लोगों की मदद में लगे हुए हैं. यहां करीब तीन लाख लोगों को या तो मुफ्त या बेहद कम कीमत में इलाज की सहूलियत मिल चुकी है.
यह अस्पताल एचएमपी फाउंडेशन की ओर से अहमद पटेल के पैतृक गांव पीरामन में चलाया जाता है. फैसल को करीब से जानने वालों का मानना है कि जमीनी स्तर पर किया गया उनका काम ही उन्हें 2019 में भरुच लोकसभा सीट का दावेदार बनाता है.
[न्यूज़ 18 इंडिया से साभार]
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