गुजरात में चुनाव से चंद दिनों पहले ओपीनियन पोल्स में जिस तरह रुझानों में बदलाव दिखाई दे रहा है उससे पता चल रहा है कि शुरुआत में आसान दिखाई दे रही चुनावी जंग अब कांटे की टक्कर में तब्दील हो चुकी है. कांग्रेस को बढ़त मिलती दिख रही है और बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंकने में लगी हुई है. कांग्रेस अपनी बढ़त से खुद भी हैरत में है.
हालांकि, जानकार और चुनावी पंडित शायद बीजेपी के कैंपेन में चल रहे एक छोटी सी लाइन पर गौर करना भूल गए हैं. अलाउद्दीन खिलजी, हाफिज सईद, शाहजहां और औरंगजेब के शोरगुल में यह लाइन अक्सर दब जाती है. बल्कि असलियत यह है कि इन सब में 21वीं सदी के गुजरात के वास्तविक मुद्दे कहीं पीछे छूट गए हैं. यह नई लाइन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में है और यह 17 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान के प्रदर्शन से उनकी तुलना करती है.
सीएम और पीएम के बीच करना है चुनाव
गुजरातियों को एक मुख्यमंत्री के तौर पर खड़ी की गई ब्रैंड इक्विटी के आधार पर नई दिल्ली में सत्ता की सबसे ऊंची गद्दी पर पहुंचे मोदी और पिछले तीन साल से देश का शासन चला रहे मोदी के बीच चुनने की आजादी ऑफर की जा रही है.
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पहले रूप में मोदी गुजरात का एक व्यापक लोकप्रिय चेहरा हैं, इस मामले में वह एक मिथक जैसे हैं. दूसरे में एक मिलीजुली राय पैदा होती है, जिसमें लोगों की परेशानियां भी हैं, एक ऐसा मोदी ब्रैंड जो कि एक बेहतर भविष्य का वादा करता है. और इसका समर्थन करने वालों का भी एक वर्ग है.
आप इनमें से चाहे जिसे भी चुनें, बीजेपी को ही फायदा होगा. नजदीकी से देखें तो आपको पता चलेगा कि कई स्तरों पर प्रधानमंत्री 2017 बनाम मुख्यमंत्री 2012 का पक्ष रखा जा रहा है. ऐसा दिखता है कि प्रधानमंत्री ही बीजेपी का राज्य में एकमात्र चेहरा हैं और पार्टी को भरोसा है कि वह चुनाव जीत जाएगी.
सूरत के टेक्सटाइल मार्केट में 47 साल के संजय जगनानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को लेकर शिकायतें करते हैं. जगनानी मूलरूप से राजस्थान से हैं. वह हालांकि राहुल गांधी के इसे गब्बर सिंह टैक्स बताने से सहमत नहीं हैं. जगनानी कहते हैं, ‘यह एक चुटीला जुमला हो सकता है, लेकिन राहुल सत्ता में नहीं आएंगे, वह जीएसटी को किस तरह से बदलेंगे?’ जगनानी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली में कांग्रेस के 16 साल के शासन के दौरान जीएसटी लटका रहा.उन्होंने कहा, ‘यह कांग्रेस की वजह से लटका रहा, अब मोदी ने हिम्मत दिखाई है.’
'गुजरात को मोदी का विकल्प नहीं चाहिए'
सूरत का टेक्सटाइल मार्केट जीएसटी के विरोध में करीब 20 दिन बंद रहा. जगनानी ने पूछा कि क्या जीएसटी इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा देने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा, ‘हर महीने तीन रिटर्न फाइल करवाने के जरिए वे क्या साबित करना चाहते हैं?’ लेकिन उन्होंने तुरंत कहा कि प्रधानमंत्री की निष्ठा पर कोई सवाल नहीं उठा सकता. उन्होंने कहा, ‘मोदी 50 साल से राजनीति में हैं. उनके पास अनुभव और ज्ञान है. वह एक अच्छे नेता हैं और एक प्रभावी मुख्यमंत्री रहे हैं. केवल इस वजह से कि हम एक मुद्दा उठा रहे हैं, यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि हम उनके खिलाफ हैं.’
मोदी ने 27 नवंबर को चुनावी कैंपेन की शुरुआत कच्छ से की. वहां उन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर अपने रिकॉर्ड की बात की और बताया कि किस तरह से उन्होंने कच्छ की तकदीर बदली और इसे एक टूरिस्ट ठिकाने के तौर पर स्थापित किया. उन्होंने अतीत की बात करते हुए कहा कि किस तरह से पहले सरकारी अफसर पानी की दिक्कतों के चलते कच्छ में आने से कतराते थे. उन्होंने कहा था, ‘कांग्रेस ने नर्मदा का पानी कच्छ नहीं आने दिया. सोचिए अगर नर्मदा का पानी कच्छ में 30 साल पहले आ गया होता? इससे कितना बड़ा अंतर पैदा हुआ होता.’ मोदी के आक्रामक प्रचार करने से बीजेपी को भरोसा है कि चुनावी नतीजे उनके पक्ष में जाएंगे. गुजरात बीजेपी के एक नेता ने कहा, ‘मोदी से बेहतर गुजरात के जिलों और 182 विधानसभा सीटों को कोई नहीं जानता.’
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2007 में सूरत में डॉक्टर पूजा सिंह ने अपने पति के साथ मिलकर निमाया विमिन्स सेंटर फॉर हेल्थ की नींव रखी. गुजरे 10 साल में इस फर्टिलिटी क्लीनिक ने 7,000 सुरक्षित डिलीवरी कराई हैं. उनके पति डॉ. प्रभाकर सिंह 1994 के प्लेग की भयावह यादों के बारे में बताते हैं. उन्होंने कहा, ‘सूरत बुरी हालत में था. तीन दशकों से यहां रह रहे मेरे दोस्त बताते हैं कि किस तरह से गुजरे 20 सालों में चीजें बदली हैं. आज सूरत भारत के सबसे सुंदर शहरों में एक है. हमें भरोसा है कि प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी चीजों में बदलाव कर सकते हैं. गुजरात को ऐसा करने में 20 साल लगे.’
अमेरिकी राजनीति में ऐसे कई वाकये हैं जिनमें गवर्नर बाद में राष्ट्रपति बन गए. जॉर्जिया के गवर्नर रहने के ठीक बाद जिमी कार्टर अमेरिकी राष्ट्रपति बने. इसी तरह से बिल क्लिंटन अराकांसास के चार बार गवर्नर रहने के बाद राष्ट्रपति चुनाव जीते. भारत में एच डी देवगौड़ा ऐसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री थे जो कि प्रधानमंत्री बने. लेकिन, मोदी ने 2014 के चुनाव में अपने गवर्नेंस मॉडल का देश में प्रचार किया. 2017 में एक ओर मोदी 2022 के सपने को बेच रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वह गुजराती अस्मिता के बारे में भी लोगों को सचेत कर रहे हैं और इतिहास को एक हथियार की तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं.
बड़ौदा लोकसभा सीट पर मोदी 2014 में रिकॉर्ड मार्जिन से जीते, हालांकि, बाद में उन्होंने यह सीट छोड़ दी और वाराणसी से सांसद बने रहने को चुना. बड़ौदा की नाजनी कांचावाला ने कहा शुरुआत में वह इस बात से नाखुश थीं कि मोदी ने गुजरात की बजाय उत्तर प्रदेश का चुनाव किया, लेकिन बाद में उन्हें महसूस हुआ कि इसके पीछे एक बड़ी अच्छी वजह थी.
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बड़ौदा की प्रतिष्ठित एमएस यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट फायोना दियास ने कहा, ‘हमने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखा है. हमने उनका काम देखा है. हमें उनका विकल्प तलाशने की कोई जरूरत नहीं है.’ राजनीति विज्ञान की एक स्टूडेंट अभिव्यक्ति हार्दिक पटेल को एक ऐसे नए चेहरे के तौर पर देखती हैं जो कि बीजेपी के बर्चस्व को तोड़ना चाहते हैं. पटेल की रैलियों में भारी भीड़ उमड़ रही है, इससे बीजेपी में पाटीदार वोटों को लेकर चिंता पैदा हो रही है.
रविवार को 24 साल के हार्दिक पटेल ने सूरत में करीब 50,000 लोगों की भीड़ को संबोधित किया. उन्होंने लोगों से बीजेपी को सबक सिखाने के लिए कहा. इसके पहले उन्होंने कई रोड शो ऐसी विधानसभाओं में किए जहां पाटीदारों की बड़ी आबादी है. मोदी को दिल्ली गए साढ़े तीन साल हो गए हैं, लेकिन गुजरात को अभी तक कोई नया नेता नहीं मिला है. ज्यादातर गुजरातियों के लिए मोदी नेता का पर्याय हैं.
लेकिन दूसरे पहलूओं को भी देखा जाना चाहिए
इस घटनाक्रम को समझाते हुए राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी कहती हैं, ‘जमीन पर बीजेपी को लेकर नाखुशी है, लेकिन लोग नरेंद्र मोदी से नाराज नहीं हैं. कांग्रेस के पास इस नाखुशी को वोटों में तब्दील करने के लिए सांगठनिक ताकत नहीं है. उनके पास चेहरा नहीं है. यहां तक कि लोग बदलाव चाहें तो भी उनके सामने मोदी के कद का नेता चुनने की दिक्कतें हैं.’ और मोदी अमित शाह के बिना अधूरे हैं. अमित शाह प्रधानमंत्री की लोकप्रियता को वोटों में बदलना जानते हैं. शाह ने ब्रांड मोदी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है और उनका मोदी के साथ एक विशिष्ट रिश्ता है. वह पिछले तीन महीनों से गुजरात में कैंपेन कर रहे हैं. वह यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि एंटी-इनकंबेंसी का असर पार्टी की चुनावी जीत पर न पड़े.
लेकिन मोदी पर इस तरह की निर्भरता पूरी तरह से उनके उत्तराधिकारी की स्वायत्तता को नकारती है. इसी वजह से राजकोट के किसान राजेश पटेल कांग्रेस में विकल्प को देखते हैं. पटेल ने कहा, ‘बीजेपी ने केशूभाई पटेल की जगह मोदी को मुख्यमंत्री बनाया. मोदी के बाद पार्टी ने आनंदीबेन पटेल को हटाया और विजय रूपाणी को सीएम बना दिया. बीजेपी को पटेलों की चिंता नहीं है.’ सौराष्ट्र की राजधानी राजकोट हिंदुत्व की राजनीति का एक मजबूत गढ़ रही है. 2002 में नरेंद्र मोदी ने अपना पहला चुनाव राजकोट पश्चिम से ही लड़ा था.
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मोदी की बायोग्राफी लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं, ‘मोदी का जादू अब खत्म हो रहा है और उन्हें इसे फिर से गढ़ने की जरूरत है.’ उन्होंने कहा कि पहली बार मोदी पर सवाल उठाए जा रहे हैं. मुखोपाध्याय कहते हैं, ‘गुजरात 2017 की लड़ाई 2012 या 2014 के मुकाबले कहीं ज्यादा कड़ी है.’ राजनीति को वक्त के लेंस से देखा चाहिए. मोदी गुजरात को अपने मुख्यमंत्री के दौर की याद दिलाते हैं. साथ ही वह बतौर प्रधानमंत्री जीएसटी और नोटबंदी के कड़े फैसलों के फायदों का भी जिक्र करते हैं. जब हम वर्तमान के लेंस से अतीत को देखते हैं तो कई बार नतीजे काफी चौंकाने वाले होते हैं.
(मारिया शकील सीएनएन न्यूज18 की पॉलिटिकल एडिटर हैं)
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