बीजेपी जीत कर भी हार गई और कांग्रेस हार कर भी जीत गई. गुजरात के नतीजों के बाद एक नई बहस छिड़ गई है. नैतिक रूप से कौन जीता. वैसे तो लोकतंत्र में नैतिक जीत-हार जैसी कोई चीज नहीं होती पर फिर भी सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया के बड़े पत्रकारों तक, सब इस नई पहेली को सुलझाने में लगे हैं. इससे इतर एक बात बिलकुल साफ होती जा रही है कि 2019 का चुनाव मोदी बनाम राहुल ही होगा.
कांग्रेस की हार में जीत खोजने वाले प्रकांड पंडितों का मानना है कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने बीजेपी को बस हरा ही दिया था. वो तो नाश हो मणिशंकर अय्यर का, जिनकी लंबी और काली जुबान ऐसी फिसली कि कांग्रेस के सिर का ताज फिसल गया. कांग्रेस के गम में शामिल फारूक अब्दुल्ला ने भी यही बात कही. उधर कपिल सिब्बल को भी ना जाने क्या सूझी कि राम मंदिर मामले में कांग्रेस का नाम लिए बगैर सारा मलबा कांग्रेस के सिर थोप दिया. घर के भेदियों ने ही कांग्रेस को हरवा दिया नही तो बीजेपी में कहां दम था.
मोदी फैक्टर से मिली बीजेपी जीत
पर इनको कौन समझाए कि कांग्रेस की जीत तो दीवार पर लिखी दिखाई दे रही थी. कोई एक भी वजह नहीं थी जिससे बीजेपी सत्ता में दोबारा वापसी कर पाती. कार्यकर्ता हार के डर में चुनाव लड़ रहा था. बीजेपी नेताओं की आंखों में हार पढ़ी जा सकती थी. हर जगह पासा उलटा पड़ता दिखाई दे रहा था.
दूसरी तरफ कांग्रेस को युवाओं का भरपूर सर्मथन था, हार्दिक के साथ पटेलों की बड़ी भीड़ को कांग्रेस ने अपनी छतरी के नीचे समेट लिया था. जिग्नेश, अल्पेश जैसा नया नेतृत्व भी कांग्रेस के साथ था. सारे जातिगत समीकरण कांग्रेस के पक्ष में थे. और जैसा देश में हर जगह होता है गुजरात में भी मुसलमान बीजेपी को हर कीमत पर हराना चाहता था. और सबसे ऊपर थी एंटी इंकम्बेंसी, 22 साल के राज से छुटकारा पाने की चाह.
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बीजेपी के पास कहने या गिनाने को कुछ भी नया नहीं था. दीवार फिल्म के शशि कपूर की तरह बीजेपी आखिरी तक एक ही राग अलापती रही ‘मेरे पास मोदी है’. और मोदी फैक्टर ने बीजेपी को जीत दिला यह साबित भी कर दिया. मोदी के सामने कुछ नहीं चल पाया. कांग्रेस के सब अरमान धरे रह गए. और बीजेपी ने एक बार फिर परचम फहरा दिया. कांग्रेस को बुद्धिजीवियों की तरह हार कर भी जीत की खुशी मनाने की बजाए अपनी रणनीति पर दोबारा गौर करना चाहिए कि क्यों वो जीती हुई बाजी भी हार क्यों गए.
मोदी बनाम राहुल में जीतेंगे मोदी ही
अब बात 2019 के लोकसभा चुनावों की. इसमें कोई शक नहीं कि गुजरात चुनावों के बाद राहुल का कद बड़ा है. कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव भी राहुल को वो राजनीतिक ऊंचाई नही दिला सका था जो राहुल को गुजरात चुनावों की वजह से हासिल हुई. राहुल गांधी को विपक्ष का सर्वमान्य नेता बनने में अब कोई अड़चन नहीं. और यही दूर की कौड़ी है. कांग्रेस से इतर विपक्ष कभी नहीं चाहेगा कि 2019 का चुनाव मोदी बनाम राहुल बने. वजह भी साफ है जब गुजरात चुनावों में मोदी फैक्टर चल गया तो देश में सर्वोच्च पद के लिए जब मोदी खुद दावेदार होंगे तो विपक्ष की नैया पार लगना मुश्किल है.
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कांग्रेसी भी इसे खूब समझते हैं कि हालिया परिस्थितियों में, मोदी बनाम राहुल चुनावों में हार राहुल की ही होगी. और अगर सचमुच 2019 में बीजेपी के सामने मजबूत चुनौती पेश करनी है तो चुनावों को मोदी बनाम राहुल से अलग मुद्दा आधारित बनाना होगा. उसे देश के चुनावों से इतर राज्य स्तर पर लड़ना होगा. हर राज्य के लिए अलग रणनीति, मुद्दे और नेता होंगे. राहुल के अलावा भी कई अन्य राज्य स्तरीय नेताओं को सामने लाना होगा. और यही असली कठिनाई है.
दूसरी और अगर 2024 पर फोकस कर कांग्रेस 2019 चुनावों को मोदी बनाम राहुल बनने देती है, जैसा कि बीजेपी भी चाहती है तो विपक्ष में टूट का खतरा और बढ़ जाएगा. ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस गांधी परिवार से अलग कुछ सोच नहीं पाती. इसलिए इस बात कि संभावना ज्यादा है कि वह 2019 चुनावों को मोदी बनाम राहुल बनने दे या फिर स्वंय ही बना दे क्योंकि 2019 में अगर हार भी गए तो भी राहुल प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग तो जरूर बन जाएं.
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