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गुजरात चुनाव 2017: इस बार विकास के नाम पर बरगला नहीं पाएगी बीजेपी

क्षेत्रीयता और ध्रुवीकरण की राजनीति और मोदी के विराट व्यक्तित्व के होते हुए भी यह चुनाव बीजेपी के लिए जीतना अब तक का सबसे मुश्किल काम लग रहा है

Updated On: Dec 14, 2017 04:38 PM IST

Milind Deora Milind Deora

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गुजरात चुनाव 2017: इस बार विकास के नाम पर बरगला नहीं पाएगी बीजेपी

इस वक्त सबकी नजरें मौजूदा गुजरात चुनावों पर हैं और इस दौरान चल रहा घटनाक्रम सख्त निगरानी में है. बीजेपी गुजरे दो दशक से ज्यादा वक्त से गुजरात की सत्ता पर काबिज है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पार्टी की अभी भी राज्य में मजबूत उपस्थिति है. इस बात को लेकर काफी कयास लगाए जा रहे हैं और विश्लेषण हो रहे हैं कि क्यों बीजेपी अब तक सत्ता पर टिके रहने में कामयाब रही. इनमें गुजरात अस्मिता से लेकर गुजरात मॉडल और ध्रुवीकरण की राजनीति जैसी तमाम वजहें गिनाई जा रही हैं.

क्षेत्रीय राजनीति और ध्रुवीकरण के बावजूद बीजेपी परेशानी में

हालांकि, इस बात के ठोस साक्ष्य हैं कि नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपने शासनकाल में गुजरात को नई दिल्ली के खिलाफ खड़ा किया. यह बहुत कुछ एमएनएस के महाराष्ट्र में किए गए कामों जैसा है. एक राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद मोदी के नेतृत्व के तहत बीजेपी ने एक क्षेत्रीय इकाई की तरह काम किया.

इस चुनाव को लेकर खास बात यह है कि गुजरे एक दशक में पहली बार कांग्रेस की बजाय बीजेपी सत्ता में है. इसके बावजूद और क्षेत्रीयता और ध्रुवीकरण की राजनीति और मोदी के विराट व्यक्तित्व के होते हुए भी यह चुनाव बीजेपी के लिए जीतना अब तक का सबसे मुश्किल काम लग रहा है.

2014 के आम चुनावों में वह गुजरात मॉडल ही था जिसे बीजेपी ने देश की 1.3 अरब आबादी को बेचने में सफलता हासिल की. इसमें सहमति पत्रों (एमओयू) में आया जबरदस्त उछाल भी शामिल है जिसके चलते इनवेस्टमेंट्स और इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा मिल सका. इसके अलावा उद्योगों के हितों को पूरा करने वाले कई अन्य कदम भी उठाए गए जिन्हें देश के अन्य भागों में भी लागू किया जा सकता था ताकि गुजरात की तर्ज पर विकास के कामों को देश के दूसरे हिस्सों में भी चलाया जा सके.

Narendra Modi

गुजरात मॉडल भी नहीं है साथ

हालांकि, मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को देखते हुए गुजरात मॉडल पहली बार राष्ट्रीय निगरानी और बहस का विषय बना. इसकी नाकामियां साफ दिखाई दे रही थीं. कई सामाजिक और प्रमुख आर्थिक संकेतकों से पता चलता था कि गुजरात केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु समेत कई राज्यों से पीछे बना हुआ था.

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लेकिन, गुजरात मॉडल की नाकामी का सबसे मजबूत उदाहरण पाटीदार आंदोलन था. इससे जुड़े विवादों ने हार्दिक पटेल को मौजूदा चुनावों में एक प्रमुख शख्सियत बनाकर उभारा है. पाटीदार आंदोलन ने कई सामाजिक और आर्थिक सूचकांकों पर बीजेपी की नाकामी की कलई खोल दी. इससे राज्य में एक गंभीर सामाजिक तनाव भी पैदा हुआ. इस पूरे आंदोलन की अगुवाई 24 साल के युवा हार्दिक पटेल के हाथ थी.

जीएसटी आग में घी जैसी

इस पूरे माहौल में आग में घी डालने का काम नोटबंदी के बुरे असर ने किया. इससे बेरोजगारों, छोटे और मंझोले कारोबारों, किसानों और व्यापारियों पर तगड़ी चोट पहुंची. देश के आर्थिक केंद्र के तौर पर नोटबंदी की सबसे बड़ी चोट गुजरात पर पड़ी. बात यहीं नहीं रुकती. सरकार ने हड़बड़ी में जीएसटी को भी लागू कर दिया. इससे पूरे देश में बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार के इस कदम का भी सबसे बुरा असर गुजरात के कारोबारियों पर पड़ा.

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सूरत में मौजूद कई डायमंड और ज्वैलरी कारोबारों के प्रमोटर मुंबई में रहते हैं. ऐसे में मेरा गुजराती आंत्रप्रेन्योर्स के साथ रेगुलर तौर पर मिलना-जुलना होता है. सरकार के फैसले का आर्थिक दुष्परिणाम इन पर भारी पड़ा है. ऐसा मुश्किल वक्त इनमें से कइयों ने पहले कभी नहीं देखा था.

People from India's Patidar community attend a public meeting with Hardik Patel, leader of the Patidar community, after his return from Rajasthan’s Udaipur, in Himmatnagar

हार्दिक पटेल पर भी गलत रुख

अच्छी खबर यह है कि ये सभी चुनावी मुद्दे थे और चुनाव इन्ही मसलों के इर्दगिर्द लड़ा गया. मोदी ने तो यहां तक कहा कि अगर जीएसटी को लागू किया गया तो इसके लिए बीजेपी जितनी ही कांग्रेस भी जिम्मेदार है. हालांकि, जैसे ही बीजेपी को लगा कि विकास का मुद्दा ज्यादा टिक नहीं पा रहा है, पार्टी ने हार्दिक पटेल की कथित सेक्स सीडी जैसी चीजों पर बवाल मचाना शुरू कर दिया.

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जब इससे भी उतनी प्रतिक्रिया नहीं मिली जितनी पार्टी को उम्मीद थी तो पार्टी ने अपना धर्म का ट्रंप कार्ड खेला. प्रेस में अपने कुछ मित्रों से मिलकर डिबेट को विकास से हटा दिया गया और पूरा फोकस धर्म के इर्दगिर्द केंद्रित हो गया. बीजेपी को दिख रहा था कि वह मुश्किल में है.

14 दिसंबर को मैं ठोस तौर पर यकीन कर रहा हूं कि गुजरात वक्त के एक अहम मुकाम पर खड़ा है और जहां ये जनता को दोबारा मूर्ख नहीं बना पाएंगे.

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