गुजरात चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से पहले चर्चा इसी बात की हो रही है कि पटेल फैक्टर का आखिर कितना असर होगा. क्या पटेलों की नाराजगी से बीजेपी को नुकसान होगा या फिर पटेलों की नाराजगी से बीजेपी को उलटा फायदा ही होगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि पटेल-पटेल की रट से बाकी जातियों के बीच गोलबंदी देखने को मिलेगी.
राजकोट में लिंबडा चौक के पास काडिया समाज के निमिष भाई काडिया और राकेश भाई काडिया तो यही मानते हैं. राजगीर का काम करने वाले ओबीसी समुदाय के निमिष भाई का कहना है ‘पटेल-पटेल की जितनी बात हो रही है उतनी नहीं है. असर है लेकिन, हमलोग तो पहले से ही बीजेपी को वोट करते आए हैं. कोई खास अंतर नहीं देखने को मिलेगा.’ राकेश काडिया का कहना है ‘कुछ भी हो जाए भाजप की ही सरकार बनेगी.’
सौराष्ट्र इलाके में पहले चरण में बीजेपी को पटेलों के गढ़ में इस बार कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है. राजकोट और आस-पास के इलाकों में पटेल समुदाय का खासा प्रभाव है. पूरे गुजरात में 15 फीसदी वोट वाला पटेल समुदाय सौराष्ट्र में कई सीटों पर अपने दम पर चुनाव का रूख मोड़ सकता है.
लेकिन, चुनाव से पहले उनके बीच वोट बंटने की संभावना जताई जा रही है. अबतक जो समाज पूरी तरह से बीजेपी के साथ खडा रहता था उसमें दरार दिख रही है. खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में इसका असर ज्यादा दिख रहा है.
लेकिन, बीजेपी के रणनीतिकार बाकी जगहों से पटेलों की नाराजगी की भरपाई करने की बात कर रहे हैं. बीजेपी को उम्मीद है कि ओबीसी समुदाय की बाकी जातियों की गोलबंदी से उनकी चुनावी नैया इस बार भी पार लग जाएगी.
बाकी जातियों का गणित
गुजरात में लगभग 51 फीसदी ओबीसी का वोटिंग प्रतिशत है. पिछड़ी जातियों के अलावा कई अति पिछड़ी जातियों को लेकर पिछड़ी जातियों की कुल संख्या 146 हो जाती है. गुजरात की 182 सीटों में से 110 सीटों पर ओबीसी का प्रभाव रहा है. इसके अलावा तकरीबन हर विधानसभा क्षेत्र में ओबीसी जातियों का प्रभाव रहा है.
बीजेपी की तरफ से इस बार कोशिश इन पिछडी और अति पिछडी जातियों के वोट बैंक में सेंधमारी की रही है. हालाकि नरेंन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते भी बीजेपी की तरफ से लगातार कोशिश होती रही है. खुद पिछडी जाति से आने वाले मोदी के प्रभाव के चलते बीजेपी के साथ काफी तादाद में पिछड़ी जाति के लोग जुडे भी हैं.
उत्तर गुजरात के पालनपुर के रहने वाले आलोक प्रजापति अहमदाबाद में सीईपीटी यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढाई करते हैं. प्रजापति ओबीसी समुदाय के भीतर चलने वाले उस हलचल को बताते हुए कहते हैं ‘मोदी ओबीसी हैं और उन्होंने ओबीसी के लिए बहुत कुछ किया है. इसमें कोई संदेह नहीं है, हम उन्हीं को वोट करेंगे.’
पटेलों के गढ़ में घिर रही बीजेपी को ओबीसी समुदाय से इस बार मदद मिलनी तय है. सौराष्ट्र से लेकर उत्तर गुजरात के अलग-अलग क्षेत्रों का दौरा करने के बाद ऐसा लग रहा है कि ओबीसी आईकॉन के तौर पर उभरे अल्पेश ठाकुर का असर ओबीसी समुदाय के भीतर नहीं हो पा रहा है. ओबीसी समुदाय के एकलौते नायक के तौर पर अपने-आप को स्थापित करने की कोशिश में लगे अल्पेश फिलहाल अपने ही चुनाव में उलझ कर रह गए हैं.
राज्य में ओबीसी समुदाय में कोली, ठाकुर, कडिया, चरवाहा, नाई समेत कई पिछडी जातियां पहले से ही बीजेपी के साथ भी रही हैं. लेकिन, अब पटेलों की नाराजगी से हो सकता है कि बीजेपी के पक्ष में इनकी गोलबंदी हो जाए, जिसका सीधा असर बीजेपी को होगा.
इसके अलावा बीजेपी दलित और आदिवासी इलाकों में भी इस बार अपनी सीट बढाने की कोशिश में है. चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर से गुजराती अस्मिता और गुजराती गौरव से अपने-आप को जोड कर गुजराती जनता का सही हमदर्द बताने की कोशिश की है. इस साल बनासकांठा में आई बाढ़ की तबाही के वक्त बीजेपी सरकार की तरफ से किए गए कामों की बात को लेकर मोदी कांग्रेस के विधायक के गायब होने पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
अभी हाल ही में आए तूफान के वक्त भी मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से तूफान के वक्त लोगों की मदद की भी जो अपील की उस अपील को लेकर भी मोदी लोगों को अपने-आप से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. पोरबंदर के रहने वाले राजीव भाई गोदानिया का कहना है कि ‘जब प्रधानमंत्री मोदी इस तरह से अपील करते हैं तो अपनापन लगता है. लेकिन, इस तरह का अपनापन राहुल गांधी से नहीं लगता है.’
चुनाव के वक्त राम मंदिर मुद्दे का गरमाना और उस पर प्रधानमंत्री का भुनाने की कोशिश करना हो या फिर मणिशंकर अय्यर का एक और नया कारनामा. ये कुछ ऐसे भावनात्मक मुद्दे हैं जिनको लपकने का इंतजार बीजेपी काफी लंबे वक्त से कर रही थी.
देर से ही सही लेकिन, पहले चरण की वोटिंग से ऐन पहले बीजेपी एक बार फिर से कांग्रेस को अपने टर्फ पर खेलने पर मजबूर कर रही है. बीजेपी को भरोसा है गुजराती अस्मिता के नाम पर फिर गुजराती वोटर मोदी का ही साथ देंगे.
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