गुजरात में पहले राउंड के कैंपेन के आखिरी दिन तक कांग्रेस के लिए सबकुछ एकदम ठीक चल रहा था. राहुल गांधी की रैलियों में भीड़ जमा हो रही थी और वे विकास के सवालों पर तथ्यों के साथ नरेंद्र मोदी को घेर रहे थे. माना जा रहा था कि मोदी के अभेद्य किले में घुसकर राहुल उन्हें अच्छी-खासी टक्कर दे रहे हैं. लेकिन अचानक बहुत कुछ बदल गया, जब सीनियर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नीच शब्द का इस्तेमाल किया.
दबाव झेल रही बीजेपी के लिए अय्यर का ये बयान एक गिफ्ट वाउचर की तरह आया. मोदी ने तो इसे ब्लैंक चेक मान लिया और निकल पड़े भुनाने. विकास को किनारे रखकर खुद को गुजराती अस्मिता के प्रतीक के तौर पर पेश कर रहे मोदी ने बकायदा मणिशंकर अय्यर का नाम लेकर दावा किया.
वे कहते हैं 'मोदी नीच जाति में पैदा हुआ है, इसलिए नीच हैं. मेरे भाइयो ये गुजरात का अपमान है कि नहीं’ मोदी के इस दावे के उलट अगर आप अय्यर का भाषण सुनेंगे तो साफ हो जाएगा कि जाति का नाम तक नहीं लिया गया. लेकिन पुरानी कहावत है, जंग और मुहब्बत में सब जायज है.
कांग्रेस को समझते देर नहीं लगी कि अय्यर अपनी ही टीम के खिलाफ गोल कर चुके हैं. राहुल गांधी ने पहले ट्वीट करके अय्यर के बयान की आलोचना की, उनसे माफी मांगने को कहा. उसके कुछ समय बाद अय्यर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करने और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की ख़बरें भी आ गईं.
सवाल ये है कि क्या गुजरात के चुनाव नहीं होते तब भी बीजेपी अय्यर के बयान पर इसी तरह रीएक्ट करती? क्या चुनाव नहीं होते तो कांग्रेस पार्टी भाषा की मर्यादा को लेकर इतनी ही संवेदनशीलता दिखाती जितना अय्यर को सस्पेंड करने में दिखाई? इन सब पर चर्चा से पहले थोड़ी सी बात मणिशंकर अय्यर के बारे में.
कौन हैं मणिशंकर अय्यर?
भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे मणिशंकर अय्यर अस्सी के दशक में नौकरी छोड़कर राजनीति में आए थे. तत्कालिक प्रधानमंत्री राजीव गांधी के स्पीच राइटर के रूप में उनकी शोहरत थी. राजीव गांधी ने अमेरिका को धमकाते हुए एक चर्चित भाषण दिया था- `जो लोग पाकिस्तान के मां-बाप बने हुए हैं, हम उनको नानी याद दिला देंगे’. बाद में पता चला था कि वो भाषण मणिशंकर अय्यर ने लिखा था.
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केंद्रीय मंत्री रह चुके अय्यर हमेशा से बड़बोले रहे हैं. उनके बयान अक्सर विवाद पैदा करते हैं. लेकिन अय्यर की भाषा पर कांग्रेस को कभी एतराज नहीं रहा है. पिछले हफ्ते अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी की ताजपोशी की तुलना उन्होनें मुगल खानदान में सत्ता परिवर्तन से की थी, जिसे लपकते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने तंज कसा था- कांग्रेस को मुगल राज मुबारक हो. इस किरकिरी के बावजूद कांग्रेस पार्टी में से किसी ने भी अय्यर को मुंह बंद रखने की सलाह नहीं दी.
कांग्रेस के बहुत से बाकी दूसरे नेताओं ने भी समय-समय पर अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया है. दिग्विजय सिंह इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. लेकिन ऐसी भाषा का इस्तेमाल करने वाले किसी नेता का कुछ नहीं बिगड़ा.
हर किसी को याद होगा कि बतौर मुख्यमंत्री मायावती ने जब बलात्कार पीड़ित महिलाओं के लिए मुआवजे की घोषणा की थी, तब यूपी कांग्रेस की तात्कालिक अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने बहुत फूहड़ तरीके से मायावती को खुद मुआवजा लेने की सलाह दी थी.
लेकिन क्या रीता बहुगुणा पार्टी से निकाली गईं? लंबे समय तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहने के बाद उन्होने पाला बदला, अब वे बीजेपी में हैं और योगी सरकार में बकायदा मंत्री हैं.
इमेज पॉलिटिक्स में अय्यर बने बलि का बकरा
गुजरात के चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी एक अलग अवतार में नज़र आ रहे हैं. वे आत्मविश्वास से तो भरे हैं लेकिन वे लगातार संयम दिखा रहे हैं. राहुल ने प्रधानमंत्री पर हमला तो बोला है, लेकिन बहुत नपी-तुली भाषा में. उन्होनें कभी किसी पर निजी हमला नहीं किया.
एक रैली के दौरान जब बीजेपी मुर्दाबाद के नारे लगे तो राहुल ने लोगों को ये कहते हुए चुप कराया कि मुर्दाबाद कहना कांग्रेस की संस्कृति नहीं है. मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के बारे में जब उनसे पूछा गया तो राहुल ने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी दोनो भारतीय मानस का प्रतिनिधित्व करती हैं. इसलिए मैं कभी बीजेपी मुक्त भारत नहीं कह सकता, उन्हें जो कहना है, वे कहें.
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बात बहुत साफ है. राहुल गांधी एक ऐसे राजनेता की छवि गढ़ना चाहते हैं जो आक्रामक भाषा का इस्तेमाल नहीं करता, विरोधियों का सम्मान करता है, तथ्यों पर बात करता है और समावेशी राजनीति में यकीन रखता है. गुजरात कैंपेन के दौरान ये छवि सामने आती दिख भी रही थी. ऐसे में राहुल ने मणिशंकर अय्यर के बयान को अपनी इस छवि पर चोट माना.
साफ है कि अय्यर की बलि इसी छवि को बचाने के लिए चढ़ाई गई है. अय्यर को किनारे करके उन्होंने मोदी की भावुकता भरी फरियाद को बेअसर करने की कोशिश की है, जिसमें वे गुजराती वोटरो से कांग्रेस को सबक सिखाने को कह रहे हैं. राहुल को याद हो गया कि जब 2014 के चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने मोदी पर नीच राजनीति करने का इल्जाम लगाया था और मोदी ने उस बयान को जबरदस्त तरीके से भुनाया था.
क्या मोदी भाषा को लेकर संवेदनशील हैं?
ये बात बहुत साफ है कि भाषा की मर्यादा को लेकर प्रधानमंत्री मोदी भी खुद हमेशा से कटघरे में रहे हैं. वे अटल बिहारी वाजपेयी नहीं बल्कि नए दौर के ऐसे राजनेता हैं, जिन्हें जनता का नब्ज पढ़ना आता है. मोदी जानते हैं कि तालियां किस बात पर बजेंगी.
पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड से लेकर हम पांच, हमारे पच्चीस तक मोदी के दर्जनों ऐसे बयान मिल जाएंगे जिनमें शब्दों की मर्यादा की सीमा बुरी तरह टूटी है. गुजरात के इसी चुनाव में मोदी राहुल गांधी के खानदान को पानी-पीकर कोसते नजर आए हैं.
मणिशंकर अय्यर के बयान पर प्रतिक्रिया देते वक्त भी प्रधानमंत्री ने जिन शब्दों का चुनाव किया उससे बहुत साफ है कि भाषा की मर्यादा का सवाल बहुत पीछे है, चुनावी फायदा सबसे पहले है.
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मोदी ने कहा- गुजरातियों का ये अपमान कांग्रेस की `मुगल मानसिकता’ का परिचायक है. मुगलों का कांग्रेस और बीजेपी से क्या लेना-देना? मतलब मोदी अच्छी तरह जानते हैं. वे इशारो-इशारों में उन प्रतीकों को वापस लाना चाहते हैं, जिनकी मदद से 2002 में उनका राजनीतिक सितारा रातों-रात चमका था.
गुजराती अस्मिता के अलावा मोदी के भाषणों में कभी-कभी विकास का गुजरात मॉडल आ जाता है. लेकिन चुनावी मैदान में उतारे गए बीजेपी के बाकी नेताओं के भाषण पर गौर कीजिए. योगी आदित्यनाथ और अनुराग ठाकुर जैसे नेता पूरे गुजरात में घूम-घूमकर वैसी भाषा बोल रहे हैं, जिन्हें आम बोलचाल में हेट स्पीच कहा जाता है.
इटली, मुगल और जेनएयू ये कुछ खास शब्द हैं, जो गुजरात के चुनावी कैंपेन में बार-बार सुनाई दे रहे हैं. योगी आदित्यनाथ ने तो यहां तक कहा कि राहुल मंदिर में इस तरह बैठते हैं, जैसे नमाज पढ़ रहे हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को `नमूना’ बताया.
क्या प्रधानमंत्री मोदी को इन बातों से कोई फर्क पड़ा? गुजरात चुनाव के कैंपेन को छोड़ दीजिए, पिछले साढ़े तीन साल में मोदी ने कितनी बार सार्वजनिक जीवन में भाषा की मर्यादा को लेकर चिंता जताई है? मणिशंकर अय्यर पर की गई कांग्रेस की कार्रवाई दिखावटी हो सकती है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी दिखावे के लिए भी ऐसा करने को तैयार नहीं है.
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