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गुजरात चुनाव 2017: क्या सोचते हैं पाटीदार आंदोलन की आग में अपनों को खोने वाले?

चुनाव के दौरान परिवार वालों का दर्द रह-रहकर उभर जाता है. उन्हें लगता है कि उनके नाम पर भले ही सभी अपनी सियासत चमका रहे हैं. लेकिन, उनके आंसू पोंछने वाला कोई नहीं है

Updated On: Dec 08, 2017 11:25 AM IST

Amitesh Amitesh

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गुजरात चुनाव 2017: क्या सोचते हैं पाटीदार आंदोलन की आग में अपनों को खोने वाले?

अहमदाबाद के बापूनगर की मातृशक्ति सोसायटी में रहने वाली प्रभाबेन का बात करते-करते गला रूंध जाता है. 25 अगस्त 2015 को पाटीदार आंदोलन में मचे बवाल के बीच पुलिस के लाठीचार्ज में प्रभाबेन का एकलौता बेटा श्वेतांक पटेल हमेशा के लिए काल के गाल में समा गया. प्रभाबेन उस वक्त को याद कर आज भी सिहर उठती हैं. उनकी आंखों के सामने उस वक्त की वो स्याह यादें फिर से कौंध जाती हैं, जो उनकी पूरी जिंदगी के लिए दर्द का एहसास कराने के अलावा और कुछ नहीं हैं.

प्रभाबेन के सामने पीड़ा तो इस बात की भी है कि घर में उनका साथ देने वाला तो बस उनके पति नरेश पटेल हैं. लेकिन, नरेश पटेल की हालत तो ऐसी है कि उन्हें खुद ही प्रभाबेन के सहारे पर चलना पड़ रहा है. अपने बेटे को खो चुकी मां को सहारा देने के बजाए वो खुद लाचार दिख रहे हैं.

चार साल से पैरालिसिस के चलते बिस्तर पर ही पड़े नरेश भाई पटेल कुछ बोल नहीं सकते हैं लेकिन बातचीत के दौरान उनकी आंखों से निकल रहे आंसू उनके भीतर के उस दुख का एहसास करा जा रहे हैं. प्रभाबेन पटेल और नरेश पटेल की एक बेटी थी जिसकी शादी हो चुकी है. अब बेटे श्वेतांक के नहीं रहने पर दोनों का जीवन एकाकीपन में ही व्यतीत हो रहा है.

प्रभाबेन.

प्रभाबेन.

प्रभाबेन कहती हैं, ‘25 अगस्त को पेशे से कम्प्यूटर डिजाइनर हमारा बेटा श्वेतांक पटेल इस सोसायटी में ही था लेकिन पुलिस की गाड़ी सोसायटी में आने के बाद लाठीचार्ज शुरू हो गया और फिर लाठीचार्ज के दौरान बेटे श्वेतांक को गंभीर चोट लग गई. हमें उस दिन मिलने भी नहीं दिया गया. अगले दिन 26 अगस्त को हमें पहले शारदाबेन हॉस्पिटल लेकर जाया गया और फिर बेटे के नहीं रहने की सूचना दी गई.’

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प्रभाबेन का आरोप है कि बेटे की मौत ब्रेन हेमरेज से हुई. पुलिस की तरफ से की गई कारवाई और तमाम तरह की यातना ने बेटे को हमसे छीन लिया.

नेताओं को दिख रहा है बस अपना फायदा

अब चुनाव के वक्त प्रभाबेन के मन में इस इलाके के मौजूदा विधायक वल्लभ भाई काकड़िया को लेकर नाराजगी दिख रही है. उनका कहना है, ‘बीजेपी का धारासव्य बाबू भाई काकडिया आया था, मने हमारी कोई मदद करी नाथी. हमना आवक्ते हमने कांग्रेस ने वोट करीसू.’

बीजेपी के स्थानीय विधायक के प्रति प्रभाबेन की नाराजगी दिख रही है जो कह रही हैं कि हम इस बार कांग्रेस को वोट करेंगे. हालाकि प्रभाबेन को लगता है कि सब अपने फायदे के लिए ही आ रहे हैं. अब उन्हें किसी पर कोई भरोसा नहीं दिख रहा है. उन्हें लगता है कि हमें अपनी जिंदगी की लड़ाई खुद ही लड़नी होगी.

अहमदाबाद में कई दूसरे इलाकों में भी उस दिन पाटीदार आंदोलन के बाद पुलिसिया कारवाई में कुछ और लोग मारे गए थे.

घाटलोडिया इलाके में रहने वाले निमिष पटेल उस रात चार रास्ते इलाके में अपनी इलेक्ट्रोनिक्स की दुकान से वापस लौट रहे थे. लेकिन, रात 11 बजे के बाद जो हुआ वो उनके जीवन का आखिरी दिन ही साबित हुआ. निमिष पटेल के परिवार वाले हालांकि अब इस बारे में बात करने से भी परहेज कर रहे हैं. सरकार की तरफ से दिखाई गई उदासीनता को लेकर उनकी शिकायत है.

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निमिष पटेल की दो बेटियां हैं. बड़ी बेटी वैदेही सीईएमएस हास्पिटल में सीनियर एक्जक्यूटिव ऑपरेशन हैं. जबकि दूसरी बेटी अभी कॉलेज में पढ़ाई कर रही है. अपनी मां के साथ अहमदाबाद में ही रह रही वैदेही अपना दर्द नहीं भूला पा रही हैं. पिता के खोने का दर्द आज भी उनके जख्म को हरा कर देने वाला है.

बातचीत के दौरान वैदेही कहती हैं, ‘सब लोग सेल्फिश हैं, सभी अपनी-अपनी सोच रहे हैं. पहले हमें चार लाख रूपए दिए थे. लेकिन अब जबकि  चुनाव सामने आ गया तो फिर सरकार की तरफ से 20 लाख रूपए का मुआवजा दिया गया.’ वैदेही  कहती हैं कि ‘हमें किसी में अब विश्वास नहीं रहा, हम अपना काम कर रहे हैं.’ वैदेही की शिकायत है कि सरकार की तरफ से सरकारी नौकरी का वादा किया गया था, लेकिन अबतक कुछ नहीं मिला.

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अहमदाबाद के बटवा विधानसभा इलाके में कैलाशधाम सोसाइटी की घटना भी कुछ ऐसी ही थी जब आंदोलन के बाद हंगामा शुरू हुआ था. बटवा के महादेवनगर टेकरा चौराहे पर पुलिस की तरफ से गोली चलाई गई. इसमें एक परिवार के दो लोगों की मौत हो गई. बगल में ही डेयरी का व्यापार करने वाले गिरीश पटेल और उनके बेटे सिद्धार्थ पटेल दोनों उस दिन पुलिस की गोली के शिकार हो गए.

अब इस परिवार में मां और बेटी ही हैं जो एक-दूसरे का सहारा बनकर जीवन का बोझ उठा रही हैं. हालांकि, इन दोनों ने सामने आकर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया लेकिन, उस इलाके के दूसरे पटेल समाज के लोगों से मुलाकात के दौरान ऐसा लगा कि उनके भीतर इस मुद्दे को लेकर गुस्सा है.

सोशल मीडिया पर पाटीदार आंदोलन की चिंगारी

कैलाशधाम सोसायटी इलाके में मेरी मुलाकात नचिकेत मुखी पटेल से हुई. नचिकेत पटेल का कहना था इस घटना के बाद पूरे इलाके में नाराजगी है. इस बार यह नाराजगी वोट के दौरान भी देखने को मिल सकती है. नचिकेत मुखी ने उस आंदोलन के दौरान भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. पाटीदार आंदोलन संघर्ष समिति के बैनर तले चल रहे आंदोलन को मुखी जैसे युवा पटेल सोशल मीडिया के जरिए भी ताकत देने में लगे हैं.

नचिकेत मुखी पटेल.

नचिकेत मुखी पटेल.

मुखी कहते हैं कि हमने कई व्हाट्सऐप ग्रुप बना रखे हैं. इस ग्रुप के जरिए ही हम एक घंटे के भीतर अपनी बात और अपने संदेश को पूरे गुजरात में फैला देते हैं.

मुखी कहते हैं हमारे पास इस वक्त कई ऐसे ग्रुप हैं, मसलन, हार्दिक पटेल ग्रुप, एबीपीएसएस जामनगर ग्रुप (अखिल भारतीय पाटीदार संघर्ष समिति जामनगर ग्रुप), अपने क्षेत्र के लिए मुखी फॉर वटवा ग्रुप, पीवीआरएस यानी पाटीदार विद्यार्थी रक्षा समिति ग्रुप.

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इन ग्रुप के माध्यम से पूरे गुजरात में इस वक्त आंदोलन से जुड़े रहे लोगों के बीच संदेश दिया जा रहा है. उनकी तरफ से कोशिश भी यही हो रही है कि आंदोलन के दौरान मारे गए पाटीदारों के परिवार वालों की बात को भी लोगों तक पहुंचाई जाए.

आंदोलन की आग और उसके असर को जिंदा रखने के लिए पहले से ही हार्दिक पटेल अपनी हर रैली में इनके मुद्दे को उठा रहे हैं. हार्दिक की रैली से पहले इन परिवार वालों का दर्द एक डाक्युमेंटरी के माध्यम से बड़े पर्दे पर चलाया जा रहा है.

उनकी तरफ से इन लोगों के दर्द को भुनाने की कोशिश हो रही है. लेकिन, इस वक्त चुनाव के दौरान परिवार वालों का दर्द रह-रहकर उभर जाता है. उन्हें लगता है कि उनके नाम पर भले ही सभी अपनी सियासत चमका रहे हैं. लेकिन, उनके आंसू पोंछने वाला कोई नहीं है. उन्हें तो बस अपने-आप का ही सहारा बचा है.

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