दक्षिण गुजरात का इलाका पटेलों का गढ़ माना जाता है. इसका पता इस बात से भी चलता है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम स्थल पर सुरक्षा में तैनात जवान आ रही भीड़ को अपनी कड़क आवाज में फरमान सुनाता है, ‘जाओ और अपनी कमीज बदल कर आओ. तुम इसे पहन कर आगे नहीं जा सकते’.
आदेश सुनने के बाद खीझ भरे मन से मैनें पूछा, ‘ये कमीज पहन कर जाने में क्या समस्या है भई’.
मैं सूरत से 40 किलोमीटर के फासले पर बसे नवसारी इलाके में अहमदाबाद से पांच घंटे तक हलचल भरे हाईवे पर गाड़ी चला कर केवल इसलिए गया क्योंकि मैं प्रधानमंत्री को सुनने के लिए वक्त पर पहुंचना चाहता था. उस समय उनके हेलीकॉप्टर का शोर वहां भर रहा था और नवंबर की वो खूबसूरत शाम अब तेज आवाजों के गलियारों में खोने लगी थी.
उस मैदान के आखिरी छोरों पर लोगों की आमद बनी हुई थी और अचानक से वहां की फिजा का रंग तेजी से बदल गया क्योंकि तकरीबन 90 मिनट की देरी के बाद नरेंद्र मोदी अब वहां पहुंच रहे थे. स्टेज पर मौजूद केंद्रीय मंत्री माहौल बनाए रखने की हरचंद कोशिश कर रहे थे पर इसके बावजूद वहां मौजूद लोगों के सिर आसमान की तरफ घूम चुके थे. अब बस कुछ ही पलों की देर थी लेकिन मैं इसका गवाह नहीं बन सका.
मोदी की रैली में काली कमीज पहनने पर भी पाबंदी
गेट पर खड़े सुरक्षा कर्मी ने कहा, ‘कोई भी काली कमीज पहने हुए अंदर नहीं जा सकता’. उसने शांति से मुझे किनारे होने को कहा.
काली कमीज के बारे में मुझे बाद में पता चला कि ऐसा पाटीदार समुदाय के चलते ऐहितायातन उठाया गया कदम था और बीजेपी ऐसा कोई मौका देना नहीं चाहती थी कि विरोधी काले रंग को किसी भी तरह इस्तेमाल करें.
जिस वक्त मोदी का हेलीकॉप्टर नवसारी के आसमान से जमीन पर उतरने का मौका तलाश रहा था, उसी समय हार्दिक पटेल राजकोट में आयोजित एक रैली में प्रधानमंत्री और बीजेपी के मुखिया अमित शाह के खिलाफ जमीन आसमान एक किए हुए थे. उन्होंने इस रैली में कहा, ‘उनसे डरो मत, खड़े हो, मुकाबला करो, तुम उन्हें हरा सकते हो’.
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जैसे ही उसकी निडर आवाज गूंजी, ‘जय सरदार, जय पाटीदार’ के गगनभेदी नारों से माहौल भर गया. आगे की लाइन में बैठे सैकड़ों युवाओं ने अपनी मुठ्ठी हवा में तान दी और हार्दिक को लड़ाई आगे ले जाने का दम भरा. इस रैली में काली कमीज पहनने पर कोई मनाही नहीं थी.
दोनों रैलियों में कपड़ों को लेकर विरोधाभास हमें एक ही कहानी बताता है, वो ये कि बीजेपी पाटीदारों की वजह से चौकन्नी बनी हुई है, क्योंकि उनकी नाराजगी रंग में भंग डाल सकती है.
बीजेपी के ऊपर से पाटीदारों का उठ रहा है भरोसा
माना जाता है कि गुजरात के मतदाताओं में पाटीदारों की संख्या 15 फीसदी है. इन पर से बीजेपी का भरोसा उठता दिख रहा है, जिसका पता इस बात से भी चलता है कि केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला पिछले सप्ताह सूरत में आयोजित एक जनसभा को पुलिसवालों की संगीनों के साये में ही संबोधित कर सके. रूपाला बीजेपी के ऐसे पहले नेता हैं जो 2016 में सूरत के पास हुए अमित शाह के एक सम्मान कार्यक्रम में पाटीदारों द्वारा की गई तोड़फोड़ के बाद लोगों के सामने आने की हिम्मत दिखा सके हैं.
एक बाहरी आदमी के लिए, ये चुनाव कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई है. दूर से देखने पर ऐसा लगता है कि इन चुनावों में वास्तविक मुद्दे जीएसटी, नोटबंदी और अर्थव्यवस्था की हालत है. लेकिन सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के इलाकों में जाएं तो पता चलता है कि इस साल असली मोर्चाबंदी बीजेपी और पाटीदारों के बीच है.
पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, ‘भूल जाओ कि कांग्रेस चुनाव लड़ रही है. असली लड़ाई बीजेपी और पाटीदारों के बीच है. हमारे लोग माहौल बनाएंगे, हमारे लोग अपने संसाधन लगाएंगे और वोटिंग वाले दिन हमारे लोग बूथों का कामकाज देखेंगे.
48 सीटों पर है पाटीदारों का असर, बीजेपी चिंता में
चुनावी रैली में हार्दिक इसे करो या मरो की लड़ाई करार देते हैं. उन्होंने सौराष्ट्र का दिल कहे जाने वाले राजकोट में अपने रोड शो में कहा, ‘ये पाटीदारों की इज्जत का सवाल है. अगर बीजेपी जीतती है तो ये पाटीदारों के लिए मुंह की खाने वाली बात होगी. अगर ऐसा हुआ तो हमारे होने पर ही सवालिया निशान लग जाएगा’.
बीजेपी पाटीदारों को लेकर चिंतित है क्योंकि सच्चाई ये है कि वे संतुलन बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं. सौराष्ट्र में 48 निर्वाचन क्षेत्र हैं और पाटीदार का इन सीटों पर खासा असर है. 1995 के बाद हुए हरेक चुनाव में दो तिहाई पाटीदारों ने बीजेपी को वोट दिया है. 11 जिलों में फैले इस इलाके में बीजेपी की झोली में अच्छी खासी सीटें आईं.
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इस साल, इस बात के साफ संकेत मौजूद हैं कि पाटीदार बीजेपी के हाथ से फिसल रहे हैं. 26 अक्टूबर से नवंबर के बीच हुए लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षण में पाया गया कि सौराष्ट्र में कांग्रेस और बीजेपी में कांटे की टक्कर है और दोनों के पास वोट 42 फीसदी है. सर्वेक्षण ये भी बताता है कि पाटीदार बड़ी संख्या में कांग्रेस की तरफ रूख कर रहे हैं.
अपनी उपलब्धि के बजाए मोदी कांग्रेस पर साध रहे निशाना
बीजेपी के लिए, मौजूदा समीकरणों से जरा भी छिटकना उसे बराबरी की टक्कर वाली सीटों पर बड़ा चुनावी नुकसान दे सकता है. पहले चरण में 89 सीटों पर चुनाव होना है और इसमें से 10 हजार से कम वोटों से 14 सीटें हासिल की गई थीं ( उसने 5000 के कम मार्जिन पर पांच सीटें जीतीं थीं).
यही वजह है कि दक्षिण गुजरात और सौराष्ट्र में अपनी रैलियों में मोदी ने अपना अधिकांश वक्त कांग्रेस पर हमला करने पर बिताया और अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने से बचते हुए पाटीदारों को अपनी तरफ करने की कोशिश की. पाटीदारों को बेअसर बनाने का प्रयास ये भी है कि चुनावों में धर्म पर ध्यान केंद्रित हो न कि जातीय पहचान पर.
जाहिर है कि ये कोशिश लोगों को कांग्रेस की तरफ जाने से रोकने या हार्दिक की अपील से लोगों का ध्यान हटाने की है. मजेदार बात ये है कांग्रेस के साथ इस चुनावी समर में बीजेपी ने विकास के अपने तीर को तरकश में डाल कर रख छोड़ा है. वोटरों का ध्यान कांग्रेस के ‘बुरे दिन’ की ओर खींचा जा रहा है.
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