प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुजरात विधानसभा चुनाव में इंट्री की तारीख तय हो गई है. मोदी कच्छ के रण से हुंकार भरने की तैयारी में हैं. 27 नवंबर को मोदी की पहली रैली भुज में होगी, उसके बाद राजकोट जिले के जसधान और अमरेली में उनकी जनसभा होगी. उसी दिन मोदी की चौथी रैली सूरत जिले की कामरेज में भी होने वाली है.
इसके दो दिन बाद फिर 29 नवंबर को प्रधानमंत्री पाटीदारों के गढ़ मोरवी में रैली करेंगे, फिर सोमनाथ, भावनगर के पाली और दक्षिणी गुजरात के नवसारी में मोदी का चुनावी भाषण होगा.
पटेलों के गढ़ में होंगे मोदी
रैली की तारीख और जगह का चुनाव बीजेपी ने काफी सोच समझ कर किया है. पहले दो दिन मोदी सौराष्ट्र इलाके के जिन जगहों पर रैली को संबोधित करेंगे, उसे पटेलों का गढ़ कहा जाता है.
कच्छ के रण से अपनी रैली की शुरुआत करने वाले मोदी की रैली राजकोट और अमरेली के जिस इलाके में होगी वहां पटेलों और किसानों का प्रभुत्व काफी ज्यादा है. इसके बाद 29 नवंबर की रैली की भी शुरुआत राजकोट से सटे उस मोरवी जिले में होगी जो हार्दिक पटेल के आरक्षण के आंदोलन के दौरान एपिसेंटर बन गया था.
राजकोट-मोरवी के कई इलाकों का दौरा करने के बाद लगा कि पटेलों में अभी भी नाराजगी है. हालांकि वो काफी हद तक इस बार बिखरे और बंटे हुए हैं. मोरवी जिले के बीजेपी कार्यकर्ता किरीट भाई पटेल कहते हैं, ‘सब नाराजगी एक तरफ लेकिन मोदी जी की बात एक तरफ. अभी छह महीने पहले जो माहौल था वो काफी बदल गया है. पटेल इस वक्त बंटे हुए हैं. लेकिन, मोदी जी की रैली जब होगी तो सबकुछ बदल जाएगा.’
बीजेपी नेताओं को भरोसा, माहौल बदल देंगे मोदी
बीजेपी के स्थानीय नेताओं, कार्यकर्ताओं से अलग-अलग जगहों पर बात करने पर उनसे हार्दिक पटेल और उसके असर को लेकर एक ही जवाब मिलता है. हार्दिक पटेल तो अब एक्सपोज हो गए हैं. मोदी जी को मैदान में उतरने दीजिए फिर सब ठीक हो जाएगा.
राजकोट के जिला महामंत्री भानुभाई मेहता बीजेपी के काफी पुराने कार्यकर्ता रहे हैं. सुबह-सुबह जिले के पार्टी कार्यालय आकर बैठ जाते हैं. बातचीत के दौरान जब उनसे भी ‘पटेल फैक्टर’ पर चर्चा होती है तो काफी भरोसे के साथ जीत का दावा करते हैं. लेकिन, उनकी तरफ से भी यही बात कही जा रही है. ‘मोदी जी को आने दीजिए रैली के बाद सब ठीक हो जाएगा.’
बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं के भीतर मोदी के नाम पर भरोसा है. उनकी आखिरी उम्मीद मोदी पर ही जा टिकती है. हर सवाल का आखिरी जवाब भी मोदी ही हैं. 2002 से ही गुजरात में हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मोदी के समर्थन और विरोध के इर्द गिर्द ही चुनाव जा टिकता है.
बीजेपी को मोदी के नाम और चेहरे से फायदा होता रहा है. मोदी फैक्टर गुजरात में हावी रहा है. अब बीजेपी को लग रहा है 27 नवंबर से मोदी की चुनावी रैली की शुरुआत के साथ ही मोदी फैक्टर के सामने हार्दिक पटेल का फैक्टर खत्म हो जाएगा. मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को भी राज्य के मुखिया होने के बावजूद अपने से ज्यादा मोदी पर ही भरोसा है.
राजकोट के पटेल बहुल गोंडल इलाके में अक्षरधाम मंदिर में रिनोवेशन का काम करा रहे योगेश भाई पटेल ने बातचीत के दौरान कहा, ‘कुछ लोगों के हंगामें से कुछ नहीं होने वाला है. मोदी के आने के बाद सब बदल जाएगा.’ योगेश पटेल खुद मेहसाणा जिले के रहने वाले हैं लेकिन, अक्षरधाम मंदिर में काम कराने के सिलसिले में इन दिनों गोंडल में हैं.
गोंडल के अक्षरधाम मंदिर के सामने जूस की दुकान चलाने वाले मनसूखभाई पटेल ने भी कहा कि ‘मोदी को आने दो, सब ठीक हो जाएगा.’
बीजेपी की पटेलों को पटाने की कोशिश
दरअसल, पूरे गुजरात में पटेलों का प्रतिशत 14 फीसदी है. इनमें से सौराष्ट्र की 54 सीटों में अधिकांश सीटों पर पटेलों का प्रभुत्व है. इसी को ध्यान में रखकर बीजेपी ने अब तक अपने 134 उम्मीदवारों में से 34 पटेल को टिकट दिया है. पार्टी को भरोसा है कि इससे पटेलों की नाराजगी भी दूर होगी और बाकी का काम तो मोदी-मैजिक तो कर ही देगा.
बीजेपी नेताओं को मोदी पर भरोसा भी इसलिए ज्यादा है क्योंकि कुछ इसी तरह का माहौल पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त भी बना था जब पटेलों के बड़े नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने एक अलग पार्टी बनाकर मोदी को चुनौती दी थी. लेकिन, उस बार भी मोदी के करिश्मे के सामने केशुभाई की नहीं चली. यहां तक कि पटेलों ने भी बीजेपी को ही वोट किया.
लेकिन, इस बार कहानी थोड़ी अलग है. हार्दिक पटेल ने कोई पार्टी बनाने की बजाए कांग्रेस को समर्थन की अपील कर दी है. इससे नाराज पटेलों का वोट अगर कांग्रेस को सीधे ट्रांसफर हो जाता है तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकती है.
लेकिन, बीजेपी के स्थानीय नेता मान रहे हैं कि हार्दिक पटेल का असर कम हो रहा है. कांग्रेस के साथ जाने से पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के ही कई नेता उनसे नाराज हैं. ऐसे में कुछ हद तक नाराज पटेल फिर बीजेपी के ही साथ हो लेंगे.
भानुभाई मेहता का कहना है, ‘कांग्रेस के साथ केवल पेपर टाइगर हैं. उनके पास कार्यकर्ता नहीं हैं. हम उनसे संगठन में बेहतर हैं. हमने एक साल पहले से प्लानिंग की है. हमारा काम कांग्रेस से बेहतर है. फिर मोदी जी के आने के बाद हर बार की तरह इस बार भी माहौल हमारे पक्ष में आ जाएगा.’
देवभूमि द्वारका में रहने वाले हीरा भाई नकुम का जवाब तो बहुत ही रोचक था. उनका कहना था, ‘ना भाजप छे, ना कांग्रेस छे, सब कुछ मोदी के चेहरे पर निर्भर छे.' द्वारका की रहने वाली रेखा बेन कहती हैं, ‘मोदी नू भाषण सामवयड़ा पछे, मानस ना परिवर्तन आवी जाइ छे. इंदिरा गांधी नू भाषण सामयवाड़ा पछे मानस ना परिवर्तन आवी जातू.’ यानी मोदी के आने से लोगों के मन में ठीक उसी तरह से परिवर्तन हो जाएगा जैसे पहले इंदिरा गांधी के वक्त में हुआ करता था.
मोदी के नाम से घबराई कांग्रेस
लेकिन, कांग्रेस की तरफ से मोदी के दौरे से पहले ही गुजराती अस्मिता के मुद्दे को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं. कांग्रेस को भी लग रहा है कि मोदी गुजराती अस्मिता से अपने-आप को जोड़कर फिर से गुजराती मतदाताओं को अपने पाले में मोड़ने की कोशिश कर सकते हैं.
देवभूमि द्वारका के खम्भाडिया के रहने वाले कांग्रेस समर्थक देउभाई गढ़वी का कहना है, ‘अब मोदी साहब गुजराती अस्मिता की बात करेंगे. कोई इमोशनल बयान देंगे जिससे माहौल उनकी तरफ हो जाए.’
छह करोड़ गुजरातियों की बात करने वाले मोदी अब तक गुजराती अस्मिता से अपने-आप को जोड़ते रहे हैं. इस बार भी कुछ वैसा ही होगा. लेकिन, कांग्रेस के पास मोदी को मात देने के लिए कोई बड़ा नेता अभी नहीं दिख रहा है. क्योंकि कांग्रेस के पास अब तक कोई गुजरात का नेता नहीं खड़ा हो पाया जिसे गुजरात में एक बड़े चेहरे के तौर पर सामने लाया जा सके.
कांग्रेस की यही सबसे बड़ी कमजोरी है क्योंकि आने वाले दिनों में यह चुनाव मोदी बनाम राहुल की शक्ल अख्तियार कर लेगा. ऐसे में कांग्रेस की हार्दिक पटेल के जरिए मोदी की गुजराती अस्मिता की काट तैयार करने की कोशिश पर पानी फिर सकता है.
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