गुजरात-हिमाचल प्रदेश की जीत ने बीजेपी खास कर नरेंद्र मोदी के लिए 2019 की राह आसान कर दी है. उस साल लोकसभा चुनाव होना है. अब नरेंद्र मोदी सरकार निश्चिंत और निर्भीक होकर कुछ ऐसे चैंकाने वाले और बड़े निर्णय कर सकती है जिनसे एनडीए के वोट बढ़ेंगे. और एनडीए संभावित विपक्षी एकजुटता का भी सामना कर पाएगा. वे दूरगामी परिणाम वाले निर्णय हो सकते हैं.
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विधायिकाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण एनडीए सरकार के एजेंडे में है. दूसरा प्रमुख संभावित निर्णय ओबीसी के मौजूदा आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने से जुड़ा है. ये दोनों फैसले एनडीए के लिए वोट बढ़ाने वाले साबित हो सकते हैं.
सरकारी और गैर सरकारी भ्रष्टाचार के मोर्चे पर मोदी सरकार पहले से ही ‘युद्धरत’ है. यह ‘युद्ध’ मनमोहन सरकार के कथित घोटाला राज से बिलकुल अलग तस्वीर पेश करता है. इस साल के प्रारंभ में उत्तर प्रदेश के बहुसंख्यक मतदाताओं ने नोटबंदी को भ्रष्टाचार विरोधी कदम का ही हिस्सा माना था. इसीलिए नोटबंदी को आपातकाल बताने वाले नेताओं की वहां कुछ नहीं चली.
जीएसटी के विरोध से भी नहीं बनी बात
गुजरात में राहुल गांधी ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बताया. लेकिन गुजरात के शहरी क्षेत्रों में भी बीजेपी को अच्छी खासी चुनावी सफलता मिली. इस साल के नतीजों ने साबित किया है कि अधिकतर मतदाताओं को मोदी सरकार की अच्छी मंशा पर भरोसा है. इसलिए कुछ तकलीफों के बावजूद बीजेपी आमतौर पर चुनाव जीतती जा रही है.
पंजाब विधानसभा चुनाव जरूर अपवाद रहा क्योंकि वहां की बादल सरकार के कथित भीषण भ्रष्टाचार से आम लोग दुखी थे. उनके लिए अन्य बातें गौण थीं. अब तो वहां से यह भी खबर आ रही है कि पिछली बादल सरकार के करीबी लोग ही ड्रग्स के धंधे में लगे हुए थे. ड्रग्स के भारी कारोबार के कारण वहां की नई पीढ़ी बर्बाद हो रही है.
क्या होगा अगले चुनावों में?
अगले साल देश की जिन विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं, उनमें से अधिकतर राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. जब विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में बीजेपी ने गुजरात पर फतह हासिल कर ली तो वे राज्य तो आसान ही होंगे, ऐसा माना जा रहा है. हां! कर्नाटका में जरूर बीजेपी की परीक्षा होगी.
पर असली सवाल 2019 के लोकसभा चुनाव का है. उससे पहले देश के गैर एनडीए दल एकजुट होने की कोशिश करेंगे. उनमें अधिकतर दल जातीय वोट बैंक और समीकरण वाले दल हैं. वे जातीय गठजोड़ बना सकते हैं. मौजूदा स्थिति पर गौर करें तो कुछ प्रदेशों में गैर एनडीए दलों के जातीय गठजोड़ ताकतवर दिखाई पड़ेंगे. यदि इस बीच महिला आरक्षण विधेयक पास हो गया और और ओबीसी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटा जा सका तो वे संभावित जातीय गठबंधन भी असरहीन हो सकते हैं.
गुजरात में भी कांग्रेस ने अपने पक्ष में जातीय गठबंधन बनाया था, पर वह भी कांग्रेस के पक्ष में निर्णायक भूमिका नहीं निभा सका. हालांकि उसका कुछ असर जरूर हुआ. उधर कश्मीर तथा अन्य कुछ राज्यों में आतंकी गतिविधियों को लेकर बीजेपी और विरोधी दलों के बीच आरोप -प्रत्यारोप का दौर आगे भी चलते रहेंगे.
हिंदूत्व का फायदा बीजेपी को
इस मामले में अधिकतर गैर बीजेपी दलों के असंतुलित धर्म निरपेक्षता वाले रुख के कारण उसका राजनीतिक लाभ हमेशा ही बीजेपी को मिलता रहा है. इस बार भी गुजरात में ऐसा ही देखा गया. नोटबंदी की तकलीफों के बावजूद बहुसंख्य जनता बीजेपी के खिलाफ क्यों नहीं हुई?
इस सवाल के जवाब में यह कहा गया कि आमतौर पर कई लोग पड़ोस के दुःख से खुश होते हैं. यानी नोटबंदी के कारण जब अमीर लोगों के पैसे जाने लगे तो गरीब खुश हुए थे. इस चुनाव के बाद अब बेनामी संपत्ति वालों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां अपना अभियान तेज करेंगी और नए अभियान शुरू करेंगी.
अधितर लोग इससे खुश होंगे क्योंकि वे नाजायज तरीके से पैसे कमाने वालों से जलते हैं. 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और राजा-महाराजाओं के प्रिवी पर्स समाप्त किए तो गरीब लोगों ने खुश होकर 1971 के लोक सभा चुनाव में इंदिरा कांग्रेस को विजयी बना दिया था. क्योंकि पूंजीपतियों और राजाओं पर कार्रवाइयां गरीबों को अच्छी लगीं. जबकि उन फैसलों से गरीबों को तुरंत कोई डायरेक्ट लाभ नहीं मिल रहा था. लगता है कि इतिहास खुद को दोहराएगा.
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