16 दिसंबर को कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी की ताजपोशी हो रही होगी तो उनको दो दिन बाद 18 दिसंबर को आने वाले चुनाव परिणाम की चिंता सता रही होगी क्योंकि 18 को जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव का परिणाम आएगा तो उस वक्त राहुल गांधी बतौर कांग्रेस अध्यक्ष कमान संभाल चुके होंगे.
सोनिया गांधी के पद से हटने के बाद कांग्रेस में एक नए युग की शुरुआत हो रही है जब नेहरू-गांधी परिवार के वारिस राहुल गांधी के हाथों में कमान मिली है. ऐसे में इन दो राज्यों के चुनाव परिणाम को सीधे राहुल गांधी की लोकप्रियता और क्षमता से जोड़कर देखा जाएगा.
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव प्रचार के दौरान पहली बार ऐसा लगा कि राहुल गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथों में ले रखी है. लगातार पूरे गुजरात की खाक छानने वाले राहुल ने मंदिर-मंदिर जाकर सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ ली तो गुजरात के युवाओं को अपनी तरफ खींचने को लेकर राहुल ने उन्हें कई तरह के सपने भी दिखाए. बीजेपी के राज में हुए ‘भ्रष्टाचार’ के मुद्दे को उठाकर राहुल ने प्रधानमंत्री मोदी की इस मुद्दे पर चुप्पी को भी लेकर सवाल खड़ा किया.
18 दिसंबर को पता चलेगा राहुल से कितनी संतुष्ट है गुजरात की जनता
लेकिन, राहुल के सारे सवालों का जवाब 18 दिसंबर को ही पता चलेगा, जब चुनाव परिणाम आएंगे. क्या राहुल के सवालों से गुजरात की जनता संतुष्ट थी, क्या राहुल के युवाओं को लेकर किए गए वादों पर गुजरात के युवाओं को मोदी से ज्यादा राहुल पर भरोसा दिखा, क्या गुजरात के किसानों को इस बात पर यकीन हो पाया कि राहुल गांधी की पार्टी के सत्ता में आने के बाद हमारे हालात मोदी-राज से बेहतर हो पाएंगे, इन सारे सवालों का जवाब गुजरात चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चल पाएगा.
गुजरात का परिणाम यह साबित करेगा कि राहुल गांधी के सवालों को जनता ने अपने तराजू पर तौलकर और अपनी कसौटी पर कसकर इसका क्या जवाब दिया है.
अगर कांग्रेस की गुजरात में जीत होती है तो इसमें कोई शक नहीं कि राहुल गांधी एक बड़े नायक के तौर पर उभरेंगे. युवा राहुल को मोदी के गढ़ में ही पटखनी देने वाले शख्स के तौर पर प्रचार भी मिलेगा. ऐसे में गुजरात का चुनाव परिणाम बीजेपी के लिए आगे की राह मुश्किल कर देगा.
लेकिन, अगर कांग्रेस एक बार फिर से गुजरात में पटखनी खा जाती है तो इसे सीधे राहुल गांधी की रणनीति और उनकी विफलता के तौर पर ही देखा जाएगा. गुजरात से लेकर हिमाचल तक लगातार बीजेपी के खिलाफ मुहिम चलाने वाले राहुल गांधी के अध्यक्ष पद पर ताजपोशी को लेकर भी कई सवाल खड़े हुए थे.
गुजरात चुनाव के मध्य में जिस तरीके से राहुल गांधी की ताजपोशी का स्क्रिप्ट तैयार किया गया, उसे चुनाव में फायदे की रणनीति ही माना गया था. कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगा था कि राहुल गांधी के उपाध्यक्ष से अध्यक्ष पद पर प्रोमोशन से गुजरात के भीतर राहुल गांधी को लेकर एक सकारात्मक माहौल देखने को मिलेगा. इसका फायदा वोटों के लिहाज से भी होगा.
अगर एग्जिट पोल सही हुआ तो फुस्स हो जाएगा राहुल का करिश्मा
लेकिन, राहुल की ताजपोशी से पहले एग्जिट पोल के नतीजों ने कांग्रेसी खेमे में खलबली मचा दी है. कांग्रेस के रणनीतिकार परेशान हैं. उन्हें डर सताने लगा है कहीं एग्जिट पोल के नतीजे सही हो गए तो फिर इसे सीधे राहुल गांधी की विफलता के तौर पर ही बीजेपी पेश करेगी.
आने वाले दिनों में कर्नाटक का चुनाव है जहां कांग्रेस सत्ता में है. इसके बाद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी चुनाव है जहां बीजेपी की सरकार पहले से ही है. 2019 की लड़ाई से पहले इन सभी चुनावों में मिलने वाली जीत और हार का असर सीधे 2019 पर पड़ेगा. लेकिन, एग्जिट पोल के मुताबिक अगर परिणाम आते हैं और गुजरात के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस हार जाती है तो फिर नए-नवेले अध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर बनाया सारा माहौल ही फुस्स हो जाएगा.
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हालांकि कांग्रेस अभी हार मानने को तैयार नहीं दिख रही है. चुनाव परिणाम आने से पहले कांग्रेस की तरफ से वो हर संभव कोशिश की जा रही है जिससे पार्टी के भीतर अपने कैडर को उत्साहित किया जा सके. क्योंकि एग्जिट पोल ने राहुल गांधी की ताजपोशी को लेकर बने माहौल को थोड़ा ठंढा तो कर ही दिया है.
कांग्रेस की तरफ से सुप्रीम कोर्ट जाकर 25 प्रतिशत जगहों पर वीवीपैट और वोटिंग मशीन के आंकडों के मिलान की मांग करना कांग्रेस के भीतर की घबराहट को दिखा रहा है. ईवीएम को लेकर शंका पैदा करना एग्जिट पोल के बाद कांग्रेस की छटपटाहट को ही दिखाता है. लगता है कांग्रेस पहले से ही अपनी रणनीति को लेकर सजग हो गई है, जिसमें वो एग्जिट पोल के मुताबिक हार होने की सूरत में अपने अध्यक्ष राहुल गांधी को हर स्तर पर बचा सके.
लेकिन, फिलहाल कांग्रेस के रणनीतिकारों के लिए ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं लगता. क्योंकि पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर राहुल गांधी ही थे. ऐसे में राहुल गांधी के लिए अब चेहरा छुपाना संभव नहीं लग रहा.
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