21 मार्च को इसी साल योगी आदित्यनाथ संसद में वित्त विधेयक पर चर्चा के दौरान हस्तक्षेप करते हुए जब आखिरी बार बोलने के लिए उठे, तो वे पूर्वी यूपी में जापानी इन्सेफेलाइटिस के संक्रमण के बारे में बोलना नहीं भूले. उन्होंने इस विषय पर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस की ‘राजनीति’ की भी चर्चा की.
लोकसभा में पांच बार सांसद रहते हुए योगी हत्यारी इन्सेफेलाइटिस से जुड़ी चिंता को उठाते रहे. इस विषय पर जवाब देने के लिए सरकार को मनाने में भी वे सफल रहे. संसद में अपने आखिरी भाषण में (यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद दिया गया भाषण) उन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे को अनवरत उठाते रहे हैं लेकिन यह दुर्भाग्य है कि दलित और मुस्लिम समुदाय के बारे में बात करने वाले लोगों ने कभी इस बीमारी से लड़ने के लिए चिंता की जरूरत नहीं समझी. दुर्भाग्य से इस बीमारी का शिकार होने वाले ज्यादातर बच्चे दलित और अल्पसंख्यक समुदाय से हैं.
इन्सेफेलाइटिस से लड़ाई और बेहतर स्वास्थ्य योगी की राजनीति का अहम हिस्सा रहे हैं. गोरखपुर और उसके बाहर उन्होंने अलग-अलग तरीकों से प्रदर्शन किया है, बीआरडी अस्पताल का कई बार दौरा किया है और पीड़ितों के परिजनों से मुलाकात की है. गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में 100 बच्चों की मौत, जिनमें 42 की मौत पिछले दो दिनों में हुई है, ने इन्सेफेलाइटिस, उसके बचाव और उपचार को लेकर योगी आदित्यनाथ को बेचैन कर दिया है.
सरकार का 'चलता है' वाला नजरिया भयावह
अब जबकि वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उनके गृहनगर में छोटे-छोटे बच्चों की जान जा रही है. चाहे इसकी वजह डॉक्टरों की लापरवाही हो या चिकित्सा सुविधाओं का अभाव, बीमारी की गंभीरता हो या ऑक्सीजन की आपूर्ति में आई बाधा या फिर कोई और वजह, जिनमें बीते समय में आपराधिक उदासनीता शामिल हैं, योगी किसी और पर इल्जाम नहीं मढ़ सकते. उन्हें निर्दोष बच्चों की जिंदगी के नुकसान की जिम्मेदारी लेनी होगी.
राज्य, प्रशासन, अस्पताल, डॉक्टर और पारा मेडिकल से जुड़े लोगों ने जिस तरह की उदासीनता दिखाई है और ‘चलता है’ वाले नजरिए को व्यवस्था में स्वीकार कर लिया है, वह भयावह है.
योगी को संसद, गोरखपुर और उसके आसपास इस विषय पर दिए अपने पुराने भाषणों को देखना चाहिए, जिनमें उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार पर इतने संवेदनशील मुद्दे पर लापरवाही के आरोप लगाए थे. उन्हें खुद के लिए भी वही पैमाना इस्तेमाल करना चाहिए.
अगर कोई संसद में उनके भाषणों पर नजर डाले, तो यह बात साफ हो जाएगी कि योगी आदित्यनाथ ग्रामीण इलाकों में जापानी बुखार या दिमागी बुखार कहे जाने वाले इन्सेफेलाइटिस के गैर चिकित्सक विशेषज्ञ हैं. वे उपचारात्मक मानदंडों के सभी संभव बारीकियों को जानते हैं. वे राज्य में पिछले 6 महीनों से शासन कर रहे हैं.
विधानसभा में उन्हें प्रचंड बहुमत है. विधानसभा में बीजेपी विधायकों की संख्या का जिक्र करने का आशय ये है कि उन्हें राजनीतिक प्रबंधन के लिए समय या ऊर्जा खर्च करने या फिर दिमाग लगाने की आवश्यकता नहीं है. उनके पास शासन पर पूरा समय देने और उस पर बने रहने के पूरे मौके हैं.
यह सौभाग्य भी उनके साथ जुड़ा हुआ है कि केंद्र में उनकी ही पार्टी की सरकार है. योगी को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने चुना है और इस तरह उन पर पार्टी और केंद्र सरकार का पूरा विश्वास है. प्रधानमंत्री मोदी यूपी का प्रतिनिधित्व करते हैं. इन परिस्थितियों में योगी के पास कोई बहाना नहीं है.
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योगी जी ने जो कहा वह किया नहीं
गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में मौत के दुर्भाग्यपूर्ण आंकड़े इस भयावह सच की याद दिलाते हैं कि योगी ने जो कहा, वह नहीं किया. हालांकि ऑक्सीजन आपूर्ति संकट के एक दिन पहले 9 अगस्त से लेकर अब तक योगी ने इस अस्पताल का पांच बार दौरा किया है. इस घटना में कई लोगों की जान चली गई थी. योगी यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि यह बीमारी जुलाई से लेकर अक्टूबर के बीच 0 से 15 आयुवर्ग के बच्चों पर हमला बोलती है. इसके बावजूद विश्वास बढ़ाने के लिए जमीनी स्तर पर उन्होंने कोई ठोस कदम नहीं उठाया. इन मौतों के प्रति सामान्य रुख ने हर किसी की संवेदना को झकझोर दिया है.
जहां डॉक्टर न रहें और बच्चे मरने के लिए छोड़ दिए जाएं, जहां ऑक्सीजन की सप्लाई इसलिए अनियमित हो जाए कि बाबू को उनकी इच्छानुसार उनका हिस्सा नहीं मिला या फिर जहां बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण अस्पताल उस संक्रामक बीमारी से नहीं जूझ पा रहा हो, जो चालीस साल पुराना है तो ऐसी जगह पर न्यू इंडिया का निर्माण नहीं हो सकता.
सवाल उठाने और प्रशासन चलाने में फर्क है
अगर संसद में योगी आदित्यनाथ ने अलग-अलग बयानों में जो आंकड़े दिए हैं, उन्हें उद्धृत किया जाए तो 1978 में जापानी इन्सेफेलाइटिस ने पहली बार पूर्वी यूपी को बारिश के बाद मध्य जून से अक्टूबर-नवंबर के बीच अपनी चपेट में लिया था. बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पातल में मृतकों की संख्या 2005 में 937, 2006 में 431, 2007 में 516, 2008 में 410, 2009 में 784, 2010 में 514, 2011 में 618, 2014 में 661, 2015 में 521 और 2016 में 694 थी.
योगी के लिए यह वक्त है कि वह खुद को कर्मयोगी साबित करें. अब तक वे समझ गए होंगे कि आवाज उठाना और प्रशासन चलाना दोनों दो चीजें हैं. अच्छा ये होगा कि वे शासन करने और नतीजे देने पर फोकस करें.
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