कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर जाकर 'धर्म' संकट में फंस गए हैं. मंदिर के गैर हिंदू दर्शनार्थियों के रजिस्टर में राहुल के नाम के एंट्री ने खासा विवाद खड़ा दिया है. विपक्षी बीजेपी ने तो राहुल के हिंदू होने पर ही सवाल उठा दिए हैं. इस विवाद के चलते बैकफुट पर आई कांग्रेस की तरफ बचाव में कई दलीलें दी जा रही हैं. यहां तक कि खुद राहुल ने भी इस मामले में अपनी सफाई देते हुए, विवाद के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है. लेकिन फिर भी राहुल के 'धर्म' का मुद्दा शांत नहीं हो रहा है.
चुनावी माहौल में राहुल गांधी के धर्मिक विश्वास को लेकर उठे विवाद से गुजरात में कांग्रेस की रणनीति पर पानी फिरता नजर आ रहा है. ऐसे में राहुल के बचाव के लिए कांग्रेस के पास सिर्फ एक ही रास्ता बचता है. कांग्रेस को चाहिए कि वह गुजरात में राहुल गांधी के ब्राह्मण होने का पुरजोर प्रदर्शन करे. राहुल को ब्राह्मणवादी साबित करके और सॉफ्ट हिंदुत्व कैंपेन के जरिए कांग्रेस गुजरात में बीजेपी को हराने की स्थिति में पहुंच सकती है. कहते हैं कि राजनीति में सब जायज होता है, लेकिन अगर नैतिकता की बात करें तो, इस पूरे विवाद ने राहुल गांधी के पाखंड का पर्दाफाश करके रख दिया है.
विवाद क्यों शुरू हुआ?
अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि सोमनाथ मंदिर की यात्रा के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल ने गैर हिंदू दर्शनार्थियों वाले रजिस्टर पर खुद ही दस्तखत किए थे. कांग्रेस का दावा है कि राहुल ने सिर्फ 'विजिटर बुक' पर ही दस्तखत किए. ऐसे में संभव है कि यह चूक कांग्रेस के मीडिया कोऑर्डिनेटर मनोज त्यागी से हुई हो. हो सकता है कि मनोज ने मंदिर के गैर हिंदू दर्शनार्थियों वाले रजिस्टर में सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल का नाम दर्ज करते वक्त गलती से राहुल के नाम की भी एंट्री कर दी हो.
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सोमनाथ मंदिर के ट्रस्टी पी.के. लहरी ने 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' अखबार को बताया कि, 'कांग्रेस के मीडिया कोऑर्डिनेटर ने अहमद पटेल और राहुल गांधी का नाम 'गैर-हिंदू' के तौर पर दर्ज किया था. अब इस बात को हम कैसे समझा सकते हैं? यह बात तो अब कांग्रेस के नेताओं को बताना चाहिए कि उनकी तरफ से राहुल का नाम गैर हिंदू दर्शनार्थियों वाले रजिस्टर में कैसे दर्ज हुआ.'
अगर मनोज त्यागी ने जानबूझकर राहुल का नाम 'गैर-हिंदू' के तौर पर दर्ज किया है, तो सवाल उठता है कि उन्होंने ऐसा क्यों और किसके इशारे पर किया? अभी इन सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं. लेकिन एक बात और है जिसका जवाब हर कोई जानना चाहता है, वह यह है कि कांग्रेस आखिर इस पूरे विवाद को इतना पेचीदा क्यों बना रही है?
नैतिक साहस और स्पष्ट रुख हो तो अच्छा
भारतीय संविधान देश के हर नागरिक को अपने धर्म, जाति या पंथ के मुताबिक जीवन जीने का अधिकार देता है. साथ ही यह भी अधिकार देता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी धार्मिक आस्था के मुताबिक पूजाघरों (इबादतगाहों) का भी संचालन कर सकता है. हो सकता है कि राहुल हिंदू धर्म में विश्वास न करते हों और किसी दूसरे धर्म का पालन करते हों. या यह भी हो सकता है कि वह अपने परनाना जवाहरलाल नेहरू की तरह नास्तिक हों. लेकिन इससे राहुल को कोई मंदिर में जाने से नहीं रोक सकता है और न ही प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखने से रोक सकता है.
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अगर राहुल वास्तव में हिंदू धर्म के अनुयायी हैं, जैसा कि उनकी पार्टी सफाई दे रही है, तो फिर इस विवाद पर जारी बहस अब खत्म हो जाना चाहिए. लेकिन यहां सवाल धार्मिक विश्वास का नहीं बल्कि इस पूरे विवाद में राहुल के पेचीदा रुख का है. एक व्यक्ति जो प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखता है, उसमें नैतिक साहस की कमी नहीं होना चाहिए. ऐसे व्यक्ति को अपनी धार्मिक आस्था को लेकर स्पष्ट होना चाहिए.
किसी मुद्दे पर चुप्पी उस व्यक्ति की कमजोरी को प्रदर्शित करती है. ऐसा ही कुछ सोमनाथ मंदिर विवाद में हुआ. राहुल के सामने जब धर्म संकट खड़ा हुआ तो उन्होंने चुप्पी साध ली, जिसके बाद बचाव के लिए कांग्रेस को सामने आना पड़ा. कांग्रेस ने पूरे विवाद को बीजेपी की साजिश करार दिया. कांग्रेस ने नैतिकता की दुहाई देते हुए कहा कि धर्म और राजनीति को अलग रखना चाहिए.
धर्म को मानने न मानने पर नहीं, राजनीति करने पर दिक्कत
इसमें कोई दो राय नहीं है कि राहुल का धार्मिक विश्वास उनका निजी मामला है. किसी और को यह मतलब नहीं रखना चाहिए कि राहुल किस धर्म का पालन करते हैं. हालांकि राहुल खुद गुजरात के मंदिरों में हाजिरी लगाकर अपने धार्मिक विश्वास का प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन राहुल की इस कवायद में उनकी धार्मिक आस्था कम बल्कि राजनीतिक फायदे की लालसा ज्यादा नजर आती है.
कांग्रेस सोमनाथ मंदिर विवाद का ठीकरा बीजेपी के सिर पर फोड़ रही है. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी की भगवा ब्रिगेड एक मामूली बात को सनसनीखेज बताकर चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है. लेकिन सच तो यह है कि धर्म का कार्ड तो कांग्रेस ने भी इस गुजरात चुनाव में खेल रखा है. दरअसल अपने मिशन गुजरात में राहुल तीन मुद्दों पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रहे हैं: पहला, मोदी की आलोचना, दूसरा, गुजरात में जातिगत समीकरण, और तीसरा, सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रदर्शन.
सॉफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे के तहत कांग्रेस अपने अल्पसंख्यक प्रेम की छवि से छुटकारा पाने की जुगत में लगी है. ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि राहुल का धार्मिक विश्वास भले ही उनका निजी मामला हो, और किसी को उसमें दखलअंदाजी का हक न हो, लेकिन राहुल अगर धर्म के नाम पर राजनीति चमकाने की कोशिश करेंगे, तो उनके धर्म को लेकर सवाल भी उठेंगे.
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राहुल ने गुजरात में अपनी नवसर्जन यात्रा की शुरूआत सितंबर में की थी. अपनी चार चरणों की इस यात्रा में राहुल ने गुजरात के 20 से ज्यादा मंदिरों में हाजिरी लगाई है. राहुल ने सबसे पहले द्वारिका के मंदिर के दर्शन किए थे, इसके बाद वह संतरामपुर, वीर मेघमाया, बहुचराजी, खोटिदयार, बनासकांठा के अंबाजी और अक्षरधाम मंदिरों में भी पहुंचे. खास बात यह है कि राहुल ने गुजरात में जिन मंदिरों के दर्शन किए वह ज्यादातर पाटीदार बाहुल्य इलाकों में हैं.
इकोनॉमिक टाइम्स के पत्रकार अमन शर्मा का कहना है कि दिलचस्प बात यह है कि गुजरात में प्रचार के दौरान राहुल ने भले ही कई मंदिरों का दौरा किया, लेकिन वह एक बार भी किसी मस्जिद या चर्च में नहीं गए हैं. हालांकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान उन्होंने मुरादाबाद की देवबंद जामा मस्जिद, इलाहाबाद की जामा मस्जिद, लखनऊ के नदवा मदरसा, बरेली में दरगाह-ए-आला हज़रत और लखनऊ में सेंट जोसेफ कैथेड्रल का दौरा किया था.
राहुल के कथनी और करनी में अंतर
गुरुवार को गुजरात के एक और मंदिर की यात्रा के दौरान राहुल ने खुद को 'भगवान शिव का भक्त' करार दिया. राहुल ने आगे कहा कि, 'धर्म उनका निजी मामला है और वह धर्म पर राजनीति करने में विश्वास नहीं करते हैं.' लेकिन राहुल के इस बयान से विरोधाभास पैदा हो रहा है. राहुल एक तरफ तो मंदिरों में जाकर, सॉफ्ट हिंदुत्व की अपनी छवि दिखाकर सार्वजनिक तौर पर अपने धर्म का ढिंढोरा पीट रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वह यह दलील दे रहे हैं कि धर्म एक निजी मामला है. दरअसल, धार्मिक विश्वास की सार्वजनिक घोषणाओं और अपने ताजा दावे के बीच राहुल राजनीतिक सुविधा और फायदा लेने की कोशिश कर रहे हैं.
It SHOULD not matter but let’s face it for a politician it does matter. It matters a lot & especially in this surcharged hyper-religious environment. https://t.co/lP3CDdxIbJ
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) November 29, 2017
राहुल की कथनी और करनी का यह विरोधाभास उनके पाखंड को उजागर कर रहा है. ऐसा लगता है कि राहुल मंदिरों के दर्शन अपने धार्मिक विश्वास के चलते नहीं बल्कि बहुसंख्यक हिंदुओं को लुभाने की कोशिश में कर रहे हैं.
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सोमनाथ मंदिर विवाद के बाद अब इस मामले में कांग्रेस की तरफ से एक और गलती की जा रही है. कांग्रेस नेता सफाई में लगातार बेसिर-पैर के बयान दे रहे हैं. जबकि पार्टी के भावी अध्यक्ष खुद इस मामले में एक तरह से खामोशी इख्तियार करे बैठे हैं. राहुल की चुप्पी के चलते ही कांग्रेस को दो-दो प्रेस कॉन्फ्रेंस करना पड़ीं. जहां कांग्रेस की तरफ से सफाई दी गई कि, 'राहुल गांधी न केवल हिंदू हैं, बल्कि 'जनेऊ-धारी' हिंदू हैं', राहुल न केवल हिंदू हैं, बल्कि 'जनेऊ-धारी' हिंदू हैं वाले बयान में कांग्रेस की तरफ से 'न केवल' शब्द का प्रयोग बहुत जोर देकर किया गया. इसका अर्थ है कि, राहुल गांधी 'न केवल' हिंदू हैं, बल्कि वह हिंदू धर्म की सर्वोच्च जाति से संबंध रखते हैं.
Not only is Rahul Gandhi ji a Hindu, he is a 'janeu dhari' Hindu. So BJP should not bring down the political discourse to this level: RS Surjewala,Congress pic.twitter.com/YY5MKQEKt5
— ANI (@ANI) November 29, 2017
कांग्रेस नेताओं का यह बयान भी यकीनन उनकी एक बड़ी चूक साबित हो सकता है. लोग राहुल के सर्वोच्च जाति के तथाकथित दंभ को खारिज भी कर सकते हैं. दूसरी तरफ कहा जाए तो, एक जरा से विवाद ने कांग्रेस की कलई खोलकर रख दी है. दशकों तक केंद्र की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस एक मामली विवाद की सफाई में जो दलीलें दे रही है, उसने पार्टी के अंदर की सड़ांध को सबके सामने ला दिया है. खुद को हर धर्म, हर जाति और हर संप्रदाय की पार्टी बताने वाली कांग्रेस आज खुद ब्रह्मणवाद और जातिवाद के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की मंशा रखती है.
राहुल ने खुद पैदा किए हैं विरोधाभास
विडंबना यह है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले साल ही यह एलान किया था कि,' वह जाति-पात में विश्वास नहीं करते हैं.'
राहुल गांधी ने 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' की पत्रकार स्वाति माथुर से कहा था कि, 'मैं जाति में विश्वास नहीं करता, न ही किसी तरह से इसका समर्थन करता हूं. उत्तर प्रदेश को जाति-पात के दलदल से बाहर निकलने की सख्त जरूरत है. ऐसा सिर्फ वही पार्टी कर सकती है, जिसमें सभी धर्म,वर्ग और जाति के लोगों को समान प्रतिनिधित्व मिलता हो. मेरा मतलब कांग्रेस पार्टी से है, जिसके लिए देश के सभी नागरिक बराबर हैं.'
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