राजस्थान और तेलंगाना में शुक्रवार को मतदान संपन्न हो गया. राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से 199 पर वोटिंग हुई, वहीं तेलंगाना की सभी 119 सीटों पर वोट डाले गए. इन दोनों सूबों के अलावा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और मिजोरम में मतदान पहले ही संपन्न हो चुका था. अब 11 दिसंबर को पांचों राज्यों में वोटों की गिनती होगी और कई दिग्गज नेताओं की किस्मत का पिटारा खुलेगा. यानी 11 दिसंबर को पता चलेगा कि किसने ताज गंवाया और कौन अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रहा.
लेकिन शुक्रवार को जैसे ही राजस्थान और तेलंगाना में मतदान खत्म हुआ, वैसे ही ओपिनियन पोल्स की बाढ़ आ गई. कई न्यूज चैनल्स, अखबार और पत्रिकाएं अपने-अपने ओपिनियन पोल्स/ एग्जिट पोल्स लेकर हाजिर हो गए. किस राज्य में कौन सी पार्टी जीत रही है, कौन पिछड़ रहा है, किसकी सरकार बन रही है, इस बाबत सबकी अलग-अलग दलीलें और दावे हैं.
बीजेपी को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता से बेदखल होना पड़ेगा!
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव कौन जीत रहा है, इस बारे में सभी ओपिनियन पोल्स की राय अनिश्चित है. शुक्रवार को सामने आए 9 ओपिनियन पोल्स में से 8 ने कहा कि, राजस्थान में कांग्रेस जीतेगी और इसी तरह तेलंगाना में टीआरएस के जीतने की उम्मीद है. लेकिन मैं यह देखकर हैरत में पड़ गया कि, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर सभी ओपिनियन पोल्स में अनिश्चितता है. वैसे अगर सभी ओपिनियन पोल्स का औसत निकाला जाए, तो पता चलता है कि, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में अपना बहुमत गंवा सकती है. इन दोनों ही राज्यों का मॉडल काफी कुछ गुजरात जैसा है. दोनों ही राज्यों में दो ही प्रमुख दल हैं.
दोनों सूबों में अरसे से स्थायी तौर पर कांग्रेस विपक्ष में है और बीजेपी सत्ता पर काबिज है. लेकिन अगर ओपिनियन पोल्स सही साबित हुए, तो मंगलवार को स्थितियां बदल जाएंगी. यानी बीजेपी को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता से बेदखल होना पड़ेगा.
हालांकि, अभी नतीजों के बारे में निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के ओपिनियन पोल्स ज्यादा विश्वसनीय नहीं माने जाते हैं. जनसंख्या के हिसाब से भारत एक विशाल देश है. लिहाजा सर्वे या ओपिनियन पोल्स के छोटे-छोटे सैंपल साइज से हम जनता की नब्ज पकड़ने में अमूमन नाकाम साबित हो जाते हैं.
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संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों की भविष्यवाणी के लिए 1,000 से भी कम सैंपल साइज से ओपिनियन पोल किया जा सकता है. ऐसा टेलीफोन पर और अक्सर रोबोकॉल द्वारा किया जाता है. रोबोकॉल का अर्थ है, एक रिकॉर्ड किया हुआ संदेश जो मतदाता से मेन्यू में दिए गए विकल्पों में से किसी एक का चयन करने के लिए कहता है. साल 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में, एक सैफोलॉजिस्ट (चुनाव विश्लेषण) नेट सिल्वर ने अमेरिका के सभी 50 राज्यों में सटीक नतीजों का अनुमान लगाया था.
अमेरिका में केवल दो ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां हैं, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट. दोनों ही पार्टियों के पास ब्लू कॉलर और व्हाइट कॉलर वर्कर्स (श्रमिक), ग्रामीण और शहरी निवासियों जैसे अन्य डिवीजन हैं. समाज के इन वर्गों को लुभाने और अपने पक्ष में करने के अलावा दोनों ही पार्टियों की नजर देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग अश्वेतों और लैटिनोस (स्पेनिश बोलने वाले) पर भी रहती है. इन मतभिन्नताओं के चलते अमेरिका के ओपिनियन पोल्स चुनाव की सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम हैं. यानी अमेरिकी ओपिनियन पोल्स यह बताने में काफी हद तक सक्षम होते हैं कि चुनाव में कौन जीतेगा. अमेरिका में चुनाव वाले दिन न्यूज चैनल्स और न्यूज नेटवर्क्स वोटों की गिनती शुरू होने से पहले ही एग्जिट पोल्स के जरिए चुनाव की भविष्यवाणी करने लगते हैं. अमेरिकी न्यूज नेटवर्क्स की ये भविष्यवाणियां लगभग हमेशा सही होती हैं.
लेकिन भारत में स्थितियां बिल्कुल अलग हैं. किसी दूसरे लोकतांत्रिक देश की अपेक्षा का भारत का राजनीतिक समाज सबसे ज्यादा जटिल है. हम भाषा, संस्कृति और आर्थिक तौर पर विभाजित हैं. उत्तर भारतीय लोगों के विचार, समझ और रुझान की तुलना दक्षिण भारतीय और उत्तरपूर्वी भारतीयों से नहीं की जा सकती है. तीनों क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं. तीनों इलाकों की संस्कृति, परंपराएं और अर्थव्यवस्थाएं अलग-अलग हैं. इनके अलावा भारत में धर्म सबसे बड़ा विभाजनकारी फैक्टर है. धर्म के बाद जाति दूसरा सबसे बड़ा विभाजनकारी फैक्टर है. जाति व्यवस्था के चलते देश असामान्य तौर पर बंटा हुआ है. हर धर्म, हर जाति के लोगों के निजी हित और मुद्दे होते हैं.
ऐसे में भारत में चुनावों की भविष्यवाणी करना मुश्किल हो जाता है. क्योंकि यहां जो ओपिनियन पोल्स होते हैं उनका सैंपल साइज बहुत छोटा होता है, जिसमें हर वर्ग हर तबके और हर धर्म-जाति के लोगों की रायशुमारी शामिल नहीं हो पाती है. लिहाजा भारत में चुनावों की सटीक भविष्यवाणी के लिए बड़े सैंपल साइज की आवश्यकता है. लेकिन इसमें बहुत पैसा खर्च होता है, क्योंकि एग्जिट पोल्स करने वाली एजेंसियों को मतदाताओं का इंटरव्यू करने के लिए, उनका मूड जानने के लिए फील्ड में बड़ी तादाद में अपने एजेंट भेजना पड़ते हैं.
एग्जिट पोल्स/ओपिनियन पोल्स करने वाली कुछ एजेंसियों ने इस समस्या के अनोखे समाधान खोजे हैं. इनमें से एक एजेंसी टुडेज़ चाणक्य भी है. टुडेज़ चाणक्य का कहना है कि, उसने प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र का आकलन करने के लिए अपना एक अलग तरीका विकसित किया है. यह एजेंसी रायशुमारी के दौरान कभी-कभी लोगों को यह जाहिर नहीं करती है कि, वह ओपिनियन पोल कर रही है. एजेंसी का दावा है कि, ऐसा करने से उन्हें जनता का सटीक मूड और रुझान पता चल जाता है.
भारत में सर्वे करने वालों की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक यह है कि, यहां लोग अक्सर झूठ बोलते हैं. ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि भारत की जनता कुटिल है, बल्कि सर्वे के दौरान लोग इसलिए झूठ बोलते है, क्योंकि उन्हें इस बात का भरोसा नहीं होता है कि, उनके द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी या उनकी राय का उपयोग कैसे किया जाएगा. लोगों को डर होता है कि, कहीं अपनी राय या रुझान के खुलासे की वजह से उनका किसी तरह से नुकसान न हो जाए.
यह एजेंसी लोगों की संख्या की बजाए गुणवत्ता और गहराई पर ध्यान केंद्रित करती है
सीएसडीएस नाम की एजेंसी पोस्ट पोल सर्वे (चुनाव पूर्व सर्वेक्षण) कराने के लिए अपने कर्मचारियों को लोगों के घर भेजती है. सीएसडीएस का कर्मचारी करीब 30 मिनट तक उस शख्स का गहराई से इंटरव्यू लेता है. इस दौरान यह जानने की कोशिश की जाती है कि, इंटरव्यू देने वाले शख्स ने या उसके परिवार ने अबतक किस आधार पर मतदान किया है. इसके अलावा उस शख्स से चुनाव के अहम मुद्दों पर भी बात की जाती है. सीएसडीएस के सर्वे का सैंपल साइज आमतौर पर काफी छोटा होता है, क्योंकि यह एजेंसी लोगों की संख्या की बजाए गुणवत्ता और गहराई पर ध्यान केंद्रित करती है.
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चुनाव के दौरान भारतीय पोलिंग एजेंसियां अक्सर अनुमान लगाती हैं. मुझे लगभग 15 साल पहले का एक लोकसभा चुनाव याद है, जिसमें एक एजेंसी के सभी अनुमान गलत साबित हुए थे. तब उस एजेंसी के प्रमुख जीवीएल नरसिम्हा राव हुआ करते थे. जीवीएल नरसिम्हा राव मेरे पुराने दोस्त हैं और फिलहाल बीजेपी के नेता हैं. जीवीएल नरसिम्हा राव की एजेंसी ने एक न्यूज चैनल के लिए ओपिनियन पोल किया था. न्यूज चैनल के उस चुनावी शो को मशहूर कॉलमनिस्ट स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर ने होस्ट किया था.
शो के दौरान जैसे-जैसे नतीजे आना शुरू हुए, वैसे-वैसे हर राज्य में जीवीएल नरसिम्हा राव की एजेंसी के अनुमान गलत साबित होते गए. अय्यर ने जब इस बारे में राव से पूछा, तो उन्होंने कहा कि, अगर राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो उनकी एजेंसी का अनुमान कमोबेश सही है. हालांकि जीवीएल नरसिम्हा राव की इस दलील को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है. क्योंकि यह महज कोरा अनुमान है, जिसे वैज्ञानिक विधि का जामा पहनाकर पेश किया जाता है.
तीनों राज्यों में बीजेपी की जमीन खिसकती दिखाई दे रही है
भारत में चुनावी नतीजों की अप्रत्याशितता से बचने के लिए सर्वे एजेंसियों ने बैंड या रेंज का तरीका खोज निकाला है. यानी जीत-हार वाली सीटों की सटीक संख्या बताने के बजाए एजेंसिया कम-ज्यादा के आंकड़े पेश करने लगी हैं. अगर हम मध्यप्रदेश चुनावों को देखे, तो चार एजेंसियों ने जीत-हार वाली सीटों की विशिष्ट संख्या की भविष्यवाणी नहीं की है. लेकिन एक रेंज बनाई है, जिनमें कहीं-कहीं 20 सीटों की घटत-बढ़त पेश की गई है. इसका मतलब यह हुआ कि, उन एजेंसियों को अपने पोलिंग फिगर्स (मतदान के आंकड़ों) पर भरोसा नहीं है.
इन एजेंसियों ने यह भी सुनिश्चित नहीं किया है कि, मध्य प्रदेश में कौन सी पार्टी जीतेंगी. ओपिनियन पोल्स में बीजेपी और कांग्रेस को मिलने वाली अनुमानित सीटों की संख्याएं लगभग समान हैं. इस डेटा ने उलझन पैदा कर दी है. लेकिन इससे एक बात जरूर इंगित होती है कि, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी का प्रभुत्व कमजोर हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कड़ी मेहनत के बावजूद तीनों राज्यों में बीजेपी की जमीन खिसकती दिखाई दे रही है.
पांचों राज्यों के नतीजे राष्ट्रीय स्तर की राजनीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. खासकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के नतीजे बीजेपी की दशा और दिशा को तय करेंगे. साल 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने इन तीनों राज्यों की 65 लोकसभा सीटों में से 62 पर जीत दर्ज की थी. लेकिन अगर इन विधानसभा चुनावों में बीजेपी को शिकस्त मिली, तो यकीनन विपक्ष का आत्मविश्वास बढ़ जाएगा. बीजेपी की हार से यह स्पष्ट हो जाएगा कि, पार्टी उत्तर भारत में अपनी जमीन खो रही है, तब विपक्ष के लिए महागठबंधन बनाना और आसान हो जाएगा. कई अर्थों में, साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए सभी विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव सबसे महत्वपूर्ण हैं.
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