कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार के बाद जेडीएस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने में मिली कामयाबी से कांग्रेस फ्रंटफुट पर आ गई है. इससे न सिर्फ कांग्रेस और जेडीएस उत्साहित हैं बल्कि कई अन्य पार्टियों में भी नया उत्साह का संचार हुआ है. कई राजनीतिक दल कांग्रेस के कर्नाटक गठबंधन के इस मॉडल को खूब सराह रहे हैं. और अगले साल होने वाले आम चुनावों के लिए इसे मोदी लहर की काट बता रहे हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर इस गठबंधन का क्या महत्व होगा और राहुल गांधी के नेतृत्व में दोबारा उबरने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए इसके क्या मायने हैं? तेलंगाना के वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद मधू गौड़ याक्षी ने कहा, 'वह मानते हैं कि तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन की संभावना काफी अधिक है.'
वहीं जब उनसे राहुल गांधी को विपक्षी धड़े का प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर पूछा गया, तो उन्होंने कहा, 'इस पर बात करना थोड़ी जल्दबाजी होगी. यह काफी हद तक राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव नतीजों पर निर्भर करेगा, जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला सत्ताधारी बीजेपी से होगा.'
डबल सीटें जीतने के बावजूद कुमारस्वामी को क्यों दिया सीएम पद?
जब पूछा गया कि जेडीएस से दोगुनी सीटें जीतने के बावजूद आपने मुख्यमंत्री की कुर्सी कुमारस्वामी को सौंप दी. क्या यह महज राज्य के लिए समझौता था, या फिर जेडीएस के साथ महागठबंधन की शुरुआत थी? इसपर गौड़ का जवाब था, 'भारत के संविधान और लोकतंत्र पर खतरा है. इसी वजह से राहुल गांधी ने 'लोकतंत्र बचाने' की मुहिम छेड़ी है. हमारी पार्टी बीजेपी की तरह सत्ता की भूखी नहीं.'
गौड़ से जब पूछा गया कि क्या यह 2019 के चुनावों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की शुरुआत है, तो उन्होंने कहा, 'राहुल गांधी पहले ही यह कह चुके हैं. वो उन सभी दलों से हाथ मिलाने को तैयार हैं, जो हमारी विचारधारा पर यकीन करती हैं. वह साफ कह चुके हैं कि सभी को साथ लेकर वाली विचारधारा में जो यकीन नहीं करता वह हमारे लिए 'अछूत' है.'
लेकिन क्या बस हाथ मिलाने भर से हो जाएगा या फिर इस तरह के गठबंधन के लिए कांग्रेस जरूरी बलिदान देने को भी तैयार है? इस सवाल पर गौड़ कहते हैं कि इसका अंदाजा तो कर्नाटक से ही लग जाना चाहिए, यहां अपने पास ज्यादा विधायक होने के बावजूद हमने जेडीएस को सरकार का नेतृत्व सौंपा. ऐसा इसलिए कि हम लोकतंत्र और एकजुटता में विश्वास करते हैं. इसी कारण राहुल गांधी ने जेडीएस के साथ गठबंधन का फैसला किया और मुझे और गुलाब नबी आजाद को देवगौड़ा से बातचीत का जिम्मा सौंपा.
राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के चुनाव क्यों होंगे महत्वपूर्ण
वहीं राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन को लेकर पूछे जाने पर वह कहते हैं कि फिलहाल उनका ध्यान अगले 6 महीने में होने वाले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर है. उसके प्रदर्शन पर ही आगे के कदम तय होंगे.
बिहार में जिस तरह हमने गठबंधन किया था, किसी ने सोचा नहीं था कि लालू यादव और नीतीश कुमार एकसाथ आएंगे, लेकिन ऐसा हुआ. यह सोनिया गांधी की सलाह पर राहुल गांधी के नेतृत्व के कारण हो सका था. हम आगे भी इसी तरह बढ़ेंगे. जैसे आप यूपी को ही ले लें, अगर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस एक साथ आते हैं, तो बीजेपी बाहर हो जाएगी. बीजेपी यहां 70 सीटों के नंबर से शून्य पर खिसक जाएगी.
यहां कर्नाटक में ही जेडीएस और कांग्रेस साथ आ गए हैं, अब हम लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप करेंगे. उसी तरह तमिलनाडु में डीएमके के साथ गठबंधन की बात है. हाईकमान सही वक्त पर सही फैसला करेगा. हालांकि गठबंधन को लेकर हमारा सिद्धांत अब भी अटल है- गठबंधन के सहयोगियों का चयन बस सत्ता हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि देश के सामाजिक और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बर्बाद कर रही सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ने के लिए होगा.
(साभार: न्यूज़18)
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