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DUSU इलेक्शनः दक्षिणपंथी राजनीति से ऊब रहे हैं युवा

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के नतीजे खासतौर पर इसलिए अहम हैं क्योंकि यह लंबे वक्त से आरएसएस से जुड़े हुए एबीवीपी का मजबूत गढ़ रहा है

Updated On: Sep 14, 2017 04:05 PM IST

Debobrat Ghose Debobrat Ghose
चीफ रिपोर्टर, फ़र्स्टपोस्ट

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DUSU इलेक्शनः दक्षिणपंथी राजनीति से ऊब रहे हैं युवा

दक्षिणपंथी राजनीति के खिलाफ कैंपसों में जंग शुरू हो गई है. दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (डूसू) के नतीजे जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में एबीवीपी की हार के ठीक बाद आए हैं. डूसू में भी एबीवीपी को झटका लगा है. इन नतीजों से संकेत मिल रहा है कि छात्रों के बीच दक्षिणपंथी विचारधारा की अपील कमजोर पड़ रही है.

एबीवीपी की अपने गढ़ में हार

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के नतीजे खासतौर पर इसलिए अहम हैं क्योंकि यह लंबे वक्त से आरएसएस से जुड़े हुए एबीवीपी का मजबूत गढ़ रहा है. हाल के वक्त में एबीवीपी संघ के कई प्रमुख प्रोजेक्ट्स में शामिल रही है, जिनमें इसका राष्ट्रवादी एजेंडा भी शामिल है.

जिस आक्रामक अंदाज में एबीवीपी ने अपना कैंपेन चलाया था उसे देखकर लग रहा था कि वह नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) जैसे प्रतिस्पर्धियों को दौड़ में काफी पीछे छोड़ देगी.

हालांकि, डूसू के नतीजों ने सबको चौंकाया है. कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई ने प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट के दो प्रमुख पद हथिया लिए हैं. एबीवीपी को सेक्रेटरी और जॉइंट सेक्रेटरी पदों से ही संतोष करना पड़ा है.

ये अहम पद चार साल बाद एनएसयूआई के हाथ आए हैं. दूसरी ओर, एबीवीपी दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक मजबूत ताकत के तौर पर कायम रही है. 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के साथ-साथ एबीवीपी का कैंपस में दबदबा भी बढ़ा है. 2014 के डूसू इलेक्शन में एबीवीपी ने चारों सेंट्रल पैनल पोस्ट्स पर जीत हासिल की थी. इसका श्रेय मोदी लहर और ‘तीन महीनों के मोदी सरकार के अच्छे कामों’ को दिया गया.

2015 में एबीवीपी ने एक बार फिर चारों पोस्ट पर विजय हासिल की और 2016 तक डूसू पर अपना दबदबा जारी रखा. 2016 में एबीवीपी ने प्रेसिडेंट समेत तीन टॉप पोस्ट हासिल कीं, जबकि एनएसयूआई को जॉइंट सेक्रेटरी की पोस्ट पर जीत हासिल हुई.

जेएनयू में छात्रों ने खारिज किया 

Delhi University Election

एक हफ्ते पहले ही सीपीआई समर्थित एआईएसएफ को छोड़कर बाकी लेफ्ट यूनियनों- एसएफआई, आइसा, डीएसए ने एक गठबंधन ‘लेफ्ट यूनिटी’ का गठन किया ताकि जेएनयू में एबीवीपी को हराया जा सके. हालांकि, जेएनयू को वामपंथी विचारधारा का गढ़ माना जाता है, लेकिन विचारधारा से जुड़ी कई घटनाओं के चलते गुजरे एक साल में ऐसा माहौल पैदा हुआ जिसमें यह लगने लगा था कि एबीवीपी का कैंपस में उभार हो रहा है और वह यहां बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकती है. हालांकि, नतीजों ने इस संभावना को नकार दिया.

इन नतीजों ने यह भी संदेश दिया कि छात्र समुदाय एबीवीपी की लड़ाकू राजनीति से खुद को दूर कर रहा है. चारों टॉप पोस्ट लेफ्ट यूनिटी के हाथ आईं- इनमें प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट के पदों पर आइसा, जनरल सेक्रेटरी की पोस्ट पर एसएफआई और जॉइंट सेक्रेटरी पद पर डीएसएफ ने कब्जा किया. एबीवीपी इस रेस में दूसरे नंबर पर रही. पिछले साल एबीवीपी उम्मीदवार सौरभ शर्मा ने जेएनयूएसयू में जॉइंट सेक्रेटरी का पद पर कब्जा जमाने में कामयाबी हासिल की थी.

एबीवीपी ने दावा किया था कि उसके छात्रों के हितों के मसले उठाने और जेएनयू कैंपस में लगातार किए गए विकास के कामों के चलते वह लेफ्ट को हराने में सफल होगी और छात्र कम्युनिस्ट विचारधारा से अब ऊब गए हैं. केंद्र में एनडीए सरकार होने के साथ एबीवीपी को उम्मीद थी कि वह साल 2000 की जीत को जेएनयू में फिर से दोहरा पाएगी. उस वक्त एबीवीपी के कैंडिडेट संदीप महापात्र ने जेएनयूएसयू के इतिहास में पहली और आखिरी मर्तबा प्रेसिडेंट के पद पर जीत हासिल की थी.

एनएसयूआई के नेशनल मीडिया इंचार्ज नीरज मिश्रा ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा, ‘डूसू में एनएसयूआई की जीत पीएम मोदी की नीतियों और आरएसएस-एबीवीपी के कैंपसों के भगवाकरण के एजेंडे के खिलाफ दिया गया जनादेश है. राजस्थान यूनिवर्सिटी, पंजाब यूनिवर्सिटी और अब डीयू के नतीजे बता रहे हैं कि छात्रों ने उन्हें खारिज कर दिया है. एनएसयूआई की जीत युवाओं का कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी में भरोसा भी दिखाती है.’

एक के बाद एक कैंपसों में हार 

Rajat Choudhary ABVP delhi university

जेएनयू और डीयू छात्र संघ चुनावों से पहले राजस्थान विश्वविद्यालय के चुनावों में एबीवीपी को तगड़ा झटका लगा. तीनों प्रमुख सीटों पर इसे हार का सामना करना पड़ा. इसमें प्रेसिडेंट पोस्ट एक निर्दलीय उम्मीदवार के हाथ आई, जबकि एनएसयूआई को वाइस प्रेसिडेंट और जनरल सेक्रेटरी के पद मिले. एबीवीपी को जॉइंट सेक्रेटरी पद से संतोष करना पड़ा. राजस्थान में बीजेपी की सरकार है और इसे देखते हुए यह हार एबीवीपी के लिए एक बड़ा झटका है.

इसी तरह से, पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के चुनाव में एनएसयूआई ने प्रेसिडेंट समेत तीन सीटें जीतीं. कैंपसों में सफलता के अलावा कांग्रेस वापसी की तैयारी करती दिखाई दे रही है क्योंकि पंजाब असेंबली चुनावों में पार्टी को जबरदस्त जीत हासिल हुई है.

रणदीप सुरजेवाला का ट्वीट

कांग्रेस के कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के हेड रणदीप सुरजेवाला ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा, ‘एक के बाद एक हार से दिखाई दे रहा है कि यूथ फॉर चेंज मोदी सरकार और बीजेपी के झूठे वादों से ऊब गया है. नौकरियां खत्म हो रही हैं, मौके घट रहे हैं और आजादी पर पहरे लगाए जा रहे हैं. सरकार और बीजेपी दोनों ही युवाओं की आजादी को खत्म करना चाहते हैं. सोचने, खाने, पहनने, आने-जाने और अपने भविष्य को शक्ल देने के अधिकार पर बीजेपी सरकार से जुड़े हुए तत्वों द्वारा हमले किए जा रहे हैं.’

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