लगभग ढाई साल हो गए हैं, जब जून 2014 में मुझे राज्य सभा का सदस्य बनने का गौरव प्राप्त हुआ. जनता दल (यू) और श्री नीतीश कुमार जी के सौजन्य से.
मैं अक्सर राज्यसभा के पवित्र कॉरिडोर (गलियारों) में दीवारों पर लटकी पूर्व सदस्यों और सभापतियों की फोटो देखता हूं. इनमें डॉ. एस राधाकृष्णन, डॉ. जाकिर हुसैन, श्री आर वेंकटरमन और अन्य लोगों के फोटो शामिल हैं. मैं श्री भूपेश गुप्ता, श्री चंद्रशेखर, श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री पीलू मोदी, श्री ईरा सेजियान और बहुत सारे लोगों के चेहरे पहचाने की कोशिश करता हूं.
इन लोगों के ज्ञान और जानकारी से परिपूर्ण अद्भुत हस्तक्षेप और बहसों ने उन शुरुआती दिनों में गहरा असर छोड़ा था और हमारे जमीर को टटोला था. संसद की वैचारिक बहसों ने हम में से बहुत से लोगों को देश के लिए सपने देखने और उन मूल्यों की खातिर खड़े होने को प्रेरित किया, जिनसे आजाद भारत को आकार मिला.
खुद से सवाल
राज्यसभा, जो लोकतंत्र की शक्ति का स्रोत है, उसकी दीवारों पर ये तस्वीरें अक्सर मुझे परेशान करती हैं. खासकर, पिछले कुछ दिनों से इन तस्वीरों के सामने से गुजरना और मुश्किल हो गया है. एक दिसंबर (शीतकालीन सत्र का 15वां दिन) तक सदन में कोई काम नहीं हुआ है. सिर्फ पहले दिन राज्यसभा में नोटबंदी पर अच्छी बहस हुई थी. उसके बाद नियमित अवरोध, अव्यवस्था और तेज आवाज में नारेबाजी के कारण सदन पूरी तरह शोरशराबे की नजर हो गया है. लगातार हंगामे और शोरशराबे के कारण सदन की कार्यवाही रोक दी जाती है और दुख की बात है कि लगातार ऐसा हो रहा है. मैं खुद से पूछता हूं कि जनता, राज्यों और राष्ट्र की वास्तविक शिकायतों से निपटने के लिए क्या हमारे पास यही इकलौता रास्ता बचा है?
मैंने देखा है कि माननीय सभापति और उपसभापति सदन को सुगम और शांतिपूर्ण तरीके से चलाने में अपनी पूरी कोशिश लगा देते हैं; फिर भी बेबसी की एक भावना हमेशा दिखती रहती है. मैं यहां खास तौर से हमारे उपसभापति प्रोफेसर पीजे कुरियन के प्रयासों का उल्लेख करना चाहूंगा. वह सदस्यों से शांति बनाए रखने और सदन चलने की गुजारिश ही करते रहते हैं. फिर भी, संसद की वेल में मौजूद सदस्य उनके शब्दों पर कोई ध्यान नहीं देते.
प्रोफेसर कुरियन के लिए मेरे मन में बहुत सहानुभूति और सम्मान है और उनके धैर्य, धीरज, व्यंग, हास्य विनोद और सबसे ऊपर सदन को चलाने की प्रतिबद्धता से रश्क होता है. लगातार नारेबाजी से हर सामान्य गतिविधि बाधित होती है और वह अक्सर सदन की कार्यवाही को स्थगित करने के लिए मजबूर होते हैं. मैं उस पल सोचता हूं कि यही है गणमान्य, बड़े राजनीतिज्ञों और समाज में अमूल्य योगदान देने वाले लोगों का ऊपरी सदन. संविधान सभा की बहसों में राज्यसभा की कल्पना एक ऐसे सदन के रूप में की गई थी, जहां तार्किक चिंतन और मूल्यांकन होगा और यह सदन आम जनजीवन से जुड़ी साधारण और रोजमर्रा की नियमित गतिविधियों से अलग होगा.
इसलिए बनी राज्यसभा
एन गोपालस्वामी अय्यंगर ने इसे एक ऐसे सदन का नाम दिया जो ‘क्षणिक आवेश’ को एक चिंतनशील क्षण की तरह नियंत्रित कर सकता है. संविधान सभा के कई सदस्य दूसरे सदन के पक्ष में थे क्योंकि उनका विश्वास था कि इस राज्यसभा के विद्वान सदस्य लोकसभा की संकीर्ण और सीमित राजनीतिक सीमाओं से ऊपर होंगे. राज्यसभा के ये माननीय सदस्य कानूनों को अधिक निष्पक्षता के साथ परख सकेंगे और इस तरह कानून बनाने की पूरी प्रक्रिया की गुणवत्ता को बढ़ाएंगे.
मुझे श्री लोकनाथ मिश्र याद आते हैं, जिन्होंने इस सदन को
श्री एम अनंतसायानम अय्यंगर ने इस सदन की स्थापना ऐसे मंच के तौर पर की जहां चिंतनशील विवेचन होगा. 'विवेकशील लोग यहां होंगे, यहां उनको स्थान मिल सकता है जो चुनाव जीतने में सक्षम नहीं हैं.'
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण ने राज्यसभा के महत्व पर जोर देते हुए कहा था, 'आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि यह सदन सरकार बना और गिरा नहीं सकता, इसलिए इसकी जरूरत नहीं है. लेकिन कई ऐसे काम हैं जिन्हें समीक्षा करने वाला यह सदन बहुत सार्थक तरीके से पूरा कर सकता है. नई संसदीय व्यवस्था के तहत हम पहली बार दूसरे सदन को केंद्र में रख कर शुरुआत कर रहे हैं और हमें इस देश के लोगों के सामने यह बात उचित ठहराने के लिए अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए कि जल्दबाजी में कोई कानून बनाने से रोकने के लिए दूसरा सदन बहुत जरूरी है. हमारे सामने जो भी प्रस्ताव आएं, हमें उन पर तटस्थ और निष्पक्ष भाव से चर्चा करनी चाहिए.'
राज्ससभा की जरूरत
दिवंगत राज्यसभा सभापति कृष्ण कांत ने 'भारत में दूसरे सदन का उभार (इमरजेंस ऑफ सेकंड चैबर इन इंडिया)' पुस्तक के लिए अपनी भूमिका में उस संभावित गतिरोध को पहले ही देख लिया था, जिससे हमारी मौजूदा संसदीय व्यवस्था आज जूझ रही है. उन्होंने लिखा था, 'राज्यों की परिषद (राज्यसभा) में बहुमत-अल्पमत दलीय समीकरण लोकसभा के मुकाबले कहीं धीमी गति से बदलते हैं. ऐसे भी अवसर हो सकते हैं जब दोनों सदनों में बहुमत रखने वाली पार्टी चुनाव के दौरान निचले सदन में अल्पमत में आ जाए, लेकिन राज्यसभा में वह बहुमत में बनी रहे. कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि यह स्थिति ठीक नहीं है क्योंकि यह जनादेश के सिद्धांत मुताबिक नहीं है. यह सिद्धांत एक निश्चिति समय पर जीतने वाले बहुमत को उस जनादेश के अनुसार कानून बनाने का बेरोकटोक अधिकार देता है. इस तरह ऊपरी सदन में विपक्षी पार्टी का बहुमत होना नियम के विरुद्ध प्रावधान है. इसका यह भी खतरा है कि ऊपरी सदन में विपक्षी पार्टी अपने बहुमत का इस्तेमाल उस समय की सरकार को परेशान करने के लिए कर सकती है.'
अतीत में हमारे महान नेताओं ने भरोसा दिलाया था कि गतिरोधों के दौरान राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेता आम राय बनाने में योगदान करेंगे. क्या हम विफल हो गए हैं? एक बार फिर मैं एन गोपालस्वामी अय्यंगर की बातों को याद दिलाता हूं. दूसरे सदन (राज्यसभा) का प्रस्ताव पेश करते हुए उन्होंने कहा था, 'आखिरकार, जिस प्रश्न पर हमें विचार करना है, वह यह है कि क्या यह सदन कोई महत्वपूर्ण काम करता है. ज्यादा से ज्यादा हम यह उम्मीद कर रहे हैं कि दूसरा सदन शायद महत्वपूर्ण मुद्दों पर गरिमामयी बहसें करेगा, कानून जो क्षणिक आवेश का परिणाम हो सकते हैं, उनके बनने में विलम्ब होगा. विलंब इसलिए ताकि आवेश पर नियंत्रण पाया जा सके और कानून बनने से पहले उस पर शांत चित्त से विचार किया जाए.
हम ध्यान रखेंगे कि संविधान में प्रावधान हो कि किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर, जो खास तौर से वित्त से संबंधित हो, उस पर अगर लोकसभा और राज्यसभा में विरोधाभास हो तो ऐसे में लोकसभा की राय ही सर्वोपरि होगी. इसलिए इस दूसरे सदन को अस्तित्व में लाकर हम जो हासिल कर सकते हैं, वह है सिर्फ एक साधन जिसके जरिए ऐसी कार्रवाइयों को विलंबित किया जा सकता है जो शायद जल्दबाजी में की गई हों. इसके जरिए हम उन विद्वान लोगों को अवसर देते हैं जो राजनीतिक खेमेबंदी में नहीं बंटे हैं, बल्कि वो संभवतः उस ज्ञान और महत्व के साथ बहस में शामिल होना चाहते है, जिसे हम आम तौर पर लोकसभा के साथ जोड़कर नहीं देखते हैं.'
नारेबाजी, हंगामा, शोरशराबा
हमारे दूरदर्शी नेता और संविधान निर्माता राज्यसभा की यह भूमिका देखते थे. इस सदन के सभी सदस्यों का यह कर्तव्य है कि इस विलक्षण विरासत को बनाए रखें और आगे ले जाएं. जब मैं उपसभापति को बेबसी के साथ सदस्यों से बार बार गुजारिश करते हुए और फिर उसके बाद सदन को स्थगित करते हुए देखता हूं तो मैं दर्शक दीर्घा की ओर देखता हूं और अपने आप से सवाल करता हूं कि बार बार हो इन स्थगनों पर मैं जनता के सवालों का क्या जवाब दूंगा.
माननीय सभापति एक विद्वान हैं. उनकी समृद्ध अकादमिक पृष्ठभूमि है और उन्हें अपार अनुभव है. असल में हाल ही मैंने उनकी किताब खरीदी है, 'नागरिक और समाज.', वह एक विद्वान व्यक्ति हैं और अपने महान उत्कृष्ट पूर्ववर्तियों की विरासत को सफलतापूर्वक आगे ले जा रहे हैं. जब भी वो चेयर पर बैठते हैं और सदस्यों से शांतिपूर्ण तरीके से चर्चा करने का आग्रह करते हैं, तो जोर-जोर से नारेबाजी और अफरातफरी पूरे माहौल पर छा जाती है और यही चलता रहता है.
मैं इस सदन में उन मुद्दों पर बहस का सपना लेकर दाखिल हुआ था जिनका सामना हमारा देश कर रहा है. बेरोजगारी आज हमारे देश के सामने मौजूद सबसे बड़ी चुनौती है. चूंकि अब वैश्वीकरण ही खुद अपने भीतर से विरोध और असंतोष झेल रहा है, तो मैं अकसर अपने आप से पूछता हूं कि क्या आर्थिक वृद्धि का हमारा मॉडल फेल हो गया है?
मैं इस संसद में ज्ञानवर्धक बहसें और विचार सुनना चाहता हूं, ठीक वैसी ही बहस जैसी जीएसटी बिल पर सुनी थी. मेरी राय में, राज्यसभा में जीएसटी बिल पर बहस अब तक की सबसे अच्छी बहसों में से एक रही है. यह बहस शालीनता और ज्ञान से भरी थी. इसमें सदस्यों ने संकीर्ण दलगत राजनीति से ऊपर उठकर हिस्सा लिया था और उनका ध्यान देश के हित और भविष्य पर था.
जुगाड़ पर कब तक चलेंगे?
आज मुझे कई ऐसे अहम मुद्दे को लेकर गुस्सा आता है जिन पर गंभीरता और निष्पक्षता के साथ ध्यान दिए जाने की जरूरत है. राज्यसभा के बहुत से अन्य सदस्य भी मेरे विचारों और भावना से सहमत होंगे. मिसाल के तौर पर, हाल में हुई इंदौर-पटना रेल दुर्घटना पर बहस होनी चाहिए.
ध्यान देने वाली बात है कि लगभग तीन हजार रेलवे पुल 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं, इन तीन हजार में से 32 पुलों को 'कमजोर पुल' के तौर पर चिन्हित किया गया है, लेकिन मियाद खत्म होने के बाद भी इन पुलों का इस्तेमाल होना एक गंभीर मुद्दा नहीं माना जाता. भारतीय रेल की पटरियों पर दबाव बहुत बढ़ गया है; कुछ सेक्शनों का इस्तेमाल तो उनकी पूरी क्षमता या फिर क्षमता से भी अधिक किया जा रहा है.
उदाहरण के लिए मुगलसराय-गाजियाबाद सेक्शन में, हर दो मिनट के भीतर किसी न किसी स्टेशन से ट्रेन बनकर चल रही है. इतनी बड़ी संख्या में ट्रेनों का चलना न सिर्फ रेलवे कर्मचारियों के अथक प्रयासों की तरफ इशारा करता है, बल्कि ये हमारे रेल के बुनियादी ढांचे की दयनीय स्थिति को भी दिखाता है. शासन से जुड़ी गंभीर समस्याएं सिर्फ रेलवे तक ही सीमित नहीं हैं. बल्कि ये हमारे पूरे नागरिक और रक्षा परिवहन, लॉजिस्टिक इंफ्रास्ट्रक्चर, शहरी विकास, रक्षा तैयारी, कानून व्यवस्था, रोजगार निर्माण और नागरिकों के जीवन के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओ से भी जुड़ी हैं.
हमने ‘चलता है’ या ‘जुगाड़’ वाली सोच अपना ली है और पिछले कुछ दशकों में इस सोच ने हमें एक गंभीर जाल में फंसा लिया है. मैं तो समझ नहीं पाता हूं कि ये मुद्दे हमारी संसदीय बहसों में गंभीर मुद्दे क्यों नहीं बन पाते? हमें गहराई से सोचना होगा और इसका समाधान निकालना होगा. ऐसा लगता है कि पूरी व्यवस्था चरमरा गई है. यहां तक कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर रेलवे की डांवाडोल वित्तीय हालत पर भी चर्चा करने की जरूरत है (रेलवे के वित्त का एक बड़ा हिस्सा वेतन और पेंशन में ही चला जाता है.)
घिरता जा रहा है भारत
पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हमारी सीमाओं पर क्या स्थिति है, इस पर भी चर्चा होनी चाहिए. हमारे सैनिकों पर हमले जारी है और सीमा पार आतंकवाद हमारे देश के लिए लगातार गंभीर खतरा बना हुआ है. मुझे यह पढ़कर पीड़ा भी होती है और गुस्सा भी आता है कि चीन हमें किस तरह घेर रहा है. चीन ने बांग्लादेश, श्रीलंका और बर्मा में बंदरगाह बना लिए हैं. तिब्बत को भी स्वायत्तता मिलनी बाकी है.
हर गुजरते दिन के साथ ऐसा लग रहा है कि तिब्बत की विशिष्ट संस्कृति, सामाजिक, धार्मिक पहचान बहुसंख्यक हान चीनी नस्ल और उसके सांस्कृतिक रीति रिवाजों में ही गुम होती जा रही है. हाल में चीन की सेना ने पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह की सुरक्षा करने और उसे चलाने का फैसला फैसला किया है. चीन और पाकिस्तान ने कुनमिंग और कराची के बीच माल ढुलाई के लिए बीच सीधी रेल और समंदर सेवा शुरू की है.
रूस भी पाकिस्तान के साथ संबंध बढ़ा रहा है और अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नवाज शरीफ को सहयोग और समर्थन का वादा किया है. चीन ने मध्य और दक्षिण पूर्व एशिया में अपना असर बढ़ाया है. ये मुद्दे मुझे परेशान करते हैं और मुझे विश्वास है कि अन्य सदस्यों को भी करते होंगे. सेना का आधुनिकीकरण शुरू होना चाहिए और इस पर चर्चा होनी चाहिए.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.