बाला साहब ठाकरे की जयंती के मौके पर शिवसेना के सर्वेसर्वा और बाठ ठाकरे के उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे के साथ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मौजूदगी कुछ अलग ही कहानी बयां कर रही थी. दोनों ही दलों के रिश्तों में चल रही तनातनी के बीच शिवसेना के मुखिया और मुंबई में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की मुलाकात दोनों दलों के रिश्तों में आई कड़वाहट के लोकसभा चुनाव से पहले खत्म होने की थोड़ी-सी उम्मीद जरूर जगा गई है.
दरअसल, महाराष्ट्र की सरकार ने एक दिन पहले ही बाल ठाकरे के स्मारक के निर्माण के लिए 100 करोड़ रुपए की मंजूरी दी थी. शिवसेना की तरफ से इस फैसले पर खुशी जताई गई थी. महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले को दोनों ही दलों के रिश्तों में जमी बर्फ को पिघलाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
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हकीकत भी यही है. पिछले पांच सालों में बीजेपी और शिवसेना केंद्र और राज्य की सरकारों में साथ-साथ रहने के बावजूद एक-दूसरे पर हमलावर रहे हैं. सरकार के साथी एक-दूसरे को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते रहे हैं. आक्रामकता शिवसेना की तरफ से ज्यादा रही है. ऐसा होना लाजिमी भी था, क्योंकि बाला साहब ठाकरे के वक्त में दोनों दलों के गठबंधन में शिवसेना बड़े भाई की भूमिका में रही थी. उस वक्त बीजेपी बाला साहब के पीछे-पीछे चलने को मजबूर दिखती थी.
लेकिन, उनके नहीं रहने पर कमजोर शिवसेना को मोदी-शाह की अगुआई वाली बीजेपी के पीछे चलने को मजबूर होना पड़ा है. शिवसेना इसी बात को पचा नहीं पा रही है. सरकार में शामिल होते हुए भी सरकार के खिलाफ केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर मोर्चा खोलना उसकी उसी परेशानी को दिखा रहा है.
नाराज शिवसेना ने पहले ही बीजेपी के साथ अलग होकर चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया है. शिवसेना इस बार बीजेपी को सबक सिखाने का दावा करती रही है. लेकिन, बीजेपी की रणनीति अभी भी शिवसेना को साथ लाने की ही है. बीजेपी को उम्मीद है कि आखिर में शिवसेना के साथ उसका गठबंधन हो जाएगा.
गौरतलब है कि कभी भी बीजेपी की तरफ से शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे के सम्मान में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई है. पार्टी की तरफ से बाला साहब के सम्मान में स्मारक के लिए सरकार की तरफ से उठाए गए कदम की सराहना की गई है. पार्टी अपनी तरफ से कोई ऐसी गलती नहीं करना चाहती जिससे शिवसेना को नाराज होने का कोई और बहाना मिल जाए. इसके बावजूद भी अगर शिवसेना अलग होती है तो बीजेपी जनता के बीच अपनी बात बेहतर तरीके से रखने में सफल हो पाएगी.
हालांकि, कुछ दिन पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की तरफ से पार्टी के सभी सांसदों को अकेले भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने का संकेत दिया गया था. बीजेपी अपनी तैयारी में पहले से भी रही है. उसे लगता है कि शिवसेना अगर साथ नहीं आती है तो फिर अकेले ही उसे मुकाबले के लिए तैयार होना पड़ेगा. लेकिन, शिवसेना प्रमुख बाला साहब के प्रति पार्टी का सम्मान संभावना के द्वार को खुले रखने की कोशिश के तौर पर ही देखा जा रहा है.
लेकिन, सूत्रों के मुताबिक, शिवसेना के सांसद और विधायक बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं हैं. उन सांसदों को अलग होने पर चुनाव हारने का डर सता रहा है. लोकसभा के पालघर में हुए उपचुनाव में शिवसेना ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. लेकिन, उस वक्त भी शिवसेना को हार का सामना करना पड़ा था. शिवसेना के सांसदों के भीतर यही डर सता रहा है. सूत्रों के मुताबिक, महाराष्ट्र में एक बार फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन करने के लिए शिवसेना के सांसदों की तरफ से पार्टी प्रमुख पर दबाव बनाया जा रहा है.
हालांकि, शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने पुरानी बात को दोहराते हुए बीजेपी के साथ गठबंधन की संभावना से इनकार किया है, लेकिन, चुनाव बाद प्रधानमंत्री पद के लिए नितिन गडकरी के नाम के आगे आने की स्थिति में उन्हें समर्थन देने की बात भी कह दी है. गडकरी महाराष्ट्र के नागपुर से बीजेपी सांसद हैं, लिहाजा शिवसेना की तरफ से क्षेत्रीय कार्ड खेलकर संभावित नुकसान की भरपाई की कोशिश की जा रही है.
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लेकिन, इस रणनीति पर चलना उसके लिए आसान नहीं होगा. क्योंकि, बीजेपी को नुकसान पहुंचाने के चक्कर में उसका अपना भी सफाया संभव है. ऐसे वक्त में उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फणनवीस का तस्वीरों में साथ-साथ आना एक बीजेपी-शिवसेना के साथ-साथ बने रहने की उम्मीदों को बरकरार रहने के तौर पर देखा जा सकता है.
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