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सियासत है सर्कस, यहां रोना-गाना पड़ता है

भारतीय समाज में एक पुराना मुहावरा है और वह है घड़ियाली आंसू बहाना

Updated On: Nov 23, 2016 06:30 PM IST

Mridul Vaibhav

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सियासत है सर्कस, यहां रोना-गाना पड़ता है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार अपने सांसदों के बीच रो पड़े. एक बार नहीं, वह भी तीन बार. वे इन दिनों कई बार भाषण देते हुए भावुक हो चुके हैं.

राजकपूर की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' के एक मशहूर गीत में इस दुनिया को सर्कस बताया गया है. लेकिन यह दुनिया भले सर्कस हो या न हो, लेकिन नेताओं के तौर-तरीकों और उनकी अदाओं को देखकर कहा जा सकता है कि सियासत जरूर सर्कस है.

इस सर्कस में आम लोग रिंग मास्टर होता है और उसके सामने बड़े को भी, छोटे को भी, खरे को भी, खोटे को भी, दुबले को भी और मोटे को भी ऊपर से नीचे जाना पड़ता है.

इतना ही नहीं, रिंग मास्टर के पास बहुमत का ऐसा कोड़ा होता है, जो सियासत की सर्कस में नाचने-गाने वालों की किस्मत तय करता है. यह कोड़ा ही है, जो तरह-तरह से नेताओं कभी नाचने तो कभी रोने पर मजबूर कर देता है.

हंसी और आंसू एक ही भाव 

नरेंद्र मोदी मंगलवार को कोई पहली बार नहीं रोए. इससे पहले वे जापान से लौटते समय 13 नवंबर को गोवा में भावुक हो गए थे. उन्होंने नोटबंदी को लेकर भाषण दिया और लोगों से महज पचास दिन मांगे.

उनका कहना था कि लोग उन पर गंदे आरोप लगा रहे हैं, लेकिन वे बेईमानों को नहीं छोड़ेंगे और बेईमानों से उन्हें सबसे ज्यादा खतरा है.

उन्होंने कहा कि ये लोग मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे. इससे पहले वे 27 सितंबर 2015 को अमेरिका में फेसबुक के एक कार्यक्रम में अपने पिता और अपनी मां की गुरबत को याद करके भावुक हो गए थे.

New Delhi: Prime Minister Narendra Modi and BJP Senior leader L K Advani during the launch of Shraddheya Kidarnath Sahni Smriti Granth in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by Kamal Singh(PTI11_22_2016_000306B)

एक बार जब भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की मौजूदगी में वे भावुक हुए. मोदी बोले कि आडवाणी जी ने एक शब्द प्रयोग किया -नरेंद्र भाई ने कृपा की. कृपया आप इस शब्द का फिर प्रयोग न करें आडवाणी जी. भावुक मोदी रो पड़े और एक गिलास पानी पीकर वे संयमित हुए.

राजनीति में यह पहली बार नहीं 

भारतीय राजनीति में यह पहला मौका तो नहीं है. भारतीय समाज में इसके लिए एक पुराना मुहावरा है और वह है घड़ियाली आंसू बहाना. नेताओं के बारे में माना जाता है कि उनके दिल होता ही नहीं, वे आंसू टपकाने का बहाना बनाते हैं या यह नाटक भर है.

कभी कभी इसे नौटंकी भी कहा जाता है. लेकिन सच है कि कई बार जब इनसान के पास कोई और विकल्प नहीं रह जाता और वह भावुक हो तो आंसू टपक ही पड़ते हैं. लेकिन सियासत एक बहुत ही क्रूर क्षेत्र है, जहां किसी को यह छूट नहीं दी जाती कि उसके आंसुओं को सच्चा मान लिया जाए.

फिल्मों में तो बाकायदा ग्लिसरीन का प्रयोग करके कृत्रिम आंसू पैदा किए जाते हैं. सियासत में ग्लिसरीन तो नहीं, लेकिन भावुकता की ग्लिसरीन लाकर लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने का खेल रहता ही है.

यह ऐसा समय है जब लोग नरेंद्र मोदी की तुलना इंदिरा गांधी से करते हैं, लेकिन इंदिरा गांधी के समय को देखें तो राजनीति में जो झंझावात और उतार-चढ़ाव उन्होंने देखे, वे शायद ही किसी ने देखे हों.

उनके बेटे संजय गांधी की मृत्यु हुई या कोई और हृदयविदारक क्षण रहा हो, एक महिला होने के बावजूद उन्हें शायद ही कभी किसी ने रोते हुए देखा हो.

इंदिरा गांधी की मृत्यु होने पर राजीव गांधी भी अपने आपको संयमित रखे रहे और वे शायद 12 दिन बाद जब घर में अकेले हुए तो फूट फूट कर रो पड़े थे. लेकिन यह रोना सार्वजनिक रोना नहीं था.

राजीव के बाद किसी ने सोनिया गांधी को भी राेते नहीं देखा. लेकिन जयपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में राहुल गांधी ने कहा था कि रात को जब मां यानी सोनिया उनके पास आईं तो उन्होंने कहा कि राजनीति जहर है और रो पड़ीं.

Rahul-Sonia

पंडित नेहरू हों या लाल बहादुर शास्त्री, सरदार पटेल हों या चौधरी चरणसिंह या चंद्रशेखर, ये लोग कभी भावुक होते हुए दिखाई नहीं दिए. लेकिन भाजपा के नेताओं के भावुक होने का एक अलग पक्ष ही है. लालकृष्ण आडवाणी तो स्टेज पर ऐसे समय भावुक हो गए जब उमा भारती ने उनकी तारीफें कर दीं.

किम जोन उन भी रोते हैं

लेकिन नेता तो नेता हैं आैर कोई नहीं कह सकता कि उनकी सुबकियों पर कोई भरोसा कर ही ले. क्योंकि कुछ समय हुआ जब उत्तर कोरिया का क्रूरतम तानाशाह किम जोन उन एक स्टार नाइट पर जार-जार रो पड़ा.

पंडित नेहरू भी वैसे तो शायद कभी नहीं रोए, लेकिन जब लता मंगेशकर ने तुम जरा अांख में भर लो पानी गाया तो उनकी भी आंखें भर आईं थीं.

कुछ समय हुआ जब आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उन्होंने इंसान का इंसान से हो भाईचारा वाला गीत भावुक कंठ से गाकर सुनाया और अगले दिन अपने सबसे करीबी दोस्त योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

आपको भारतीय राजनीति में ऐसे रंग और ऐसे नूर बहुत मिलेंगे, जहां नेताओं ने खुद अपने साथियों को पार्टी से बाहर किया और ऐसी घटनाओं पर अांसू टपकाए.

कई दूसरे शीर्ष नेता भी रो चुके हैं 

रोने का यह प्रहसन सिर्फ भारतीय राजनीति में ही नहीं है. यह राजनीति का अंतरराष्ट्रीय रंग है. अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा 2012 में व्हाइट हाउस में बंदूकों पर नियंत्रण लगाने संबंधी एक कार्यक्रम में जार-जार रो पड़े थे. उन्हें 20 बच्चों की मौत का मंजर याद आ गया था.

obama sad

अमेरिकी राष्ट्रपतियों में वैसे रोने की एक परंपरा सी ही रही है. भले क्लिंटन हों या हिलेरी, छोटे बुश हों या बड़े निक्सन, रोने के कई किस्से हैं. लोगों ने लौहललना कहलाने वाली ब्रिटिश प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर को भी राेते-लरजते देखा.

कभी हामिद करजई अफगानिस्तान के राष्ट्रपति बनने की बात सुनकर रो पड़े तो कभी ब्राजील के राष्ट्रपति लुईज इनैशियो महज इसलिए भावुक हो गए कि ओलंपिक उनके देश में होंगे.

यह मनोवैज्ञानिकों का भी मानना रहा है कि अगर नेता भावुक होते हैं तो जनता से उन्हें समर्थन मिलता है, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि नेता को आंसू बहाने के कारण रोतला मान लिया जाता है और जनता उसे पसंद नहीं करती. लेकिन ऐसा लगता है कि मोदी जी की लोकप्रियता के इन क्षणों में उनकी हंसी और उनके आंसू भी एक ही भाव बिक रहे हैं अौर उनकी हर मुद्रा इस समय नए नोटों जैसी सम्मोहक बनी हुई है.

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