विपक्षी दलों के नेताअों के बीच शुक्रवार सुबह हुए विचार-विमर्श के बाद बताया गया कि राहुल गांधी आज लोकसभा में नोटबंदी पर भाषण देंगे और अगले बुधवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हस्तक्षेप करेंगे.
लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हम तुरंत नोटबंदी पर बहस शुरू करने के पक्ष में हैं. उन्होंने नियम 184 या 56 का जिक्र तक नहीं किया, जिसके तहत वे 17 दिनों से बहस कराने की मांग कर रहे थे.
संसदीय मामलों के मंत्री अनंत कुमार ने कांग्रेस, तृणमूल व वामपंथी दलों से मांग कर दी कि 17 दिनों से संसद की कायर्वाही न चलने देने के लिए वे देश से माफी मांगें. आपको याद होगा कि इसके पहले राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता गुलाम नबी आजाद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि वे देश से इस बात के लिए माफी मांगें कि उन्होंने समूचे विपक्ष पर यह आरोप लगाया कि वह काले धन का समर्थन कर रहा है.
लोकसभा में बहस नहीं कराना चाहती भाजपा
नोटबंदी पर राज्यसभा में डेढ़ दिन तक चर्चा करने के बाद विपक्षी दलों को याद आया कि बहस के दौरान प्रधानमंत्री निरन्तर सदन में मौजूद रहें, तभी बहस आगे बढ़ेगी. अब भाजपा विपक्ष से माफी की मांग कर लोकसभा में बहस नहीं कराना चाहती है.
नोटबंदी पर पिछले अठारह दिनों से जारी राजनीतिक युद्ध का नतीजा यह हुआ है कि भाजपा व कांग्रेस के बीच अविश्वास की ऊंची दीवार खड़ी हो गई है. इस अविश्वास की वजह से ही शुक्रवार को भाजपा ने लोकसभा में नोटबंदी पर बहस को रोकने की कोशिश की.
भाजपा ने तय किया था कि यदि कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल राज्यसभा में जारी बहस को जारी रखने पर सहमत होगी और वित्त मंत्री अरुण जेटली का भाषण को होने दिया जाएगा, तभी लोकसभा में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को बोलने दिया जाएगा.
विपक्ष ने नोटबंदी पर बहस को रोका
राज्यसभा में हुआ वही, जिसकी आशंका भाजपा को थी. विपक्ष ने गेहूं के आयात पर शुल्क हटाने के मामले को उठाकर नोटबंदी पर अधूरी बहस को रोक दिया. इसका सीधा असर लोकसभा में भाजपा के रवैये में दिखाई दिया.
भाजपा नेताअों को यह आशंका थी कि कांग्रेस पार्टी चाहती है कि किसी तरह लोकसभा में नोटबंदी पर राहुल गांधी का भाषण हो जाए और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व वित्त मंत्री अरुण जेटली को बोलने न दिया जाए.
भाजपा ने विपक्ष से माफी की मांगकर पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के इस आरोप को सच साबित कर दिया कि सरकार भी सदन चलाना नहीं चाहती है. कांग्रेस पार्टी भी अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए मान्य संसदीय परंपराअों का उल्लंघन कर रही है.
नोटबंदी का मुद्दा अब पूरी तरह चुनावी राजनीति का हिस्सा बन गया है. सरकार और विपक्ष के बीच संसद के भीतर किसी सार्थक बहस की संभावना पूरी तरह खत्म हो चुकी है. यदि संसद में बहस होती भी है तो सरकार व विपक्ष की तरफ से बोलने वाले वक्ता सांसदों को नहीं, बल्कि उन राज्यों के मतदाताअों को संबोधित करेंगे, जहां अगले साल के आरंभ में विधानसभा के चुनाव होने हैं.
अवसरवादी राजनीति
भाजपा के रवैये से स्पष्ट है कि राज्यसभा में जारी बहस शुरू होने और वित्त मंत्री के भाषण के बाद ही लोकसभा में राहुल गांधी को नोटबंदी पर बोलने दिया जाएगा. नोटबंदी पर बहस के सवाल पर राज्यसभा व लोकसभा में अलग-अलग रवैया अपनाकर कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल अवसरवादी मानसिकता का ही परिचय दे रहे हैं.
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सरकार व विपक्षी दलों को सलाह दी थी कि संसद को बहस का मंच बनाएं, उसे राजनीतिक अखाड़े में तब्दील न करें. दुर्भाग्य की बात है कि देश के व्यापक हितों को नजरअंदाज करके राजनीतिक दल अपने हितों की अधिक चिंता कर रहे हैं.
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